लोकोक्ति और लोकाचार में लोकजीवन- (कन्नौजी परिपेक्ष्य में)

लेखक - ड़ा प्रखर
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  लोकाचार किसी भी लोकजीवन का मेरुदंड होता है। अलिखित मौखिक लोक उद्बोधन और उक्तियाँ जीवन को सहज और सुगम्य बनाते टलते है।पीढ़ी दर पेढी इन तत्वों का हस्तांतरण इसकी ख़ास कसौटी है। मज़े की की बात तो यह हैकि बिना किन्तु परन्तु के निर्बाध प्रवाह गतिमान है। नियमों का पालन संवैधानिक दस्तावे की भांति सतत जारी है। जबकि इनका अनुपालन न करने पर कोई दण्ड प्रावधान निरधारित नहीं है।
यह लोक रीति का हिस्सा भर है। ऐसी कहन और कथ्य मे माधुर्य एवं सहज प्रवाह अपनी उपस्थिति अंकित कराते चलते हैं।
आइए पांचाल क्षेत्र में प्रलित कुछ लोकाचार और लोकोक्ति की सुंदर छटा के दर्शन करते चलें:--
(क) लोकाचार
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      नवीन वस्त्र धारण करने के लिए तीन दिन बुधवार,गुरुवार. शुक्रवार और आपत्तिकाल में रविवार शुभ माना गया है।
यथा-- कपड़ा पहिनै तीन बार बुध विस्पति शुक्करवार,भले भटके कौं इतवार।।
     नये झाडू को बुहारन में  नयी दूध हांडी और नयी खाट की बुनाई एवं प्रयोग में मान्यता----
यथा--बुध बरोसी मंगर खाट शुक्कर बढनी बराबाट।।
      
       खेत जुताई और छप्पर छानी के लिए मंगलवार वर्जित------
यथा--- मंगर हरहा मंगर छानी,
          जिज्जी बातें दोऊ उतानी।।
ग्रहण पड़ने पर मान्यताऐं--------
    यथा:- लरिका बारो पेटै आस
               गहान परे तो गेरू पास।।
  
            जब जब गहान परे जो भईया।
            पाक डाब कैं धरो रसुईया।।
(डाब=कुश)
   
   यदि शिशु सोते समय दांत किरकिराए तो देशी हल(काठ हल) में फाल की मिट्टी माशा भर मुँह में  डालें।
विवाह के उपरांत दूल्हे का मौर और दुलहिन की मौरी एक साल के अंदर नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें या फिर नवीन मकान की नींव में दबाना शुभकर माना जाता है।
      और अंत में नीलकंठ:--
    प्रात: , यात्रा योग से पूर्व तथा विजय दशमी पर नीलकंठ के दर्शन शुभदायक है:----
       
              नीलकंठ पटवारी
              पहली सिद्ध हमारी
              लुटिया डोर तुम्हारी।।
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गीतिका
छोड़ो भी बहसबाजी अहम के बीज न डालो
न तुम पूरे न हम पूरे न तुम हल्के न हम भारी।।
वक्त ये इम्तिहाँ लेगा कठिन पर्चा भी आयेगा
जरा खोलो गिरह मन की ज़िंदगी की है जंग जारी ।।
चंद सांसों का खेला सब ये सांसें आयी कि न आयी
खाक या राख ही होना इबादत इल्म रख तारी।।
मन रे गा तू जीवन लय रख परमात्म से रिश्ता
भक्ति की शक्ति में रमकर मिटाओ मन की बेजारी।।
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बसा हिय भव परम आत्मन दर्शन हित आंख का होगा।
मिटेगी भूख रोटी से बेशक घर धन लाख का होगा।।
ये दौलत बज्म ये शोहरत रंगी चंद दिन मेला
मिलेगा खाक अंतिम खन हुतासन राख का होगा।।
डॉ प्रखर

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