मुक्तक - विनोद दवे



लेखक - विनोद दवे

अजीब से हालात है मेरी जिंदगी के,
दिन ढलता भी नहीं और रात होती है।
मुसकुराना काफी नहीं है इस महफ़िल में,
यहां तो आंसुओं के जरिये बात होती है।

इश्क के बाजीगरों को रोते देखा है अकेला,
इन तनहाइयों से जब मुलाकात होती है।
लौट कर मत आना मेरी जिंदगी में,
हर अंजाम पर एक शुरुआत होती है।

मैं हैरान था, परेशान था खामोश हवाओं के बावजूद,
क्यों ये शांत समंदर तेरे कदमों की आहट पाकर हिल उठा था।
लोगों को ऐसे खबर हो गई तेरी मुहब्बत की 'दवे',
उसके जिक्र भर से तेरा चेहरा खिल उठा था।

ये वक़्त भी गुजर गया बातों-बातों में,
दूरियाँ बदल न सकी मुलाकातों में।
बिजलियों को छूने की तमन्ना सी जगी है,
यहाँ सिर्फ धुआँ हैँ तो आग कहाँ लगी है।

गुजर जाती है हर शाम उस वक्त को याद कर के,
जो वक्त हसीं तो नहीं मगर अपना हुआ करता था।
तुझे खोकर भी इतनी ही शिद्दत से याद है मुझे,
तुझे पाना एक खूबसूरत सपना हुआ करता था।

उसका कुछ नहीं बिगड़ा 'दवे' तेरी नाराजगी देख कर भी,
मेरे आंसुओं का क़र्ज़ न उतारा गया।
और वो हंस कर नहीं बोली मुझसे आज एक बार,
मैं दिन में कितनी बार बेमौत मारा गया।

हर किसी को कहना है, कोई सुनने को तैयार नहीं,
बातें भी बिन मतलब की जिनका कोई सार नहीं।
आओ हम कम बोले, आँखों से ज्यादा बात करें,
जो लफ्जों में मुमकिन न हो, ख़ामोशी से वो बात कहे।

टूट कर बिखरना तो आईनों की फितरत है मेरे यार,
बस तुम्हारी दुआओं की कशिश मुझे बिखरने नहीं देती।
कब तक ये टुकड़े इस सीने के सहेज कर रखूँ,
मौत सामने है पर जिंदगी मुझे मरने नहीं देती।

इतना तो रहम कर मुझ पर ऐ दिलबर,
तू मेरा यूं दिल दुखाना छोड़ दे।
और इतना भी नहीं होता तुझसे मेरे सनम,
तो एहसान कर और मुसकुराना छोड़ दे।

नाम लिखते है मिटाते है,
अपने ही नाम से अपना दिल बहलाते है।
उसका नाम समाया है मेरे नाम में,
इसी बहाने खुद को उसकी याद दिलाते है।

किताब-ए-इश्क़ के हर पन्ने पर एक ही ख़ुशबू थी,
इबादत-इ-इश्क़ का कभी नूर नहीं जाता।
हवा उड़ा तो देती है सूखे हुए पत्तों को,
शज़र कभी जड़ो से दूर नहीं जाता।

ज़िन्दगी इतनी हसीन तो नहीं,
पर तुम्हारे इंतजार में जीये जा रहे हैं।
ज़हर कौन पीता है जानबूझकर,
इक हम हैं जो शौक से पीए जा रहे हैं।

हर शख़्स के अपने किस्से हैं, अपनी कहानियाँ,
यादें गमगीन दे जाती हैं, हसीन जवानियाँ,
'दवे' ये तनहाई ये सूनापन हर किसी के नसीब में नहीं,
कई तूफानों के बाद आती है ये वीरानियाँ।

बेहिसाब बिजलियों की लपटे अपने दामन में समेटे है,
उसे छूआ भी नहीं और बेहोश हो गए।
कितने मयखाने उसके लबों पर मुसकुराते रहते है,
बिना चूमे ही हम मदहोश हो गए।

ये इंतजार, ये रात कभी रुखसत नहीं होंगे इस ज़िन्दगी से,
ये मुकद्दर की बातें है ख़ुदा जाने क्या होगा।
कभी सुबह की चटख धूप भी खिलेगी,
या जाने सिर्फ धुआँ-धुआँ होगा।

जिस दीपक के उजियारे से तेरा चेहरा रोशन होगा,
उस दीपक के नूर की ख़ातिर हैं ये शमा जलाए है,
काश कोई हमको बतला दे,
तेरी आँखों के दीपक में कितने राज़ समाए है।

कहाँ गई उनके चेहरे की मासूमियत,
अब तो उनकी आँखों से ही डर लगता है।
रात को कब्रगाह का सन्नाटा कबूल है,
पर हमें ख़ुद की साँसों से भी डर लगता है।

तुझ पर विश्वास तो पूरा था मेरी तमन्ना-ए-ज़िन्दगी,
जानता न था किस्मत भी दगा दे जाती है।
तुम्हारे प्यार ने मुझे जीना सिखाया था दिल खोलकर,
मगर हाथों की लकीरें भी धोखा दे जाती है।

वफ़ा की उम्मीद और तुमसे,
आफ़ताब दिन में न रोशन हो जाए।
बारिश तभी मुमकिन है मेरे दोस्त,
जब अश्कों के बादल इस मौसम हो जाए।

अजीब है मेरी ज़िन्दगी तुझे मुड़-मुड़ कर देखना,
तू मेरी न रही मैं तेरा न रहा।
और हमने क्या पा लिया एक दूजे को खोकर,
तू तेरी न रही मैं मेरा न रहा।
वतन



उस वक़्त का इंतजार है जब वतन में खुशहाली होगी,
पतझड़ हो या सावन, हर मौसम हरियाली होगी,
न दिन में तपन होगी, न रात काली होगी,
हर दिन होली हर रात दीवाली होगी।

हर दिल में देश का, इस चमन का सम्मान होगा,
जहां भर की इबारतों में हिन्दोस्तां का नाम होगा।
सोने चांदी के ख़्वाब न देखे है, न देखेंगे,
गरीबी का हिन्द से काम बस तमाम होगा।

इस देश का ईमान बेईमान के हाथो में है,
हर इक काम नाकाम के हाथों में है।
कौन उजाला लाएगा 'दवे' तेरे प्यारे वतन में,
बेसहारा है सूरज, शाम के हाथों में है।

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लेखक परिचय -
साहित्य जगत में नव प्रवेश।  पत्र पत्रिकाओं यथा, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी,  कादम्बिनी , बाल भास्कर आदि  में रचनाएं प्रकाशित।
अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत।
पता :
विनोद कुमार दवे
206
बड़ी ब्रह्मपुरी
मुकाम पोस्ट=भाटून्द
तहसील =बाली
जिला= पाली
राजस्थान
306707
मोबाइल=9166280718
ईमेल = davevinod14@gmail.com

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