लेखक -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
ओ३म्
‘गुरुकुल पौंधा देहरादून द्वारा हरयाणा व पंजाब के ग्रामों में वेद प्रचार’
श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल आर्ष विद्या व वैदिक विषयों के अध्ययन का उत्तराखण्ड की राजधानी का एक प्रमुख एवं विख्यात केन्द्र है। गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय जी, आचार्य डा. यज्ञवीर जी तथा आचार्य चन्द्र भूषण शास्त्री जी के योगदान से यह गुरुकुल सुचारू रूप से चल रहा हैं। यह गुरुकुल 17 वर्ष पूर्व गुरुकुल गौतम नगर दिल्ली की एक शाखा के रूप में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी द्वारा स्थापित हुआ था। गुरुकुल इस समय अपनी सफलता के 17 वर्ष पूर्व कर रहा है। अनेक ब्रह्मचारियों ने यहां शिक्षा पाई है और अनेक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। देश भर में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेक प्रतियोगिताओं में इस गुरुकुल के ब्रह्मचारी प्रथम स्थान पर रहकर ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को गौरवान्वित करते रहे हैं। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के अपने व्यक्तित्व से प्रभावित आर्यजगत के उच्च कोटि के विद्वान, महात्मा और शीर्षस्थ भजनोपदेशक यहां प्रत्येक वर्ष जून माह के प्रथम रविवार व उससे पूर्व के सप्ताह में मनायें जाने वाले वार्षिकोत्सव में पधारते हैं। आचार्य धनंजय जी और आचार्य चन्द्रभूषण जी ने संस्कृत विद्या के प्रचार व प्रसार के लिए अपना जीवन लगाया हुआ है। उनका सहयोग करना सभी आर्य व ऋषि भक्तों का पुनीत कर्तव्य है। आप सभी ऋषिभक्त इस वर्ष 2 जून से 4 जून 2017 को गुरुकुल परिसर में आयोजित उत्सव के आयोजन में भाग लें। अतिथियों के निवास व भोजन आदि का गुरुकुल की ओर से सुविधाजनक प्रबन्ध किया जाता है। उत्सव के कुछ कार्यक्रम 29 मई, 2017 सोमवार से ही आरम्भ हो जायेंगे। आप 29 मई, 2017 व उससे कुछ पूर्व या इसके बाद गुरुकुल आ सकते हैं। आने से पूर्व आचार्य धनंजय जी को उनके दूरभाष संख्या 094111.6104 पर सूचना देंकर मार्गदर्शन प्राप्त सहित किसी भी प्रकार की शंका का समाधान कर लें।
गुरुकुल पौंधा की आवश्यकतायें आर्यजनता के उदारतापूर्ण सहयोग से पूर्ण होती है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल के महीने में गुरुकुल के आचार्य जी अपने कुछ सहयोगियों के साथं हरयाणा व पंजाब के कुछ ग्रामों में गेहूं आदि खाद्यान्न का अन्न संग्रह के लिए भ्रमण करते हैं। इस वर्ष आचार्य धनंजय जी ने इस अवसर पर वेद-प्रचार की योजना भी बनाई। इसमें 9 ग्रामों को चुना गया जहां 22 अप्रैल, 2017 से 30 अप्रैल, 2017 तक रात्रि 7.30 बजे से रात्रि 11.00 बजे तक भजन व प्रवचनों के द्वारा वेद प्रचार किया गया। दिन में ग्राम के लोगों से उनकी श्रद्धानुसार अन्न संग्रह करते थे और सायं के समय में किसी एक स्थान पर भजन व प्रवचन के द्वारा वेद प्रचार करते थे। इसके लिए प्रत्येक गांव में एक संयोजक भी नियुक्त किये गये थे जो सभी व्यवस्था करते थे। आचार्य जी ने हमें बताया कि यज्ञ का सभी सामान जिसमें यज्ञकुण्ड, यज्ञ समिधायें, घृत व हवन सामग्री सहित यज्ञ पात्र सम्मिलित हैं, वह देहरादून से लेकर चलते थे। जिस गाव के लोग यज्ञ सामग्री