लेखक-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
-वैदिक साधन आश्रम तपोवन का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव सोत्साह सम्पन्न-
“यज्ञ करने वाला व्यक्ति निर्धन नहीं रहता: आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ”
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव आज सोत्साह सम्पन्न हुआ। आयोजन में आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र जी कुलश्रेष्ठ थे। यज्ञ में वेद-मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों श्री शिव कुमार एवं श्री ओम्प्रकाश जी ने किया। यज्ञ के बीच आवश्यक निर्देश एवं मन्त्रों की विशेष बातों का प्रकाशन आचार्य कुलश्रेष्ठ जी समय समय पर करते रहे। यज्ञ के पश्चात विस्तृत उपदेश भी आचार्य जी करते रहे। यज्ञ के अतिरिक्त युवा सम्मेलन एवं अन्य आयोजनों में भी आचार्य जी ने बहुत ही ज्ञानवर्धक उपदेश किये जिससे प्रत्येक यज्ञकर्ता एवं श्रोता को धर्म एवं यज्ञ आदि विषयों का ज्ञान हुआ। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी तर्क पूर्वक घोषणा करते हैं कि जो भी व्यक्ति यज्ञ करेगा वह निर्धन नहीं हो सकता। यज्ञ करने से आर्थिक उन्नति अवश्य होती है। यज्ञ सहित उत्सव के अन्य आयोजनों में भजनोपदेश करने वालों में पं. सत्यपाल पथिक जी, श्री कल्याण सिंह वेदी एवं श्री आजाद लहरी आर्य के नाम प्रमुख हैं। 13 मई, 2017 को प्रातः 6.30 बजे से 1.00 बजे तक का कार्यक्रम वैदिक साधन आश्रम की मुख्य आश्रम से 3.5 किमी. दूरी पर स्थित पर्वत पर वनो के बीच स्थित तपोभूमि की भव्य एवं विशाल यज्ञशाला में हुआ। इस वर्ष उत्सव में देहरादून के प्रसिद्ध नेत्र शल्य चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा सहित अनेक आर्य विद्वानों को सम्मानित भी किया गया। बड़ी संख्या में वैदिक धर्मी ऋषि भक्त दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य प्रदेशों से पहुंचे। पुस्तक विक्रेता व यज्ञ संबंधी पात्रों के विक्रेता भी आयोजन में पधारेे। यहां आये सभी धर्म प्रेमी श्रद्धालु श्रोता आश्रम की मीठी यादें एवं उपदेशों व भजनों में प्राप्त हुई ज्ञान सामग्री लेकर लौटे हैं जिनसे उनका भावी जीवन निश्चय ही उन्नति को प्राप्त होगा।
दिनांक 10 अप्रैल, 2017 से 13 अप्रैल, 2017 तक आयोजित मुख्य कार्यक्रम हम ऊपर लिख चुके हैं। इस बार आश्रम में एक युवा सम्मेलन भी आयोजित किया गया जिसका संचालन आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने किया। सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी की गौरवपूर्ण उपस्थिति व उपदेश ने भी इस सम्मेलन की सफलता में चार चांद लगाये। आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का प्रभावशाली उपदेश भी युवकों, बच्चों, उनके आचार्यों व श्रोताओं को बहुत दिनों तक स्मरण रहेगा जिसे हम प्रस्तुत कर चुके हैं। आश्रम में नारी सम्मेलन भी रखा गया जिसका विषय नशे से हानियों पर चर्चा एवं उसे रोकने के उपायों पर ध्यान केन्द्रित करना था। समापन दिवस दिनांक 14 मई, 2017 को प्रातः 5.00 बजे से 1 घंटे तक योगासनों सहित ध्यान साधना का प्रशिक्षण दिया गया। प्रातः 6.30 बजे से आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जिसे मुख्य यज्ञशाला की यज्ञ वेदी सहित अन्य 6 वृहत्त यज्ञ कुण्डों में सम्पन्न किया गया। यजमानों सहित सैकड़ों लोगों ने यज्ञ में आहुतियां दी। सभी को यज्ञ के ब्रह्मा जी का आशीर्वाद मिला। आर्य भजनोपदेशक पथिक जी व श्री कल्याण सिंह जी के मनोहर व हृदयस्पर्शी भजन हुए। यज्ञोपदेश करते हुए आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने यज्ञ प्रेमियों को कहा कि यज्ञ सदैव करते रहना। संसार के सभी ऋण इस देव यज्ञ को करने से चुकते हैं। दैनिक यज्ञ निष्काम कर्म होता है। इसी कारण दैनिक यज्ञ में स्विष्टकृदाहुति नहीं दी जाती। इस आहुति का विधान काम्य यज्ञ में होता है। आचार्य जी ने कहा कि गरीबों को कम्बल बांटने से पितृ ऋण चुकता नहीं है। इसके लिए तो माता-पिताओं को भोजन सहित वस्त्र आदि तथा आवश्यकता होने पर औषधि एवं उनकी सेवा सुश्रुषा करना आवश्यक है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ से वायु शुद्ध करने से देवताओं के ऋण से उऋण होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यज्ञोपवीत हमें अपने ऊपर देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण की याद दिलाता है। विद्वान आचार्य जी ने यह भी कहा कि विधिहीन यज्ञ करने से यज्ञ के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती।
अपने आशीर्वचनों में स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी ने आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी के ज्ञान, गुणों व उपदेशों की प्रशंसा की। उत्सव की सफलता का श्रेय स्वामी जी ने तपोवन आश्रम के अधिकारियों को दिया। ऋग्वेद के एक मन्त्र का उल्लेख कर स्वामी जी ने कहा कि इसमें बताया गया है कि हमने जो वैदिक धर्म पकड़ा है, इससे हम कभी अलग न हों। प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी की ओर संकेत कर आपने बताया कि इनके घर 67-68 वर्षों से निरन्तर यज्ञ चला आ रहा है। इनके यहां यज्ञ की अग्नि कभी बुझी नहीं। दोनों पति पत्नी नित्य प्रति यज्ञ करते हैं। स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने इन्हें अग्निहोत्री की पदवी दी है। मैं इनके घर में रहा हूं। यह सवेरे ही यज्ञ कर लेते हैं। इनकी पत्नी श्रीमती सरोज जी भी इनका साथ देती हैं। उन पर भी यज्ञ का प्रभाव है। स्वामी जी ने कहा कि पत्नियां यज्ञ आदि कार्यों में पति की सहायक कम ही होती हैं। स्वामी जी ने वेदमंत्र के भावों को पुनः दोहराया कि हम कभी यज्ञ से अलग न हों। स्वामी जी ने श्रोताओं को अपने जीवन धन्य बनाने की प्रेरणा की। आपकी दान की वृत्ति बन्द न हो। संन्यासियों, विद्वानों व वेद विद्या पढ़ने वाले विद्यार्थियों को हमें दान देना चाहिये। आश्रमों सहित वेद प्रचार करने वाली प्रतिष्ठित संस्थाओं को भी दान देना चाहिये। स्वामी जी ने श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी की भी प्रशंसा की। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी की भी स्वामी जी ने प्रशंसा की। पर्वतीय स्थान पर आश्रम ने जो नई यज्ञशाला बनाई गई है, उसकी ओर स्वामी जी ने संकेत कर कहा कि उस यज्ञशाला में कोई कमी नहीं है। वह बहुत भव्य व नेत्रों को सुख देने वाली बनी है।
आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी ने कहा कि ईश्वर का इस आश्रम परिवार पर कृपा करने के लिए व उत्सव में पधारे सभी धर्म प्रेमियों का धन्यवाद करता हूं। उन्होंने कहा कि उनके परिवार में सन् 1941 से महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज की प्रेरणा से यज्ञ चल रहा है। 76 वर्ष हो गये हैं। 76 वर्ष पूर्व प्रज्जवलित अग्नि इस बीच कभी बुझी नहीं है। वह निरन्तर प्रज्जवलित है। उन्होंने अपना संस्मरण सुनाते हुए कहा कि सन् 1941 में वर्तमान स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी के पिता श्री जीवनानन्द जी ने श्री कृष्ण ब्रह्मचारी जी से चार वेदों के मन्त्रों से यज्ञ कराया था जिसमें चन्दन की समिधायें प्रयोग में लाई गईं थीं। उस समय प्रधान दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी 6 महीने के बालक थे। इस अवसर पर यज्ञ में लिया गया उनका चित्र उनके पास उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि उस चित्र को देखकर उन्हें प्रसन्नता होती है। महात्माओं के आशीर्वाद से मेरे माता-पिता व मुझे यज्ञ करने की प्रेरणा हुई है। ईश्वर का धन्यवाद है कि यज्ञ निरन्तर चल रहा है। श्री अग्निहोत्री जी ने कहा कि वह सन् 1950 से इस वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आते रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन दिनों यहां स्वामी योगेश्वरानन्द जी एवं महात्मा आनन्द स्वामी जी आदि के दर्शन होते थे। उन सभी से यज्ञ की प्रेरणा मिलती रही। प्रधान जी ने सभी विद्वानों व यज्ञ में सहयोग करने वालों का धन्यवाद किया जिनके पुरुषार्थ से यह यज्ञ सफल हुआ है।
यज्ञशाला में यज्ञ की समाप्ति और प्रातःराश के बाद ‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली’ की ओर से आश्रम के मुख्य सभागार में ‘स्वामी दीक्षानन्द स्मृति समारोह’ आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि तपोवन क्षेत्र के विधायक श्री उमेश शर्मा ‘काऊ’ जी थे। उन्होंने आश्रम द्वारा निर्माणाधीन ‘आरोग्य धाम’ के लिए 10 लाख रूपये के दान-अनुदान देने की घोषणा की। सड़क निर्माण के लिए भी प्रभूत धनराशि देंगे। उनका आज के आयोजन में सम्मान किया गया। अनेक अन्य विद्वानों, विदुषी बहनों, आर्यसमाज के अधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं आदि को भी शाल, माला, नगद धनराशि आदि देकर सम्मानित किया गया। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ, आचार्या डा. अन्नपूर्णा, डा. धनंजय आर्य जी, दिल्ली पुरोहित सभा के अध्यक्ष श्री प्रेम पाल शास्त्री जी सहित श्री राकेश भटनागर तथा श्री कन्हैया लाल आर्य आदि अनेक महानुभावों ने समारोह को सम्बोधित किया। पं. सत्यपाल पथिक, श्री कल्याण देव, श्री आजाद सिंह जी आदि के भजन भी हुए। तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों ने भजन व कविताओं सहित गुरु विरजानन्द सरस्वती एवं ऋषि दयानन्द के जीवन पर एक नाटक भी प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि श्री उमेश शर्मा ‘काऊ’ जी ने अपने सम्बोघन में कहा कि आप मुझे समय समय पर आश्रम के कार्यक्रमों में आमंत्रित करते रहते हैं। यहां आयोजित होने वाले शिविरों में भी मुझे आमंत्रित कर मेरा सहयोग करते हैं। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं और आपका धन्यवाद करता हूं। मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि आश्रम के सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यों का वर्णन नहीं किया जा सकता। आप लोग हिन्दू समाज की जागरुकता सहित देश एवं समाज सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। मुख्य अतिथि जी ने आश्रम के अधिकारियों व आश्रम प्रेमियों सहित कार्यक्रम में उपस्थित सभी बहिनों का आभार व्यक्त कर उनका धन्यवाद किया। आश्रम में निर्माणाधीन आरोग्य धाम का उल्लेख कर आपने इसके जनकल्याण रूपी उद्देश्य की सराहना की। आश्रम के निकटवर्ती लोगों के प्रति आश्रम के योगदान व आश्रम की सेवाभावना की वृति का मुख्य अतिथि महोदय द्वारा स्वागत किया गया और संस्था की प्रशंसा की। सभी सन्यासियों को मुख्य अतिथि जी ने नमन किया। आश्रम में पधारे सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करने सहित उनके लिए गहरे आदर भाव को प्रदर्शित किया। यह आश्रम उनके क्षेत्र में है, इसके लिए भी उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आभार व्यक्त किया। मुख्य अतिथि श्री उमेश शर्मा जी ने कहा कि जब कभी किसी रूप में भी आश्रम को उनकी किसी प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता हो तो आश्रमाधिकारी उन्हें निर्देश करें। वह उसे अवश्य पूरा करेंगे। मुख्य अतिथि के सम्मान में आश्रम के सचिव श्री पे्रमप्रकाश शर्मा ने स्वागत भाषण दिया। उनके अनेक गुण बतायें, आश्रम को सहयोग करने के लिए उनका आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद किया और उनके कल्याण की कामना की। आश्रम का उत्सव पूर्णतः सफल रहा। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के यशस्वी प्रधान श्री अनिल आर्य जी ने बहुत योग्यतापूर्वक संचालन किया जिसके लिए वह सबकी ओर से बधाई के पात्र हैं। हम उनके प्रति नमन करते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
-तपोवन में ग्रीष्मोत्सव के तीसरे दिन आयोजित का संक्षिप्त विवरण-
‘गायत्री मन्त्र के जप व चिन्तन से हमारा आध्यात्मिक
विकास होता हैः आचार्य आशीष दर्शनाचार्य’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मोत्सव बुधवार 10 मई 2017 से आरम्भ हुआ है जो सोत्साह चल रहा है। उत्सव के तीसरे दिन 12 मई, 2017 को आयोजित कार्यक्रम में प्रातः 5.00 बजे से साधकों को 1 घंटा योगाभ्यास का प्रशिक्षण दिया गया। प्रातः 6.30 बजे आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ हुआ जिसके ब्रह्मा आगरा से पधारे विद्वान आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी थे। यज्ञ में मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो ब्रह्मचारियों श्री शिवकुमार एवं श्री ओम् प्रकाश जी ने किया। यज्ञ के बाद भजन सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी और भजनोपदेशक श्री कल्याण सिंह जी के भजन हुए। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्य योगाभ्यास करते हुए जब समाधि तक पहुंचता है और समाधि सफल होती है तब उसे ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उन्होंने कहा कि वाणी आकाश में रहती व वहीं तक पहुंचती है। उसके परे ईश्वर तक वह नहीं पहुंच पाती। आचार्य जी ने कहा के मन के बिना ध्यान नहीं लगता। वाणी व मन दोनों में काल्पनिक स्पर्धा हुई कि जीवात्मा को ईश्वर तक वाणी और मन में से कौन पहुंचाता है तो प्रजापति ने दोनों के सभी दावों को सुनकर निर्णय दिया कि ईश्वर तक जीवात्मा को मन ही पहुंचाता है। आचार्य जी का प्रवचन काफी देर तक चला। समय और स्थानाभाव के कारण हम प्रवचन का शेष भाग अन्य अवसर पर प्रस्तुत करेंगे। यज्ञ, भजन एवं प्रवचन का संचालन ऋषिभक्त श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, ज्वालापुर ने बहुत योग्यता एवं प्रभावपूर्ण ढंग से किया। आपकी वाणी में मधुरता एवं अमृत घुला है जो श्रोताओं पर जादू का सा प्रभाव करता है। आपका आकर्षक व्यक्तित्व भी सभी ऋषिभक्तों को प्रभावित करता है।
