
लेखक - ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
गलतफहमी (लघु कथा)
भाभी ने फिर वही उलाहना दिया,'' आप से पराये अच्छे हैं. जिन्हों ने बुरे वक्त में हमारी सहायता की थी.''
'' हां भाभी. मैं भी यही चाहता था.''
'' हांहां, मुझे पता है. आप क्या चाहते थे. हम भीख मांगे. अपनी जमीन आप के नाम कर दें.''
'' वह तो आप ने अब भी उस ट्रस्ट के नाम पर की है.''
'' हां की है. उस ट्रस्ट ने हमारी सहायता तब की थी जब इस के पापा एक दुर्घटना में शांत हो गए थे. मगर, उस ट्रस्टी से मैं आज तक नहीं मिलीं.'' भाभी ने यह कह कर मुंह बनाया, '' आप से इन का वह पराया दोस्त अच्छा है जिस ने हमें ट्रस्ट से सहायता दिलवाई थी. उसी की बदौलत आज मेरा बेटा एक सफल व्यापारी है.''
'' मैं भी यही चाहता था भाभी. यह आत्मनिर्भर बनें. किसी की सहायता के बिना.''
'' रहने दीजिए. आप की निगाहें तो हमारी जमीन पर थी. उसे हड़पना चाहते थे,'' भाभी ने यही कहा था कि किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई.
उन्हों ने दरवाजा खोला तो चौंक गई,'' अरे भाई साहब ! आप. आइएआइए. इन से मिलिए. ये कहने मात्र के लिए मेरे देवर है.''
फिर भाभी अपने देवर की ओर घुम कर बोली,'' और देवरजी ! ये इन के वही दोस्त है जिन्हों ने हमारी बुरे दिनों में सहायता की थी.''
तभी आंगुतक ने हाथ जोड़ते हुए कहा'' अरे ! सरजी आप !'' फिर माला टंगी तस्वीर की ओर इशारा कर के कहा, '' ये आप के भाई थे ?''
'' जी हां.''
तभी भाभी बोली,'' आप इन्हें जानते हैं ?''
'' हां. ये वही ट्रस्टी है, जिन्हों ने गोपनीय रूप से ट्रस्ट बना कर आप की जमीन पर, आप का कारखाना खोलने में मदद की थी.''
यह सुनते ही भाभी संहल नहीं पाई. धड़ाम से सौफे पर बैठ गई.
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लेखक परिचय - ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” (शासकीय विद्यालय में सहायक शिक्षक) *जन्म-26जनवरी1965 *यो
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