आदि की स्वयं व्यवस्था करते थे, वहां उन्हीं के साधनों से यज्ञ एवं वेदप्रचार का आयोजन किया जाता था। आचार्य जी से बातचीत में यह जानकारी भी मिली कि जिस ग्राम में रात्रि में वेद प्रचार होता था उसी ग्राम में अगले दिन प्रातः किसी एक परिवार में यज्ञ एवं संक्षिप्त भजन व प्रवचन का आयोजन भी किया जाता था। भजनोपदेशक के रूप में चण्डीगढ़ के आर्य भजनोपदेशक श्री उपेन्द्र आर्य जी का सहयोग लिया गया। प्रवचन आचार्य धनंजय जी स्वयं करते थे। आचार्य जी ने हमें बताया और हमने दूरभाष से भी पता किया, आयोजन में लगभग 100 की संख्या में युवा, वृद्ध, बच्चे आदि सम्मिलित होते थे। इस प्रकार गुरुकुल पौंधा ने वेद-प्रचार की यह प्रभावशाली योजना बनाई और इसे सफलतापूर्वक सम्पन्न किया।
इससे पूर्व इसी प्रकार के आयोजन देहरादून के डोभरी ग्राम के निकटवर्ती ग्रामों में श्री दयानन्द तिवारी जी के सहयोग से किये जा चुके हैं। हमें लगता है कि इ न आयोजनों का ग्रामों के लोगों के मनों व मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव हुआ है और इसके दूरगामी प्रभाव भी अवश्य अच्छे होंगे। जिन स्थानों पर यह आयोजन हुए वह अगले वर्ष इसी प्रकार के आयोजनों की प्रतीक्षा करेंगे। आचार्य जी की टीम को वहां की धार्मिक व सामाजिक समस्याओं का भी ज्ञान हुआ होगा जिसके लिए वह उचित व्यवस्था भी कर सकेंगे। यह भी बता दें कि गुरुकुल पौंधा ने एक वाहन जिसे आजकल छोटा हाथी कहा जाता है, उसका वेद प्रचार वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें आर्य महापुरुषों के चित्र लमें हुए हैं। प्रमुख सूक्तियां लिखी हुई हैं। मंच की व्यवस्था सहित माइक वा ध्वनि विस्तारक यंत्र, ढोलक, तबले एवं हारमोनियम आदि का भी प्रबन्ध है। गांव की जनता इस वाहन को देखकर हर्ष से भर जाती है। वाहन में जो संगीत व्यवस्था डनेपब ैलेजमउ है उसके द्वारा भजनों की कैसेट लगाकर गांवों के लोगों को एकत्रित किया जाता है। गांवों में एक धार्मिक व श्रद्धा का वातावरण बनता है जिसे लोग आत्मा में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। गांव के लोगों के एकत्रित हो जाने पर निर्धारित स्थान पर आयोजन आरम्भ हो जाता है। हम इस वाहन का एक चित्र भी इस लेख के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस प्रकार आचार्य धनंजय जी ने 9 दिनों तक हरयाणा व पंजाब के ग्रामों में वेद प्रचार कर एक अच्छा इतिहास रचा है। जिन गांवों में प्रचार किया उनके नाम हैं भागसी (पंजाब), झवासा, बुर्ज शहीद, शहजादपुर, तन्दवाल, ठसका, साल्हेपुर, निजामपुर और झण्डा। इन ग्रामों में आयोजन के संयोजकों के नाम क्रमशः सर्व श्री फकीर चन्द्र आर्य, सुखबीर सिंह, जय प्रकाश चैहान, सुरेन्द्र राणा, रणदीप सिंह, चै. तेजाराम, संजीव कुमार बलजीत आर्य, रामकुमार सरपंच और चै. पवन आर्य सरपंच हैं।