यज्ञ की समाप्ति के बाद प्रातः 10.00 बजे से आश्रम के भव्य सभागार में एक ‘महिला सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। विषय था ‘नशा मुक्ति में नारी की भूमिका’। इस सम्मेलन की मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पा गुसांई जी थी। संचालन ऋषि भक्त बहिन श्रीमती सुरेन्द्र अरोड़ा जी ने किया। आयोजन में भजन, कविता पाठ सहित नशे के मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव व परिवार के सभी सदस्यों पर आर्थिक व अन्य कुप्रभावों को सभी वक्ताओं ने अपने सारगर्भित सम्बोघनों में रेखांकित किया। इस सम्मेलन के कुछ वक्ताओं में मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पा गोसाई सहित डा. अन्नपूर्णा, डा. सुखदा सोलंकी जी, श्रीमती सुरेन्द्र अरोड़ा, श्रीमती सरोज आर्या थी। माता श्रीमती सन्तोष रहेजा जी और माता श्रीमती सरोज अग्निहोत्री जी की पावन गौरवमयी उपस्थिति में आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
सायंकालीन यज्ञ एवं सत्संग का आरम्भ अपरान्ह 3.30 बजे आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ से हुआ जिसके मध्य में आचार्य उमेश चन्द्र जी कुलश्रेष्ठ वेद मन्त्रों की व्याख्यायें यज्ञ प्रेमियों को सुनाते रहे। आज देहरादून में आंधी व तूफान आ जाने के कारण यज्ञ को आश्रम की मुख्य यज्ञशाला तक ही सीमित रखना पड़ा। यज्ञशाला में ही भजन व उपदेश तथा इसके बाद ब्रह्मयज्ञ अर्थात् सन्ध्या सम्पन्न हुई। प्रवचन आचार्य कुलश्रेष्ठ जी का हुआ। आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने शेष कार्यक्रमों की जानकारी सहित सूचनायें आदि श्रोताओं को दीं।
रात्रिकालीन सत्संग रात्रि लगभग 7.50 बजे से आरम्भ हुआ। आरम्भ में श्री आजाद सिंह आर्य और पं. सत्यपाल पथिक जी के भजन हुए। श्री आजाद सिंह जी ने दो भजन गाये। उनके द्वारा गाया गया दूसरा भजन था ‘वेदों के राही दयानन्द स्वामी तेरा जाग जाना सफल हो गया। शिवरात्रि को जब सब सो रहे थे तेरा जाग जाना सफल हो गया।’ पं. सत्यापाल पथिक जी ने जो भजन सुनाये वह थे ‘हमारे देश में भगवन भले इंसान पैदा कर, सफल सुख सम्पदा वाली सुखी सन्तान पैदा कर।’ दूसरा भजन था ‘ओंकार प्रभु नाम जपो ओंकार प्रभु नाम जपो। मन में ध्यान लगाकर सुबह और शाम जपो। ओंकार प्रभु नाम जपो।।’ पथिक जी ने तीसरा भजन सुनाया जिसे वह अपनी मास्टरपीस रचना कहते हैं। इसके आरम्भ के कुछ शब्द हैं ‘प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो। प्रभु तुम गगन से विशाल हो। मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी। दुनियां में तुम बेमिसाल हो। प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो।।’
भजन के बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का उपदेश हुआ। उन्होंने कहा कि कुछ लोग मानते हैं कि मनुष्य जो पाप करता है वह माफ हो जाते हैं। इस विषय की आचार्य जी ने विस्तार से चर्चा कर बताया कि यह मानना गलत है कि ईश्वर किसी के किसी पाप को क्षमा कर सकता है। उन्होंने कहा कि वैदिक सत्य सिद्धान्तों के अनुसार मनुष्य का कोई एक शुभ व अशुभ कर्म भी बिना उसका यथोचित फल भोगे नष्ट नहीं होता। उन्होंने कहा कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी होने से सबके सभी कर्मों का साक्षी है। पाप करने के बाद पाप व अशुभ कर्मों के बीज पकते हैं और पकने के बाद इस जन्म व परजन्मों में हमें मनुष्य व अन्य योनियों में जन्म लेकर इनके फलों को भोगना पड़ता है। आचार्य जी का व्याख्यान विस्तृत है। इसे भी हम कुछ समय बाद प्रस्तुत करेंगे।
आचार्य कुलश्रेष्ठ जी के बाद आश्रम के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान आचार्य आशीष जी का प्रवचन हुआ। आशीष जी ने आचार्य कुलश्रेष्ठ जी के विचारों से सहमति जताई और इस सूक्ष्म विषय को बहुत सरल शब्दों में प्रस्तुत करने के लिए उनकी प्रशंसा की। विचारों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आशीष जी ने कहा कि कर्म एवं हमारे कर्मों पर आधारित पुनर्जन्म अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आचार्य जी ने कहा कि हम पुनर्जन्म को जितना समझते हैं उतना हम अपने कर्मों के प्रति पूर्व की अपेक्षा अधिक सावधान होते चले जाते हैं। आचार्य आशीष जी ने वैदिक ग्रन्थों सत्यार्थ प्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका सहित समग्र वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि ग्रन्थों को पढ़कर हमें सत्य ज्ञान व उसका ज्ञानसार मिलता है जो साधारण कोटि के मनुष्यों द्वारा रचित ग्रन्थों को पढ़कर नहीं मिलता। आचार्य जी ने अपने आज के प्रवचन में ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना पर अपने विचार प्रस्तुत किये। स्तुति का यथार्थ अर्थ व अभिप्राय बताया और कहा कि ईश्वर के यथार्थ गुणों को जानकर उससे स्तुति करने से ईश्वर के प्रति हमारी प्रीति में वृद्धि होती है। आचार्य जी ने कहा कि स्तुति सगुण व निर्गुण दो प्रकार की होती है। इसे उन्होंने विस्तार से अनेक उदहारण देकर समझाया। आचार्य जी ने कहा कि स्तुति के अनुरूप स्वयं का जीवन भी बनाना चाहिये। हम लक्ष्य की प्राप्ति में ईश्वर से जो सहायता मांगते हैं वह प्रार्थना होती है। उन्होंने कहा कि स्तुति प्रथम स्थान पर है और उपासना उसके बाद होती है। आचार्य जी ने कहा कि प्रार्थना स्तुति व उपासना के बाद होती है। गायत्री मन्त्र को आपने स्तुति, उपासना और प्रार्थना का सबसे अच्छा मंत्र बताया और इसका अर्थपूर्वक जप करने की प्रेरणा की। अपने प्रवचन को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि गायत्री मन्त्र के जप व चिन्तन से हमारा आध्यात्मिक विकास हो जाता है। शान्ति पाठ के बाद रात्रिकालीन सत्संग समाप्त हुआ।
