आख़िर पत्थर स्याह संगाती

रचनाकार - ड़ा. प्रखर

आख़िर पत्थर स्याह संगाती किसको कहाँ लुभाती है।
क्यों प्रहार उन्माद भरा ये क्यों चोटें घाटी को भाती है।।
बने मोहरे तलबा अंकुर अब ममता के हाथों में पत्थर
देख देखकर ज़ख़्म लाल के भारत  की फटती छाती है।।
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डॉ प्रखर
27,नेकपुर चौरासी फतेहगढ
जनपद --फर्रूखाबाद(उ.प्र.)209601

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