आज हमने झण्डा ग्राम के वेद प्रचार आयोजन के संयोजक चै. पवन आर्य संरपंच से बातचीत की। उन्होंने बताया कि उनके गांव में कार्यक्रम 30 अप्रैल, 2017 की रात्रि 8.00 बजे आरम्भ होकर 11.00 बजे तक चला था। लगभग 70 लोग उपस्थित थे जिसमें युवा अधिक थे परन्तु इसमें सभी आयु वर्ग के कुछ लोग थे। गांव की जनसंख्या 1000 है। उन्होंने बताया कि उनके धर पर प्रतिदिन सन्ध्या व हवन होता है। उनके यहां आर्यसमाज मन्दिर भी है जहां साप्ताहिक सत्संग एवं वार्षिकोत्सव भी होता है। यह पूछने पर कि विगत वार्षिकोत्सव में कौन से आर्य विद्वान व भजनोपदेशक आये थे, आपने बताया कि भजनोपदेशिका बहिन अंजलि आर्या जी थी व प्रमुख विद्वान एक संन्यासी थे। उन संन्यासी महोदय का नाम आपको उस समय स्मरण नहीं आया। श्री पवन आर्य जन्म से आर्य हैं क्योंकि उनके पिता भी पहले से आर्यसमाजी हैं। हमने पूछा कि क्या आपने सत्यार्थप्रकाश पूरा पढ़ा है तो आपने बताया कि आपने कई बार पूरा सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा है और कई बार पढ़ा है। हर बार पढ़ते हुए ऐससा लगता है कि जैसे कुछ नया पढ़ने को मिल रहा है। रोचकता बनी रहती है और पढ़ने से ज्ञान में वृद्धि होती है। हमने यह भी पूछा कि क्या आप और आपका परिवार दोनों समय सन्ध्या करते हैं तो इसका उत्तर हमें हां में मिला। श्री पवन आर्य बी.ए., जे.बी.टी. (जूनियर बैचलर टीचर) शिक्षित हैं। आपने मास कम्यूनिकेशन में डिप्लोमा भी किया हुआ है। परिवार का मुख्य व्यवसाय खेती है तथा इसके अतिरिक्त भी आप अनेक व्यवसाय कर धनोपार्जन करते हैं। आपके परिवार में आपके माता-पिता, धर्मपत्नी सहित 1 पुत्र व पुत्री है। पुत्री गांव से 10 किमी. दूर सलोरा के विद्यालय में कक्षा 10 में पढ़ रही है। पुत्र कुरुक्षेत्र गुरुकुल में पढ़ता है। आपकी आयु इस समय 41 वर्ष है। यह संक्षिप्त परिचय हमने आयोजन के एक संयोजक महोदय का चित्र सहित प्रस्तुत किया जिसे द्वारा आर्यों को एक अनाम ग्रामं के ऋषिभक्तों के विषय में कुछ जानकारी देना है।
हम आचार्य धनंजय व उनकी समस्त टीम को वेद प्रचार के इस शुभ कार्य के लिए हार्दिक बधाई देते हैं और हमें आशा है कि वह ऋषि के कार्यों को इसी प्रकार पूर्ण लगन से करते हुए सदैव आगे बढ़ाते रहेंगे। हमारी शुभकामनायें सर्दव उनके साथ हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
“असंख्य ब्रह्म हत्याओं के पापों का बोझ हमारे सिर पर हैः ऋषि दयानन्द”
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
ऋषि दयानन्द ने 4 जुलाई, सन् 1875 से 4 अगस्त, 1875 तक पूना में प्रवास किया और वहां 15 प्रवचन किये। महर्षि दयानन्द ने सभी प्रवचन हिन्दी में दिए थे। इन प्रवचनों को पहले हिन्दी से मराठी में अनुदित कर प्रकाशित किया गया था। इसके बाद इनका हिन्दी में अनुवाद तथा प्रकाशन हुआ। ऋषि दयानन्द के यह पन्द्रह प्रवचन ऋषि के समस्त साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अष्टम से त्रयोदश उपदेश तक 6 उपदेश इतिहास विषय पर हैं तथा शेष अन्य विषयों पर। इस महत्ववपूर्ण ‘उपदेश मंजरी’ ग्रन्थ को अनेक प्रकाशकों ने प्रकाशित किया है। हमारे पास आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली, श्री घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ ट्रस्ट, हिण्डोनसिटी, परोपकारिणी सभा, अजमेर, दयानन्द संस्थान, दिल्ली, रामलालकपूर ट्रस्ट, बहालगढ़ आदि के अनेक संस्करण हैं। हमें आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट का संस्कार विशेष महत्वपूर्ण इसलिए लगता है कि इसमें पं. राजवीर शास्त्री जी कृत विस्तृत भूमिका, आर्य विद्वान व व्यवसायी श्री धर्मपाल आर्य जी का प्रकाशकीय तथा विस्तृत विषय-सूची दी गई है जो कि अन्यों में नहीं है।
आज हम इस आलेख में स्वामी दयानन्द जी के नियोग के पक्ष व भ्रूणहत्या के विरुद्ध विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं। भ्रूण-हत्या को उन्होंने ब्रह्महत्या रूपी पाप की संज्ञा दी है। वह कहते हैं कि ‘महाभारत में लिखा है कि व्यास जी ने विचित्रवीर्य की दोनों विधवा-स्त्रियों से नियोग किया था। मनु जी ने भी नियोग की आज्ञा दी है। प्राचीन आर्य लोगों में पति के जीते भी नियोग होता था, इसकी पुष्टि में महाभारत में लिखे हुए बहुत से उदाहरण दिये जा सकते है। व्यासजी बड़े पण्डित और धर्मात्मा थे, उन्होंने चित्रांगद और विचित्रवीर्य की स्त्रियों से नियोग किया और इनमें से एक के गर्भ से धृतराष्ट्र और दूसरी की कुक्षि से पाण्डु उत्पन्न हुए और यह पहले ही वर्णन हो चुका है कि पाण्डु की विद्यमानता में ही उनकी स्त्री ने दूसरे पुरुषों के साथ नियोग किया था। इस प्रकार नियोग का उस समय प्रचार था। पुनर्विवाह की अधिक आवश्यकता ही नहीं होती थी। अब इस समय में नियोग और पुनर्विवाह दोनों के बन्द होने से आज कल के आर्य लोगों में जो-जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, यह आप लोग देख ही रहे हैं। हजारों गर्भ गिराये जाते हैं, भ्रूण-हत्याएं होती हैं। एक गर्भ गिराने में एक ब्रह्म-हत्या का पाप होता है। सोचो कि इस देश में कितनी ब्रह्महत्यायें प्रतिदिन होती हैं? क्या कोई उनकी गणना कर सकता है? इन सब पापों का बोझ हमारे सिर पर है।’
नियोग आपद्धर्म है। सत्यार्थप्रकाश में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस विषय के जिज्ञासु इसके लिए सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन कर जान सकते हैं। ऋषि दयानन्द जी ने भ्रूण-हत्या को ब्रह्म-हत्या माना है। किसी के अस्तित्व मिटा देने व उसे मारने की कुचेष्टा को हत्या करना कहते हैं। भ्रूण को यहां ऋषि ब्रह्म मान रहे हैं और भ्रूण-हत्या को ब्रह्म-हत्या बता रहे हैं। ऋषि दयानन्द अपने समय व अपने पूर्ववर्ती वैदिक विद्वानों की तुलना में वेदों के अद्वितीय विद्वान थे। उन्होंने यह बातें बहुत सोच विचार कर व शास्त्रों की साक्षी से कहीं हैं। किसी जीव को जन्म न लेने देना और जन्म से पूर्व ही उसकी हत्या कर व करा देना ब्रह्महत्या माना गया है। यह भ्रूणहत्या ब्रह्म-हत्या इसलिए भी है कि यह ईश्वर के कार्य व व्यवस्था में मनुष्यों द्वारा बाधा डालना है। यह ऐसा पाप है जिसका न तो कोई औचीत्य है और सम्भवतः इसका कोई प्रायश्चित भी नहीं हो सकता है। आर्यसमाज के विद्वानों को इस विषय को शिक्षित व आधुनिक जीवन शैली वाले समाज के सामने धनवान लोगों के सम्मुख तर्क, युक्ति व प्रमाणों के साथ रखना चाहिये जिससे यह पाप जड़ से समाप्त हो। बहुत से डाक्टर, पूर्ण प्रतिबन्धित होने पर भी, इस कार्य को छुप आर्थिक प्रलोभनों से कराते हैं जिसका अनावरण समय समय पर कुछ टीवी चैनलों द्वारा अपने स्टिंग आपरेशनों में किया जाता है। ऋषि के यह विचार उनके वेदों की विचारधारा के महत्व सहित भावी समय में बढ़ने वाले अमानवीय पाप को रोकने के लिए देशवासियों को आगाह करते अनुभव होते हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए हमने ऋषि के इन विचारों को प्रस्तुत किया है। ओ३म् शम्।
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-मनमोहन कुमार आर्य
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देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
‘गुरुकुल पौंधा देहरादून द्वारा हरयाणा व पंजाब के ग्रामों में वेद प्रचार’
श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल आर्ष विद्या व वैदिक विषयों के अध्ययन का उत्तराखण्ड की राजधानी का एक प्रमुख एवं विख्यात केन्द्र है। गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय जी, आचार्य डा. यज्ञवीर जी तथा आचार्य चन्द्र भूषण शास्त्री जी के योगदान से यह गुरुकुल सुचारू रूप से चल रहा हैं। यह गुरुकुल 17 वर्ष पूर्व गुरुकुल गौतम नगर दिल्ली की एक शाखा के रूप में स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी द्वारा स्थापित हुआ था। गुरुकुल इस समय अपनी सफलता के 17 वर्ष पूर्व कर रहा है। अनेक ब्रह्मचारियों ने यहां शिक्षा पाई है और अनेक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। देश भर में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेक प्रतियोगिताओं में इस गुरुकुल के ब्रह्मचारी प्रथम स्थान पर रहकर ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज को गौरवान्वित करते रहे हैं। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के अपने व्यक्तित्व से प्रभावित आर्यजगत के उच्च कोटि के विद्वान, महात्मा और शीर्षस्थ भजनोपदेशक यहां प्रत्येक वर्ष जून माह के प्रथम रविवार व उससे पूर्व के सप्ताह में मनायें जाने वाले वार्षिकोत्सव में पधारते हैं। आचार्य धनंजय जी और आचार्य चन्द्रभूषण जी ने संस्कृत विद्या के प्रचार व प्रसार के लिए अपना जीवन लगाया हुआ है। उनका सहयोग करना सभी आर्य व ऋषि भक्तों का पुनीत कर्तव्य है। आप सभी ऋषिभक्त इस वर्ष 2 जून से 4 जून 2017 को गुरुकुल परिसर में आयोजित उत्सव के आयोजन में भाग लें। अतिथियों के निवास व भोजन आदि का गुरुकुल की ओर से सुविधाजनक प्रबन्ध किया जाता है। उत्सव के कुछ कार्यक्रम 29 मई, 2017 सोमवार से ही आरम्भ हो जायेंगे। आप 29 मई, 2017 व उससे कुछ पूर्व या इसके बाद गुरुकुल आ सकते हैं। आने से पूर्व आचार्य धनंजय जी को उनके दूरभाष संख्या 094111.6104 पर सूचना देंकर मार्गदर्शन प्राप्त सहित किसी भी प्रकार की शंका का समाधान कर लें।
गुरुकुल पौंधा की आवश्यकतायें आर्यजनता के उदारतापूर्ण सहयोग से पूर्ण होती है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल के महीने में गुरुकुल के आचार्य जी अपने कुछ सहयोगियों के साथं हरयाणा व पंजाब के कुछ ग्रामों में गेहूं आदि खाद्यान्न का अन्न संग्रह के लिए भ्रमण करते हैं। इस वर्ष आचार्य धनंजय जी ने इस अवसर पर वेद-प्रचार की योजना भी बनाई। इसमें 9 ग्रामों को चुना गया जहां 22 अप्रैल, 2017 से 30 अप्रैल, 2017 तक रात्रि 7.30 बजे से रात्रि 11.00 बजे तक भजन व प्रवचनों के द्वारा वेद प्रचार किया गया। दिन में ग्राम के लोगों से उनकी श्रद्धानुसार अन्न संग्रह करते थे और सायं के समय में किसी एक स्थान पर भजन व प्रवचन के द्वारा वेद प्रचार करते थे। इसके लिए प्रत्येक गांव में एक संयोजक भी नियुक्त किये गये थे जो सभी व्यवस्था करते थे। आचार्य जी ने हमें बताया कि यज्ञ का सभी सामान जिसमें यज्ञकुण्ड, यज्ञ समिधायें, घृत व हवन सामग्री सहित यज्ञ पात्र सम्मिलित हैं, वह देहरादून से लेकर चलते थे। जिस गाव के लोग यज्ञ सामग्री