माँ
प्रियम धूप छांव सा अम्माँ का आंचल जहाँ चैन शीतल देता सदाऐं।
सर्द गर्मी या पावस गयीं जाने कितनी हारी अम्माँ से आख़िर फिजाऐं।।
लड़ गयी काल से दु:ख घुटने बल शिकन की लकीरें नदारद मिलीं,
माँ का सानी नहीं माँ अनमोल भी प्रखर महफूज रखतीं माँ की दुआऐं।।
***********************************
डॉ प्रखर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें