आड़ी टेड़ी रेखाएं एवं बिखरे-शब्दत


रचनाकार - मीनाक्षी  भालेराव 
पूणे  (महाराष्ट्र  )

आड़ी टेड़ी रेखाएं
कागज की हथेली पर
खिंच कर कुछ आड़ी-टेडी रेखाए
भर दो उस के खाली पन को
कुछ ना सही, कुछ तो है
अक्षर ना बन पाये तो क्या
गीत ना लिख पाये तो क्या
जीवन भर साथ निभाएगी
ये आडी-टेडी रेखाए
आखें जब धुंधली होगीं
कमर जब झुकी होगी
हाथो मै जब कंम्पन होगी
तब भी खीचं जाएगी
ये आडी-टेडी रेखाएं
जब जीवन की शाम होगी
बिखरे-बिखरे सब पल होगें
पास ना कोई और रहेगा
तब भी याद् रहेगीं
ये आडी-टेडी रेखाए
कागज की हथेली पर
खेचं कर कुछ रेखाए


बिखरे-शब्द
आज देखी शब्दों की शरारत मेने
घर के कोने-कोने मै घूम रहे थे
और ज्यादा ही नीले-पीले हो रहे थे
अपने बच्चों को मै डांट देती थी
जब वो घर मै उठा-पटक करते थे
पर क्या करूं इन शब्दों का
जो मानते ही नहीं बस सारे घर मै
अपनी काली-पिली-नीली स्याही  के
दाग छोड़ जाते है और जबर दस्ती
मेरे हाथों मै कागज-कलम पकड़ा जाते हैं
कभी-भी मन नहीं होता लिखने का
पर कलम  पर मेरा बस नही चलता
शब्द जोर-जोर से मेरे हाथों को
कागज पर चलने को मजबूर कर देता है
मै लिखना तो चाहती हूँ कुछ गहन-गहरा
पर मेरे छापने वाले नही चाहते के कुछ
आदर्शों और संस्कारों की बाते लिखूं
क्यों की उन तक  चंद लोग ही पहुंच पाते हैं
बाकी किताबों मै धरे रह जाते हैं
हाँ अगर कुछ छिछोरा लिखा तो
वो बहुत नोट कमाते हैं मै बेचना नही चाहती
पर बरबस ही कलम बिक जाती है
क्यों की केवल लिखने से पेट नही भरता


मीनाक्षी  भालेराव 
पूणे  (महाराष्ट्र  )

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