गीतिका/ग़ज़ल - ड़ा प्रखर


गीतिका/ग़ज़ल
रखा जब पाँव पावक में तो फना होने का फन रखना।
वादों से हुआ कुछ क्या दिलों  में फ़र्ज़ प्रन रखना।।
जब तक श्वांस क्रम जारी तब तक चाह लोगों को
लुटे तन मन धन लेकिन  रब के हेत  खन रखना।।
मुठ्ठी बांध आया जग खाली हाथ ही जाना
पसारा जोडते बेजा सभी संग प्रेम धन रखना।।
पिपासू खून के जालिम नहीं इंसानियत उनमें
शस्त्रों से नहीं हल हैं सदा  सौहार्द घन रखना।।
मतों में भिन्नता संभव विर्मशों में तलाशें हल
दिलों में फासला बेशक मिलाकर हाथ मन रखना।।
तन्हाई में उदासी है दुखों के दंश औ' बेचैनी
निदानों के फलक पर इक अपना प्रेमी जन रखना।।
प्रखर लिप्सा लोभ कुंठा ये  स्पर्धा के पैमाने
अगर चाहो भव तारण तो हिय ईश्वर भजन रखना।।

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