आदि की स्वयं व्यवस्था करते थे, वहां उन्हीं के साधनों से यज्ञ एवं वेदप्रचार का आयोजन किया जाता था। आचार्य जी से बातचीत में यह जानकारी भी मिली कि जिस ग्राम में रात्रि में वेद प्रचार होता था उसी ग्राम में अगले दिन प्रातः किसी एक परिवार में यज्ञ एवं संक्षिप्त भजन व प्रवचन का आयोजन भी किया जाता था। भजनोपदेशक के रूप में चण्डीगढ़ के आर्य भजनोपदेशक श्री उपेन्द्र आर्य जी का सहयोग लिया गया। प्रवचन आचार्य धनंजय जी स्वयं करते थे। आचार्य जी ने हमें बताया और हमने दूरभाष से भी पता किया, आयोजन में लगभग 100 की संख्या में युवा, वृद्ध, बच्चे आदि सम्मिलित होते थे। इस प्रकार गुरुकुल पौंधा ने वेद-प्रचार की यह प्रभावशाली योजना बनाई और इसे सफलतापूर्वक सम्पन्न किया।
इससे पूर्व इसी प्रकार के आयोजन देहरादून के डोभरी ग्राम के निकटवर्ती ग्रामों में श्री दयानन्द तिवारी जी के सहयोग से किये जा चुके हैं। हमें लगता है कि इ न आयोजनों का ग्रामों के लोगों के मनों व मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव हुआ है और इसके दूरगामी प्रभाव भी अवश्य अच्छे होंगे। जिन स्थानों पर यह आयोजन हुए वह अगले वर्ष इसी प्रकार के आयोजनों की प्रतीक्षा करेंगे। आचार्य जी की टीम को वहां की धार्मिक व सामाजिक समस्याओं का भी ज्ञान हुआ होगा जिसके लिए वह उचित व्यवस्था भी कर सकेंगे। यह भी बता दें कि गुरुकुल पौंधा ने एक वाहन जिसे आजकल छोटा हाथी कहा जाता है, उसका वेद प्रचार वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें आर्य महापुरुषों के चित्र लमें हुए हैं। प्रमुख सूक्तियां लिखी हुई हैं। मंच की व्यवस्था सहित माइक वा ध्वनि विस्तारक यंत्र, ढोलक, तबले एवं हारमोनियम आदि का भी प्रबन्ध है। गांव की जनता इस वाहन को देखकर हर्ष से भर जाती है। वाहन में जो संगीत व्यवस्था डनेपब ैलेजमउ है उसके द्वारा भजनों की कैसेट लगाकर गांवों के लोगों को एकत्रित किया जाता है। गांवों में एक धार्मिक व श्रद्धा का वातावरण बनता है जिसे लोग आत्मा में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। गांव के लोगों के एकत्रित हो जाने पर निर्धारित स्थान पर आयोजन आरम्भ हो जाता है। हम इस वाहन का एक चित्र भी इस लेख के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस प्रकार आचार्य धनंजय जी ने 9 दिनों तक हरयाणा व पंजाब के ग्रामों में वेद प्रचार कर एक अच्छा इतिहास रचा है। जिन गांवों में प्रचार किया उनके नाम हैं भागसी (पंजाब), झवासा, बुर्ज शहीद, शहजादपुर, तन्दवाल, ठसका, साल्हेपुर, निजामपुर और झण्डा। इन ग्रामों में आयोजन के संयोजकों के नाम क्रमशः सर्व श्री फकीर चन्द्र आर्य, सुखबीर सिंह, जय प्रकाश चैहान, सुरेन्द्र राणा, रणदीप सिंह, चै. तेजाराम, संजीव कुमार बलजीत आर्य, रामकुमार सरपंच और चै. पवन आर्य सरपंच हैं।
