लगी आस हुलास हिए - ड़ा प्रखर

लेखक - डॉ प्रखर दीक्षित


लगी आस हुलास हिए उमगै छवि आनन दिव्य सुहावन सखि ।
सरजन की अलौकिक कृति संतति दृग सपने मृदुल मनभावन सखि।।
ममता की डोर बंधी आगत चौथेपन की लकुटी बनिहै
दुर्गेश्वरि कृपा करैं रक्षा रस वत्सल प्रखर दुहावन सखि।।
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डॉ प्रखर दीक्षित
फतेहगढ,फर्रूखाबाद(उ.प्र.)

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