इन सभी कार्यक्रमों में आश्रम के श्री प्रधान जी, श्री मंत्री जी एवं स्थानीय व्यक्तियों सहित बाहर से पधारे ऋषिभक्त बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
-मनमोहन कुमार आर्य
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-‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन के ग्रीष्मोत्सव के चौथे दिन संपन्न कुछ कार्यक्रम-
‘भजन व प्रवचनों के आयोजन सहित प्रसिद्ध नेत्र
चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा सम्मानित’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन के चौथे दिन सम्पन्न कुछ कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। वैदिक साधन आश्रम तपोवन दो स्थानों पर स्थित है। दोनो में परस्पर 3 से 3.5 किमी. की दूरी है। आश्रम देहरादून में नगर से 6.50 किमी दूरी पर नालापानी रोड क्षेत्र में मुख्य सड़क के किनारे स्थिति है जहां से लोकल बस रेलवे स्टेशन व अन्य स्थानों के लिए उपलब्ध है। आश्रम के एक ओर पहाड़ियां और वन हैं, उन्हीं के चरणों में यह आश्रम स्थित है। नीचे मुख्य आश्रम है जहां साधको के लिए अनेक कुटियाएं बनी हुई हैं। यज्ञशाला, बड़ा भव्य नवीन आधुनिक सभागार, अतिथियों के लिए निवास व कार्यालय आदि हैं। यहां दन्त चिकित्सक आदि भी उपलब्ध होते हैं। आरोग्य धाम नाम से एक भव्य व विशाल भवन का निर्माण पूर्णता की ओर चल रहा है। दानी महानुभावों से इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सहयोग की आवश्यकता है। आशा है कि यह कार्य शीघ्र ही पूरा हो जायेगा। आरोग्य धम के जो भाग पूर्ण हो गये हैं उसमें चिकित्सीय सेवायें शीघ्र आरम्भ होने की संभावना है। आश्रम का दूसरा भाग इस मुख्य आश्रम से 3.5 किमी. दूरी पर पहाड़ियों व वन के बीच ऊंची चढ़ाई पर स्थित है। इस आश्रम के चारों ओर वन है। मुख्य द्वार के सामने खलंगा रोड जा रही है। खंलगा में अंग्रेजों के साथ नेपालियों का युद्ध हुआ था। उसके अवशेष आज भी वहां है। इस ऐतिहासिक स्थान को देखने भी दूर दूर से लोग आते हैं। आश्रम का स्थान पूरी तरह से शान्त है। शुद्ध वातावरण है। ध्यानी लोग यहां आकर ध्यान व योग साधना करते हैं और इसे उत्तम स्थान बताते हैं। पूर्व में स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, महात्मा आनन्द स्वामी, महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज, महात्मा दयानन्द वानप्रस्थी, स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी, महात्मा बलदेव जी, बिजनौर व अनेक प्रसिद्ध विद्वान साधना कर चुके हैं। हम भी विगत 45 वर्षों से इस स्थान पर यदा कदा जाते रहते हैं। यहां जो भी आयोजन होते हैं उनमें सम्मिलित होने का हमारा प्रयास रहता है। समय समय पर हमने यहां पर आयोजित चतुर्वेद पारायण यज्ञ व अन्य कार्यक्रमों की विस्तृत सूचनायें व समाचार भी फेसबुक व इमेल से अपने मित्रों से चित्रों सहित साझा किये हैं। आश्रम एक गोशाला एवं तपोवन विद्या निकेतन नाम सेएक जूनियर हाईस्कूल का संचालन भी करता है जहां अधिकांश निर्धन परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। बच्चों को आर्य संस्कार दिये जाते हैं। सप्ताह में चार दिन सभी बच्चे यज्ञ भी करते हैं। आर्यसमाज की विचारधारा की धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी के प्रयत्नों से प्रभावशाली रूप से चल रही है। बच्चे आर्य विचारधारा से प्रायः परिचित हैं।
वैदिक साधन आश्रम में वर्ष में दो बार ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव नाम से विस्तृत पांच दिवसीय आयोजन होते हैं। समापन दिवस से एक दिन पूर्व का प्रातः से दोपहर तक का आयोजन इसी पर्वतीय तपोस्थली स्थान पर किया जाता है। लोग अपने वाहनों से वहां पहुंच जाते हैं। कुछ शोभायात्रा के माध्यम से पहुंचते हैं और बहुतों को लाने ले जाने के लिए कई बसों की व्यवस्था की जाती है। इस वर्ष आश्रम पधारे सभी श्रद्धालुओं को प्रातः 6.00 बजे ही इस स्थान पर पहुंचाया गया। प्रातः 6.30 बजे से यज्ञ हुआ। यज्ञ के समापन के बाद सभी यज्ञप्रेमियों व श्रद्धालुओं ने प्रातराश लिया। इसके बाद भजन व प्रवचनों का कार्यक्रम हुआ। यह भी बता दें कि इस स्थान पर एक अत्यन्त भव्य व विशाल यज्ञशाला का निर्माण किया गया है जिसमें पांच यज्ञ कुण्ड स्थाई रूप से बनाये गये है। कल पहली बार यहां पहुंचे प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक जी और आगरा के आर्य विद्वान तथा वर्तमान में किये जा रहे ऋग्वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी इसे देखकर आश्चर्यान्वित हुए और इसकी अनेक प्रकार से मंच से प्रशंसा करते हुए देखे गये। प्रातःराश के बाद प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री आजाद सिंह आर्य, पं. सत्यापाल पथिक, श्री कल्याण सिंह वेदी जी तथा श्री उम्मेद सिंह जी के उत्तम व मनोहर भजन हुए। आश्रम पधारे कुछ भाई व बहनों के भी भजन व गीत भी श्रोताओं को इस अवसर पर सुनने को मिले। प्राकृतिक चिकित्सक डा. विनोद शर्मा जी ने भी श्रोताओं को सम्बोधित किया और स्वास्थ्य रक्षा संबंधी अनेक उत्तम बातों पर प्रकाश डाला। मुख्य प्रवचन यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र स्नातक जी का हुआ। उन्होंने मृत्यु और शरीर के अन्त्येष्टि संस्कार पर वेद आदि शास्त्र वर्णित विचारों को प्रस्तुत कर इसकी उत्तम व्याख्या की। अन्त में स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी ने सभी श्रोताओं को आशीवर्चन कहे। आयोजन की समाप्ति पर सभी लोग अपने वाहनों व आश्रम द्वारा उपलब्ध कराई गई बसों के द्वारा मुख्य आश्रम में आ गये और वहां भोजन किया।
अपरान्ह 3.30 बजे से वेद पारायण यज्ञ मुख्य यज्ञशाला सहित 5 अतिरिक्त वृहत यज्ञ कुण्डों में हुआ। यज्ञ की समाप्ती पर पं. सत्यपाल पथिक जी व श्री कल्याण सिंह वेदी के मनोहर भजन हुए। वेदी जी ने यज्ञ विषयक बहुत मार्मिक घटनायें सुनाईं और यज्ञ विषयक एक अपना स्वरचित भजन सुनाया जो बहुत ही प्रभावशाली था। भजन के शब्द, भाव व सुनाने की शैली अद्भुत थी। हमने इसका कुछ भाग रिकार्ड भी कर लिया। भजन के आरम्भिक शब्द थे ‘जिस घर में होता यज्ञ नहीं, श्मशान जैसे डेरे में क्या जीवन तेरा।’ इसके बाद श्री कुलश्रेष्ठ जी का यज्ञ के तीन स्तम्भ व अंगों देवपूजा, संगतिकरण व दान पर प्रवचन हुआ। इस प्रवचन में संगतिकरण के महत्व की बहुत व्यवहारिक एवं सर्वग्राह्य व्याख्या आर्य विद्वान ने प्रस्तुत कर सबका दिल जीत लिया। लोग वाह् वाह् कर रहे थे।
रात्रि 7.30 बजे से 10.00 बजे तक ‘भजन सन्ध्या’ का आयोजन किया गया जिसमें श्री आजाद सिंह आर्य, पं. सत्यपाल पथिक जी, बहिन श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी और श्री कल्याण सिंह वेदी जी के चुने हुए प्रभावशाली भजन हुए। इसी बीच आश्रम द्वारा आमंत्रित देहरादून के प्रसिद्ध नेत्र शल्य चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा जी का अभिनन्दन व सम्मान भी किया गया। डा. दिनेश शर्मा जी आर्य पिता श्री द्वारका दत्त शर्मा, अमृतसर के यशस्वी पुत्र हंै। आपका विगत 30 वर्षों से देहरादून में नेत्र रोगों की चिकित्सा प्रदान करने वाला ‘अमृतसर नेत्र चिकित्सालय’ सेवारत है। लाखों लोग इससे लाभ उठा चुके हैं। लगभग 50 हजार लोगों ने अनुमानतः आपरेशन भी कराये हैं। इस चिकित्सालय में विश्वस्तरीय सभी सुविधायें हंै। बड़ा स्टाफ एवं अन्य योग्य चिकित्सक हैं। निर्धन लोगों का निःशुल्क उपचार व आंखों के आपरेशन किये जाते हैं। हमारे अनेक मित्र इस सुविधा से लाभान्वित हुए हैं। डा. दिनेश शर्मा अपने बाल्यकाल में अमृतसर के लारेंसो रोड आर्यसमाज से जुड़े रहे। पिताजी के साथ आर्यसमाज जाते थे। आपके घर में आज भी सभी धार्मिक कार्यक्रम वैदिक यज्ञ से सम्पादित किये जाते हैं। आर्य पुरोहित पं. वेदवसु शास्त्री जी समय समय पर आपके यहां यज्ञ आदि सम्पादित करते हैं। आपको तपोवन आश्रम की ओर से मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी, न्यासी श्री विजय गोयल सहित विद्वानों ने मोतियों की माला शाल ओढ़ाकर सम्मान किया। मनमोहन कुमार आर्य ने आपका परिचय व अभिनन्दन के शब्द कहे। रात्रि 10.00 बजे ग्रीष्मोत्सव के चतुर्थ दिवस का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
“डा. धर्मवीर, प्रधान परोपकारिणी सभा, अजमेर पर
भजन सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी का श्रद्धांजलि गीत”
(तर्जः- है प्रीत जहां की रीत सदा)
प्रस्तुतकर्ताः मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
आजकल देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव चल रहा है। अनेक विद्वानों सहित आर्य भजन के भक्ति संगीत के शीर्षस्थ विद्वान और गीतकार पं. सत्यपाल पथिक जी भी पधारे हुए हैं। उनसे प्रतिदिन मिलना हो रहा है। कल अवकाश के क्षणों में हमारी उनसे वार्ता हुई। आपने कीर्तिशेष डा. धर्मवीर जी, पूर्व अध्यक्ष, परोपकारिणी सभा, अजमेर पर कुछ समय पूर्व एक गीत लिखा है। उनके उस गीत पर भी चर्चा हुई। पथिक जी ने हमें वह गीत सुनाया। हमें लगा कि इससे आर्यजगत के सभी बन्धुओं को अवगत कराना उचित होगा, अतः पथिक जी का गीत प्रस्तुत हैं:
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
सब सज्जन पुरुष खुले दिल से इक बात हमेशा कहते हैं।
शुभ कर्मशील इंसान सदा दुनियां के दिलों में रहते हैं।
सूरज की तरह दिखने वाले आलोक फैलाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
उपकार भावना से सब को सन्मार्ग दिखाते देखा है।
उलझे मतवाले लोगों की उलझन सुलाझाते देखा है।
बदसूरत चेहरे वालों को दर्पण दिखलाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
गम्भीर सरल उपदेशों से हर दिल को लुभाया करते थे।
नस नस में उतर जाने वाले सन्देश सुनाया करते थे।
वह वैदिक जीवन शैली को घर घर पहुंचा कर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर घर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
कब कौन सा पत्ता पीपल को पतझड़ की नमस्ते कह जाये।
संसार-वृक्ष चुपचाप खड़ा हाथों को मसलता रह जाये।
क्या कहें ‘‘पथिक” सबके दिल में निज प्यार बसा कर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
(गीत समाप्त)
इसी अवसर पर स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी पर भी चर्चा चली। इस प्रसंग में पथिक जी ने पंजाब के एक ऋषि भक्त पं. गंगाराम जी की चर्चा की। स्वामी जी ने इनका संक्षिप्त परिचय अपनी पुस्तक ‘इतिहास दर्पण’ में लिखा है। पं. गंगा राम जी सत्याचरण की साक्षात् मूर्ति थे। आप पंजाब के एक रेलवे स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे। एक बार, संबंधित कर्मचारी के कार्य पर न आने के कारण, आपसे गलती से ट्रेन का गलत कांटा लग गया। तेज गति से एक्सप्रेस रेल आ रही थी जिसको बिना रूके आगे जाना था। इस रेल का चालक होशियार था। उसे सिग्नल देखकर आशंका हुई तो वह सावधान हो गया और उसने स्टेशन पर खड़ी रेल से कुछ ही दूर पहले गाड़ी को ब्रेक लगाकर रोक दिया जिससे बहुत बड़ी दुर्घटना होने से बच गई। उच्च. अधिकरियों द्वारा आपका स्पष्टीकरण मांगा गया। आपने जो सत्य बात थी उसे लिखा और घटना का उत्तरदायित्व लिया। आपके स्टेशन मास्टर ने आपके स्पष्टीकरण को पढ़ा तो आपको सावधान करते हुए नौकरी बचाने की दृष्टि से कोई मनघड़न्त कहानी लिखने को कहा। आपने उनका आदर किया और कागज घर ले आये। दो-तीन दिन बाद आपने अपना वही पूर्व का स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया। आपकी आत्मा सत्य को बदलने को तैयार नहीं हुई। अंग्रेज अधिकारियों ने उस स्पष्टीकरण को देखा तो वह दंग रह गये। आपके पूरे कार्यकाल की चरित्र पंजिका देखी गई तो पाया कि यह व्यक्ति कभी देर से ड्यूटी पर नहीं आया और न कभी अवकाश लिया। यह जानकर उन्हें लगा कि इस अधिकारी को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाये। ऐसा ही हुआ परन्तु इसका विभाग के अन्य कर्मचारियों ने विरोध किया। इससे पूर्व जिन्हें कर्तव्यहीनता के कारण निकाला गया था, वह व उनके समर्थक इन्हें नौकरी से निकालने की मांग कर रहे थे। अधिकारियों ने समीक्षा की और उन्हें बताया कि इस व्यक्ति ने पूरे सेवा काल में कभी कर्तव्यहीनता नहीं की। पहली बार गलती की, उसे भी इसने स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है। इसे नौकरी जाने की चिन्ता नहीं है। यह तो स्वयं कह रहा है कि मुझे उचित सजा दी जाये। यदि ऐसे व्यक्ति को नौकरी से निकाल देंगे तो फिर ऐसा सच्चा कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति कहां मिलेगा। कौन मनुष्य है जिससे कभी गलती नहीं होती? यह गलती इन्होंने जानबूझकर नहीं की अपितु वह इनसे अजजाने में हुई। यह पं. गंगा राम के सत्याचार का बल था कि उन्होंने सत्य के लिए अपनी नौकरी की भी परवाह नहीं की। पं. गंगा राम जी के जीवन की ऐसी एक दो और घटनायें भी पथिक जी ने प्रेम व स्नेह वश हमें सुनाई। हम अवकाश मिलने पर इन्हें पाठकों के लिए प्रस्तुत करेंगे जिससे उन्हें सत्याचरण में प्रवृत्त होने का बल व शक्ति प्राप्त हो। अभी इतना ही। ओ३म् शम्।