आज हमने झण्डा ग्राम के वेद प्रचार आयोजन के संयोजक चै. पवन आर्य संरपंच से बातचीत की। उन्होंने बताया कि उनके गांव में कार्यक्रम 30 अप्रैल, 2017 की रात्रि 8.00 बजे आरम्भ होकर 11.00 बजे तक चला था। लगभग 70 लोग उपस्थित थे जिसमें युवा अधिक थे परन्तु इसमें सभी आयु वर्ग के कुछ लोग थे। गांव की जनसंख्या 1000 है। उन्होंने बताया कि उनके धर पर प्रतिदिन सन्ध्या व हवन होता है। उनके यहां आर्यसमाज मन्दिर भी है जहां साप्ताहिक सत्संग एवं वार्षिकोत्सव भी होता है। यह पूछने पर कि विगत वार्षिकोत्सव में कौन से आर्य विद्वान व भजनोपदेशक आये थे, आपने बताया कि भजनोपदेशिका बहिन अंजलि आर्या जी थी व प्रमुख विद्वान एक संन्यासी थे। उन संन्यासी महोदय का नाम आपको उस समय स्मरण नहीं आया। श्री पवन आर्य जन्म से आर्य हैं क्योंकि उनके पिता भी पहले से आर्यसमाजी हैं। हमने पूछा कि क्या आपने सत्यार्थप्रकाश पूरा पढ़ा है तो आपने बताया कि आपने कई बार पूरा सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा है और कई बार पढ़ा है। हर बार पढ़ते हुए ऐससा लगता है कि जैसे कुछ नया पढ़ने को मिल रहा है। रोचकता बनी रहती है और पढ़ने से ज्ञान में वृद्धि होती है। हमने यह भी पूछा कि क्या आप और आपका परिवार दोनों समय सन्ध्या करते हैं तो इसका उत्तर हमें हां में मिला। श्री पवन आर्य बी.ए., जे.बी.टी. (जूनियर बैचलर टीचर) शिक्षित हैं। आपने मास कम्यूनिकेशन में डिप्लोमा भी किया हुआ है। परिवार का मुख्य व्यवसाय खेती है तथा इसके अतिरिक्त भी आप अनेक व्यवसाय कर धनोपार्जन करते हैं। आपके परिवार में आपके माता-पिता, धर्मपत्नी सहित 1 पुत्र व पुत्री है। पुत्री गांव से 10 किमी. दूर सलोरा के विद्यालय में कक्षा 10 में पढ़ रही है। पुत्र कुरुक्षेत्र गुरुकुल में पढ़ता है। आपकी आयु इस समय 41 वर्ष है। यह संक्षिप्त परिचय हमने आयोजन के एक संयोजक महोदय का चित्र सहित प्रस्तुत किया जिसे द्वारा आर्यों को एक अनाम ग्रामं के ऋषिभक्तों के विषय में कुछ जानकारी देना है।
हम आचार्य धनंजय व उनकी समस्त टीम को वेद प्रचार के इस शुभ कार्य के लिए हार्दिक बधाई देते हैं और हमें आशा है कि वह ऋषि के कार्यों को इसी प्रकार पूर्ण लगन से करते हुए सदैव आगे बढ़ाते रहेंगे। हमारी शुभकामनायें सर्दव उनके साथ हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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ओ३म्
“असंख्य ब्रह्म हत्याओं के पापों का बोझ हमारे सिर पर हैः ऋषि दयानन्द”
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
ऋषि दयानन्द ने 4 जुलाई, सन् 1875 से 4 अगस्त, 1875 तक पूना में प्रवास किया और वहां 15 प्रवचन किये। महर्षि दयानन्द ने सभी प्रवचन हिन्दी में दिए थे। इन प्रवचनों को पहले हिन्दी से मराठी में अनुदित कर प्रकाशित किया गया था। इसके बाद इनका हिन्दी में अनुवाद तथा प्रकाशन हुआ। ऋषि दयानन्द के यह पन्द्रह प्रवचन ऋषि के समस्त साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अष्टम से त्रयोदश उपदेश तक 6 उपदेश इतिहास विषय पर हैं तथा शेष अन्य विषयों पर। इस महत्ववपूर्ण ‘उपदेश मंजरी’ ग्रन्थ को अनेक प्रकाशकों ने प्रकाशित किया है। हमारे पास आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली, श्री घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ ट्रस्ट, हिण्डोनसिटी, परोपकारिणी सभा, अजमेर, दयानन्द संस्थान, दिल्ली, रामलालकपूर ट्रस्ट, बहालगढ़ आदि के अनेक संस्करण हैं। हमें आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट का संस्कार विशेष महत्वपूर्ण इसलिए लगता है कि इसमें पं. राजवीर शास्त्री जी कृत विस्तृत भूमिका, आर्य विद्वान व व्यवसायी श्री धर्मपाल आर्य जी का प्रकाशकीय तथा विस्तृत विषय-सूची दी गई है जो कि अन्यों में नहीं है।
