बनो विशाल वृक्ष से

रचनाकार - सफलता सरोज

बनो विशाल वृक्ष से,जिन्दगी सँवारो तुम
लो सबक अतीत से भविष्य को सुधारो तुम
विराट वृक्ष हिन्द की अनेक धर्म डाल है।
विभिन्न धर्म ,जाति की गुँथी पुष्पमाल है।
परस्पर सौहार्द हो,न घात-प्रतिघात हो ,
नेह की वरसात का अनवरत प्रपात हो ।
मानवीय मालिन्य को विमल करो शुभम करो,
श्रेष्ठ अपनी भरत भूमि कभी न विसारो तुम।
जियो कुछ इस तरह कि जिन्दगी चहक उठे
प्राण जो  निष्प्राणहै,जी उठे महक उठे
व्याष्टि और समिष्ट बीच प्रेम ही आराध्य हो
विश्व बन्धुत्व भाव जिन्दगी का साध्य हो
धरती के लाल सुन धरती की आर्तनाद
खो रही मानवता को फ़िर से पुकारो तुम
ज्योतिमा के भव्य दीप बनके तुम जल उठो
हो मनुज- मनुजता के दुर्ग तुम नए गढो।
तुम खिलो सुमन सृदश सुवास को बिखेरते ,
उद्योग के उद्यान को साँवरते-सहेजते
त्यागकर अहम को तुम लक्ष्य ओर बढ़ चलो
कदम रहे जमीन पर गगन को जब निहारो तुम.
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रचनाकार परिचय- सफलता सरोज
चौबेपुर कानपुर नगर
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख,कहानी,साक्षात्कार,कविताओ का सतत प्रकाशन
प्रकाशित कृतियां-नग्न मंच है नग्न नृत्य है,समाधिस्थ ,माँ ...छाया बरगद की ,पिहूँ बोले
प्रकाशाधीन कृतियां-नीरज एक युग, कुँवर बेचैन ,एक अंतर्यात्रा,शहीद की डायरी ,नारी स्वतंत्रिका की अमर उदघोषिका सुभद्रा कुमारी चौहान 
संपादित पत्रिकाएं-बयान का शिक्षा विशेषांक ,हमारे सपनो की उड़ान,नवनिकष तथा आगमन एक खूब सूरत शुरुआत का नीरज विशेषांक, आगमन एक खूबसूरत शुरुआत का चंद्रकांता विशेषांक ।
सम्मान-साहित्य भूषण,साहित्य शिरोमणि,पत्रकार श्री

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