प्रस्तुतकर्ताः मनमोहन कुमार आर्य
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-वैदिक साधन आश्रम तपोवन का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव सोत्साह सम्पन्न-
“यज्ञ करने वाला व्यक्ति निर्धन नहीं रहता: आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ”
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का पांच दिवसीय ग्रीष्मोत्सव आज सोत्साह सम्पन्न हुआ। आयोजन में आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र जी कुलश्रेष्ठ थे। यज्ञ में वेद-मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों श्री शिव कुमार एवं श्री ओम्प्रकाश जी ने किया। यज्ञ के बीच आवश्यक निर्देश एवं मन्त्रों की विशेष बातों का प्रकाशन आचार्य कुलश्रेष्ठ जी समय समय पर करते रहे। यज्ञ के पश्चात विस्तृत उपदेश भी आचार्य जी करते रहे। यज्ञ के अतिरिक्त युवा सम्मेलन एवं अन्य आयोजनों में भी आचार्य जी ने बहुत ही ज्ञानवर्धक उपदेश किये जिससे प्रत्येक यज्ञकर्ता एवं श्रोता को धर्म एवं यज्ञ आदि विषयों का ज्ञान हुआ। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी तर्क पूर्वक घोषणा करते हैं कि जो भी व्यक्ति यज्ञ करेगा वह निर्धन नहीं हो सकता। यज्ञ करने से आर्थिक उन्नति अवश्य होती है। यज्ञ सहित उत्सव के अन्य आयोजनों में भजनोपदेश करने वालों में पं. सत्यपाल पथिक जी, श्री कल्याण सिंह वेदी एवं श्री आजाद लहरी आर्य के नाम प्रमुख हैं। 13 मई, 2017 को प्रातः 6.30 बजे से 1.00 बजे तक का कार्यक्रम वैदिक साधन आश्रम की मुख्य आश्रम से 3.5 किमी. दूरी पर स्थित पर्वत पर वनो के बीच स्थित तपोभूमि की भव्य एवं विशाल यज्ञशाला में हुआ। इस वर्ष उत्सव में देहरादून के प्रसिद्ध नेत्र शल्य चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा सहित अनेक आर्य विद्वानों को सम्मानित भी किया गया। बड़ी संख्या में वैदिक धर्मी ऋषि भक्त दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य प्रदेशों से पहुंचे। पुस्तक विक्रेता व यज्ञ संबंधी पात्रों के विक्रेता भी आयोजन में पधारेे। यहां आये सभी धर्म प्रेमी श्रद्धालु श्रोता आश्रम की मीठी यादें एवं उपदेशों व भजनों में प्राप्त हुई ज्ञान सामग्री लेकर लौटे हैं जिनसे उनका भावी जीवन निश्चय ही उन्नति को प्राप्त होगा।
दिनांक 10 अप्रैल, 2017 से 13 अप्रैल, 2017 तक आयोजित मुख्य कार्यक्रम हम ऊपर लिख चुके हैं। इस बार आश्रम में एक युवा सम्मेलन भी आयोजित किया गया जिसका संचालन आर्यजगत के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने किया। सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी की गौरवपूर्ण उपस्थिति व उपदेश ने भी इस सम्मेलन की सफलता में चार चांद लगाये। आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का प्रभावशाली उपदेश भी युवकों, बच्चों, उनके आचार्यों व श्रोताओं को बहुत दिनों तक स्मरण रहेगा जिसे हम प्रस्तुत कर चुके हैं। आश्रम में नारी सम्मेलन भी रखा गया जिसका विषय नशे से हानियों पर चर्चा एवं उसे रोकने के उपायों पर ध्यान केन्द्रित करना था। समापन दिवस दिनांक 14 मई, 2017 को प्रातः 5.00 बजे से 1 घंटे तक योगासनों सहित ध्यान साधना का प्रशिक्षण दिया गया। प्रातः 6.30 बजे से आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जिसे मुख्य यज्ञशाला की यज्ञ वेदी सहित अन्य 6 वृहत्त यज्ञ कुण्डों में सम्पन्न किया गया। यजमानों सहित सैकड़ों लोगों ने यज्ञ में आहुतियां दी। सभी को यज्ञ के ब्रह्मा जी का आशीर्वाद मिला। आर्य भजनोपदेशक पथिक जी व श्री कल्याण सिंह जी के मनोहर व हृदयस्पर्शी भजन हुए। यज्ञोपदेश करते हुए आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने यज्ञ प्रेमियों को कहा कि यज्ञ सदैव करते रहना। संसार के सभी ऋण इस देव यज्ञ को करने से चुकते हैं। दैनिक यज्ञ निष्काम कर्म होता है। इसी कारण दैनिक यज्ञ में स्विष्टकृदाहुति नहीं दी जाती। इस आहुति का विधान काम्य यज्ञ में होता है। आचार्य जी ने कहा कि गरीबों को कम्बल बांटने से पितृ ऋण चुकता नहीं है। इसके लिए तो माता-पिताओं को भोजन सहित वस्त्र आदि तथा आवश्यकता होने पर औषधि एवं उनकी सेवा सुश्रुषा करना आवश्यक है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ से वायु शुद्ध करने से देवताओं के ऋण से उऋण होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यज्ञोपवीत हमें अपने ऊपर देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण की याद दिलाता है। विद्वान आचार्य जी ने यह भी कहा कि विधिहीन यज्ञ करने से यज्ञ के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती।
अपने आशीर्वचनों में स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी ने आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी के ज्ञान, गुणों व उपदेशों की प्रशंसा की। उत्सव की सफलता का श्रेय स्वामी जी ने तपोवन आश्रम के अधिकारियों को दिया। ऋग्वेद के एक मन्त्र का उल्लेख कर स्वामी जी ने कहा कि इसमें बताया गया है कि हमने जो वैदिक धर्म पकड़ा है, इससे हम कभी अलग न हों। प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी की ओर संकेत कर आपने बताया कि इनके घर 67-68 वर्षों से निरन्तर यज्ञ चला आ रहा है। इनके यहां यज्ञ की अग्नि कभी बुझी नहीं। दोनों पति पत्नी नित्य प्रति यज्ञ करते हैं। स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने इन्हें अग्निहोत्री की पदवी दी है। मैं इनके घर में रहा हूं। यह सवेरे ही यज्ञ कर लेते हैं। इनकी पत्नी श्रीमती सरोज जी भी इनका साथ देती हैं। उन पर भी यज्ञ का प्रभाव है। स्वामी जी ने कहा कि पत्नियां यज्ञ आदि कार्यों में पति की सहायक कम ही होती हैं। स्वामी जी ने वेदमंत्र के भावों को पुनः दोहराया कि हम कभी यज्ञ से अलग न हों। स्वामी जी ने श्रोताओं को अपने जीवन धन्य बनाने की प्रेरणा की। आपकी दान की वृत्ति बन्द न हो। संन्यासियों, विद्वानों व वेद विद्या पढ़ने वाले विद्यार्थियों को हमें दान देना चाहिये। आश्रमों सहित वेद प्रचार करने वाली प्रतिष्ठित संस्थाओं को भी दान देना चाहिये। स्वामी जी ने श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी की भी प्रशंसा की। आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी की भी स्वामी जी ने प्रशंसा की। पर्वतीय स्थान पर आश्रम ने जो नई यज्ञशाला बनाई गई है, उसकी ओर स्वामी जी ने संकेत कर कहा कि उस यज्ञशाला में कोई कमी नहीं है। वह बहुत भव्य व नेत्रों को सुख देने वाली बनी है।
आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी ने कहा कि ईश्वर का इस आश्रम परिवार पर कृपा करने के लिए व उत्सव में पधारे सभी धर्म प्रेमियों का धन्यवाद करता हूं। उन्होंने कहा कि उनके परिवार में सन् 1941 से महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज की प्रेरणा से यज्ञ चल रहा है। 76 वर्ष हो गये हैं। 76 वर्ष पूर्व प्रज्जवलित अग्नि इस बीच कभी बुझी नहीं है। वह निरन्तर प्रज्जवलित है। उन्होंने अपना संस्मरण सुनाते हुए कहा कि सन् 1941 में वर्तमान स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी के पिता श्री जीवनानन्द जी ने श्री कृष्ण ब्रह्मचारी जी से चार वेदों के मन्त्रों से यज्ञ कराया था जिसमें चन्दन की समिधायें प्रयोग में लाई गईं थीं। उस समय प्रधान दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी 6 महीने के बालक थे। इस अवसर पर यज्ञ में लिया गया उनका चित्र उनके पास उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि उस चित्र को देखकर उन्हें प्रसन्नता होती है। महात्माओं के आशीर्वाद से मेरे माता-पिता व मुझे यज्ञ करने की प्रेरणा हुई है। ईश्वर का धन्यवाद है कि यज्ञ निरन्तर चल रहा है। श्री अग्निहोत्री जी ने कहा कि वह सन् 1950 से इस वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आते रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन दिनों यहां स्वामी योगेश्वरानन्द जी एवं महात्मा आनन्द स्वामी जी आदि के दर्शन होते थे। उन सभी से यज्ञ की प्रेरणा मिलती रही। प्रधान जी ने सभी विद्वानों व यज्ञ में सहयोग करने वालों का धन्यवाद किया जिनके पुरुषार्थ से यह यज्ञ सफल हुआ है।
यज्ञशाला में यज्ञ की समाप्ति और प्रातःराश के बाद ‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली’ की ओर से आश्रम के मुख्य सभागार में ‘स्वामी दीक्षानन्द स्मृति समारोह’ आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि तपोवन क्षेत्र के विधायक श्री उमेश शर्मा ‘काऊ’ जी थे। उन्होंने आश्रम द्वारा निर्माणाधीन ‘आरोग्य धाम’ के लिए 10 लाख रूपये के दान-अनुदान देने की घोषणा की। सड़क निर्माण के लिए भी प्रभूत धनराशि देंगे। उनका आज के आयोजन में सम्मान किया गया। अनेक अन्य विद्वानों, विदुषी बहनों, आर्यसमाज के अधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं आदि को भी शाल, माला, नगद धनराशि आदि देकर सम्मानित किया गया। आचार्य आशीष दर्शनाचार्य, आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ, आचार्या डा. अन्नपूर्णा, डा. धनंजय आर्य जी, दिल्ली पुरोहित सभा के अध्यक्ष श्री प्रेम पाल शास्त्री जी सहित श्री राकेश भटनागर तथा श्री कन्हैया लाल आर्य आदि अनेक महानुभावों ने समारोह को सम्बोधित किया। पं. सत्यपाल पथिक, श्री कल्याण देव, श्री आजाद सिंह जी आदि के भजन भी हुए। तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों ने भजन व कविताओं सहित गुरु विरजानन्द सरस्वती एवं ऋषि दयानन्द के जीवन पर एक नाटक भी प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि श्री उमेश शर्मा ‘काऊ’ जी ने अपने सम्बोघन में कहा कि आप मुझे समय समय पर आश्रम के कार्यक्रमों में आमंत्रित करते रहते हैं। यहां आयोजित होने वाले शिविरों में भी मुझे आमंत्रित कर मेरा सहयोग करते हैं। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं और आपका धन्यवाद करता हूं। मुख्य अतिथि महोदय ने कहा कि आश्रम के सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यों का वर्णन नहीं किया जा सकता। आप लोग हिन्दू समाज की जागरुकता सहित देश एवं समाज सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। मुख्य अतिथि जी ने आश्रम के अधिकारियों व आश्रम प्रेमियों सहित कार्यक्रम में उपस्थित सभी बहिनों का आभार व्यक्त कर उनका धन्यवाद किया। आश्रम में निर्माणाधीन आरोग्य धाम का उल्लेख कर आपने इसके जनकल्याण रूपी उद्देश्य की सराहना की। आश्रम के निकटवर्ती लोगों के प्रति आश्रम के योगदान व आश्रम की सेवाभावना की वृति का मुख्य अतिथि महोदय द्वारा स्वागत किया गया और संस्था की प्रशंसा की। सभी सन्यासियों को मुख्य अतिथि जी ने नमन किया। आश्रम में पधारे सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करने सहित उनके लिए गहरे आदर भाव को प्रदर्शित किया। यह आश्रम उनके क्षेत्र में है, इसके लिए भी उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए आभार व्यक्त किया। मुख्य अतिथि श्री उमेश शर्मा जी ने कहा कि जब कभी किसी रूप में भी आश्रम को उनकी किसी प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता हो तो आश्रमाधिकारी उन्हें निर्देश करें। वह उसे अवश्य पूरा करेंगे। मुख्य अतिथि के सम्मान में आश्रम के सचिव श्री पे्रमप्रकाश शर्मा ने स्वागत भाषण दिया। उनके अनेक गुण बतायें, आश्रम को सहयोग करने के लिए उनका आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद किया और उनके कल्याण की कामना की। आश्रम का उत्सव पूर्णतः सफल रहा। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के यशस्वी प्रधान श्री अनिल आर्य जी ने बहुत योग्यतापूर्वक संचालन किया जिसके लिए वह सबकी ओर से बधाई के पात्र हैं। हम उनके प्रति नमन करते हैं।
-मनमोहन कुमार आर्य
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देहरादून-248001
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ओ३म्
-तपोवन में ग्रीष्मोत्सव के तीसरे दिन आयोजित का संक्षिप्त विवरण-
‘गायत्री मन्त्र के जप व चिन्तन से हमारा आध्यात्मिक