आज हम इस आलेख में स्वामी दयानन्द जी के नियोग के पक्ष व भ्रूणहत्या के विरुद्ध विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं। भ्रूण-हत्या को उन्होंने ब्रह्महत्या रूपी पाप की संज्ञा दी है। वह कहते हैं कि ‘महाभारत में लिखा है कि व्यास जी ने विचित्रवीर्य की दोनों विधवा-स्त्रियों से नियोग किया था। मनु जी ने भी नियोग की आज्ञा दी है। प्राचीन आर्य लोगों में पति के जीते भी नियोग होता था, इसकी पुष्टि में महाभारत में लिखे हुए बहुत से उदाहरण दिये जा सकते है। व्यासजी बड़े पण्डित और धर्मात्मा थे, उन्होंने चित्रांगद और विचित्रवीर्य की स्त्रियों से नियोग किया और इनमें से एक के गर्भ से धृतराष्ट्र और दूसरी की कुक्षि से पाण्डु उत्पन्न हुए और यह पहले ही वर्णन हो चुका है कि पाण्डु की विद्यमानता में ही उनकी स्त्री ने दूसरे पुरुषों के साथ नियोग किया था। इस प्रकार नियोग का उस समय प्रचार था। पुनर्विवाह की अधिक आवश्यकता ही नहीं होती थी। अब इस समय में नियोग और पुनर्विवाह दोनों के बन्द होने से आज कल के आर्य लोगों में जो-जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, यह आप लोग देख ही रहे हैं। हजारों गर्भ गिराये जाते हैं, भ्रूण-हत्याएं होती हैं। एक गर्भ गिराने में एक ब्रह्म-हत्या का पाप होता है। सोचो कि इस देश में कितनी ब्रह्महत्यायें प्रतिदिन होती हैं? क्या कोई उनकी गणना कर सकता है? इन सब पापों का बोझ हमारे सिर पर है।’
नियोग आपद्धर्म है। सत्यार्थप्रकाश में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस विषय के जिज्ञासु इसके लिए सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन कर जान सकते हैं। ऋषि दयानन्द जी ने भ्रूण-हत्या को ब्रह्म-हत्या माना है। किसी के अस्तित्व मिटा देने व उसे मारने की कुचेष्टा को हत्या करना कहते हैं। भ्रूण को यहां ऋषि ब्रह्म मान रहे हैं और भ्रूण-हत्या को ब्रह्म-हत्या बता रहे हैं। ऋषि दयानन्द अपने समय व अपने पूर्ववर्ती वैदिक विद्वानों की तुलना में वेदों के अद्वितीय विद्वान थे। उन्होंने यह बातें बहुत सोच विचार कर व शास्त्रों की साक्षी से कहीं हैं। किसी जीव को जन्म न लेने देना और जन्म से पूर्व ही उसकी हत्या कर व करा देना ब्रह्महत्या माना गया है। यह भ्रूणहत्या ब्रह्म-हत्या इसलिए भी है कि यह ईश्वर के कार्य व व्यवस्था में मनुष्यों द्वारा बाधा डालना है। यह ऐसा पाप है जिसका न तो कोई औचीत्य है और सम्भवतः इसका कोई प्रायश्चित भी नहीं हो सकता है। आर्यसमाज के विद्वानों को इस विषय को शिक्षित व आधुनिक जीवन शैली वाले समाज के सामने धनवान लोगों के सम्मुख तर्क, युक्ति व प्रमाणों के साथ रखना चाहिये जिससे यह पाप जड़ से समाप्त हो। बहुत से डाक्टर, पूर्ण प्रतिबन्धित होने पर भी, इस कार्य को छुप आर्थिक प्रलोभनों से कराते हैं जिसका अनावरण समय समय पर कुछ टीवी चैनलों द्वारा अपने स्टिंग आपरेशनों में किया जाता है। ऋषि के यह विचार उनके वेदों की विचारधारा के महत्व सहित भावी समय में बढ़ने वाले अमानवीय पाप को रोकने के लिए देशवासियों को आगाह करते अनुभव होते हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए हमने ऋषि के इन विचारों को प्रस्तुत किया है। ओ३म् शम्।
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