रचनाकार - डॉ प्रखर दीक्षित
शारद वंदना
हे शैलसुता हे रुद्राणी हे अन्नपूर्णा माँ अम्बे।
हे दु:ख विनाशी सुखदाती हे अंब भवानी जगदम्बे।।
हे गौरी ज्वाला नारायणी पराशक्ति हे जयति जया
हर दो हर दो अंर्ततम अघ हिल जाऐं शंका के खंबे।।
हे दु:ख विनाशी सुखदाती हे अंब भवानी जगदम्बे।।
हे गौरी ज्वाला नारायणी पराशक्ति हे जयति जया
हर दो हर दो अंर्ततम अघ हिल जाऐं शंका के खंबे।।
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गजल/ गीतिका
आज सच का आइना ऐसे दिखाया जायेगा।
झूठ के आवरण में सच को छुपाया जायेगा।।
झूठ के आवरण में सच को छुपाया जायेगा।।
वह पुरातन संस्कृति और शिष्टाचार को
नवाचारों के लिए क्या न पढ़ाया जायेगा।।
नवाचारों के लिए क्या न पढ़ाया जायेगा।।
फैशन परस्ती में लाज स्वाहा होती देखिए
अब मुलम्मे का भरण मीत गढाया जायेगा।।
अब मुलम्मे का भरण मीत गढाया जायेगा।।
दीगर के कंधों पर खड़ा जो वो बड़ा आदमी
सच अवगुणों को मीत कंचन मढाया जायेगा।।
सच अवगुणों को मीत कंचन मढाया जायेगा।।
ऐ प्रखर संभल तू जरा निखर न यूँ... रौज़ में
तू कामयाबी से कभी औचक गिराया जायेगा।।
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तू कामयाबी से कभी औचक गिराया जायेगा।।
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डॉ प्रखर दीक्षित
फतेहगढ फर्रूखाबाद(उ.प्र.)
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