लेखक - प्रखर
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दोहे
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दोहे
माउट जेठ की अति सुखद बस्सै गोलाधार।
खर्रा पोखर ताल सिग मानै इस आभार।।1।।
खर्रा पोखर ताल सिग मानै इस आभार।।1।।
सियरो लहरा पूरबी बरखा गात मल्हार।
भौजी नखशिख तरबतर खुई गे धूर गुबार।।2।।
भौजी नखशिख तरबतर खुई गे धूर गुबार।।2।।
कच्ची अमियन को पना सियरावै जिय मोर।
तुमहुँ भइया ढाप लेऊ छूटै गरम मरोर।।3।।
तुमहुँ भइया ढाप लेऊ छूटै गरम मरोर।।3।।
खरबूजा तरबूज संग खीरा मधुर रसाल।
कोयलारी टपका तकैं लरिका मनई अबाल।।4।।
कोयलारी टपका तकैं लरिका मनई अबाल।।4।।
जेठ दुपहारी हूँ तकै नीब बरी की छाँव।
डगर चलें तिल तिल कटे छाले भइया पाँव।।5।।
डगर चलें तिल तिल कटे छाले भइया पाँव।।5।।
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कलम के उपासकों को सादर निवेदित
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निर्झर स्रोत बिन मित्रों कभी सरिता नहीं होती ।
बिना गोविंद भावों के कभी गीता नहीं होती।।
मठाधीशों के मंचों पर प्रखर जाना हुआ बेजा
जहाँ पर अहम का डंका वहाँ कविता नहीं होती।।
बिना गोविंद भावों के कभी गीता नहीं होती।।
मठाधीशों के मंचों पर प्रखर जाना हुआ बेजा
जहाँ पर अहम का डंका वहाँ कविता नहीं होती।।
प्रखर
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