विकास होता हैः आचार्य आशीष दर्शनाचार्य’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मोत्सव बुधवार 10 मई 2017 से आरम्भ हुआ है जो सोत्साह चल रहा है। उत्सव के तीसरे दिन 12 मई, 2017 को आयोजित कार्यक्रम में प्रातः 5.00 बजे से साधकों को 1 घंटा योगाभ्यास का प्रशिक्षण दिया गया। प्रातः 6.30 बजे आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ हुआ जिसके ब्रह्मा आगरा से पधारे विद्वान आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी थे। यज्ञ में मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो ब्रह्मचारियों श्री शिवकुमार एवं श्री ओम् प्रकाश जी ने किया। यज्ञ के बाद भजन सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी और भजनोपदेशक श्री कल्याण सिंह जी के भजन हुए। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्य योगाभ्यास करते हुए जब समाधि तक पहुंचता है और समाधि सफल होती है तब उसे ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उन्होंने कहा कि वाणी आकाश में रहती व वहीं तक पहुंचती है। उसके परे ईश्वर तक वह नहीं पहुंच पाती। आचार्य जी ने कहा के मन के बिना ध्यान नहीं लगता। वाणी व मन दोनों में काल्पनिक स्पर्धा हुई कि जीवात्मा को ईश्वर तक वाणी और मन में से कौन पहुंचाता है तो प्रजापति ने दोनों के सभी दावों को सुनकर निर्णय दिया कि ईश्वर तक जीवात्मा को मन ही पहुंचाता है। आचार्य जी का प्रवचन काफी देर तक चला। समय और स्थानाभाव के कारण हम प्रवचन का शेष भाग अन्य अवसर पर प्रस्तुत करेंगे। यज्ञ, भजन एवं प्रवचन का संचालन ऋषिभक्त श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, ज्वालापुर ने बहुत योग्यता एवं प्रभावपूर्ण ढंग से किया। आपकी वाणी में मधुरता एवं अमृत घुला है जो श्रोताओं पर जादू का सा प्रभाव करता है। आपका आकर्षक व्यक्तित्व भी सभी ऋषिभक्तों को प्रभावित करता है।
यज्ञ की समाप्ति के बाद प्रातः 10.00 बजे से आश्रम के भव्य सभागार में एक ‘महिला सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। विषय था ‘नशा मुक्ति में नारी की भूमिका’। इस सम्मेलन की मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पा गुसांई जी थी। संचालन ऋषि भक्त बहिन श्रीमती सुरेन्द्र अरोड़ा जी ने किया। आयोजन में भजन, कविता पाठ सहित नशे के मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव व परिवार के सभी सदस्यों पर आर्थिक व अन्य कुप्रभावों को सभी वक्ताओं ने अपने सारगर्भित सम्बोघनों में रेखांकित किया। इस सम्मेलन के कुछ वक्ताओं में मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पा गोसाई सहित डा. अन्नपूर्णा, डा. सुखदा सोलंकी जी, श्रीमती सुरेन्द्र अरोड़ा, श्रीमती सरोज आर्या थी। माता श्रीमती सन्तोष रहेजा जी और माता श्रीमती सरोज अग्निहोत्री जी की पावन गौरवमयी उपस्थिति में आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।
सायंकालीन यज्ञ एवं सत्संग का आरम्भ अपरान्ह 3.30 बजे आंशिक ऋग्वेद पारायण यज्ञ से हुआ जिसके मध्य में आचार्य उमेश चन्द्र जी कुलश्रेष्ठ वेद मन्त्रों की व्याख्यायें यज्ञ प्रेमियों को सुनाते रहे। आज देहरादून में आंधी व तूफान आ जाने के कारण यज्ञ को आश्रम की मुख्य यज्ञशाला तक ही सीमित रखना पड़ा। यज्ञशाला में ही भजन व उपदेश तथा इसके बाद ब्रह्मयज्ञ अर्थात् सन्ध्या सम्पन्न हुई। प्रवचन आचार्य कुलश्रेष्ठ जी का हुआ। आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने शेष कार्यक्रमों की जानकारी सहित सूचनायें आदि श्रोताओं को दीं।
रात्रिकालीन सत्संग रात्रि लगभग 7.50 बजे से आरम्भ हुआ। आरम्भ में श्री आजाद सिंह आर्य और पं. सत्यपाल पथिक जी के भजन हुए। श्री आजाद सिंह जी ने दो भजन गाये। उनके द्वारा गाया गया दूसरा भजन था ‘वेदों के राही दयानन्द स्वामी तेरा जाग जाना सफल हो गया। शिवरात्रि को जब सब सो रहे थे तेरा जाग जाना सफल हो गया।’ पं. सत्यापाल पथिक जी ने जो भजन सुनाये वह थे ‘हमारे देश में भगवन भले इंसान पैदा कर, सफल सुख सम्पदा वाली सुखी सन्तान पैदा कर।’ दूसरा भजन था ‘ओंकार प्रभु नाम जपो ओंकार प्रभु नाम जपो। मन में ध्यान लगाकर सुबह और शाम जपो। ओंकार प्रभु नाम जपो।।’ पथिक जी ने तीसरा भजन सुनाया जिसे वह अपनी मास्टरपीस रचना कहते हैं। इसके आरम्भ के कुछ शब्द हैं ‘प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो। प्रभु तुम गगन से विशाल हो। मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी। दुनियां में तुम बेमिसाल हो। प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो।।’
भजन के बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का उपदेश हुआ। उन्होंने कहा कि कुछ लोग मानते हैं कि मनुष्य जो पाप करता है वह माफ हो जाते हैं। इस विषय की आचार्य जी ने विस्तार से चर्चा कर बताया कि यह मानना गलत है कि ईश्वर किसी के किसी पाप को क्षमा कर सकता है। उन्होंने कहा कि वैदिक सत्य सिद्धान्तों के अनुसार मनुष्य का कोई एक शुभ व अशुभ कर्म भी बिना उसका यथोचित फल भोगे नष्ट नहीं होता। उन्होंने कहा कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी होने से सबके सभी कर्मों का साक्षी है। पाप करने के बाद पाप व अशुभ कर्मों के बीज पकते हैं और पकने के बाद इस जन्म व परजन्मों में हमें मनुष्य व अन्य योनियों में जन्म लेकर इनके फलों को भोगना पड़ता है। आचार्य जी का व्याख्यान विस्तृत है। इसे भी हम कुछ समय बाद प्रस्तुत करेंगे।
आचार्य कुलश्रेष्ठ जी के बाद आश्रम के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान आचार्य आशीष जी का प्रवचन हुआ। आशीष जी ने आचार्य कुलश्रेष्ठ जी के विचारों से सहमति जताई और इस सूक्ष्म विषय को बहुत सरल शब्दों में प्रस्तुत करने के लिए उनकी प्रशंसा की। विचारों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए आशीष जी ने कहा कि कर्म एवं हमारे कर्मों पर आधारित पुनर्जन्म अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आचार्य जी ने कहा कि हम पुनर्जन्म को जितना समझते हैं उतना हम अपने कर्मों के प्रति पूर्व की अपेक्षा अधिक सावधान होते चले जाते हैं। आचार्य आशीष जी ने वैदिक ग्रन्थों सत्यार्थ प्रकाश एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका सहित समग्र वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि ग्रन्थों को पढ़कर हमें सत्य ज्ञान व उसका ज्ञानसार मिलता है जो साधारण कोटि के मनुष्यों द्वारा रचित ग्रन्थों को पढ़कर नहीं मिलता। आचार्य जी ने अपने आज के प्रवचन में ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना पर अपने विचार प्रस्तुत किये। स्तुति का यथार्थ अर्थ व अभिप्राय बताया और कहा कि ईश्वर के यथार्थ गुणों को जानकर उससे स्तुति करने से ईश्वर के प्रति हमारी प्रीति में वृद्धि होती है। आचार्य जी ने कहा कि स्तुति सगुण व निर्गुण दो प्रकार की होती है। इसे उन्होंने विस्तार से अनेक उदहारण देकर समझाया। आचार्य जी ने कहा कि स्तुति के अनुरूप स्वयं का जीवन भी बनाना चाहिये। हम लक्ष्य की प्राप्ति में ईश्वर से जो सहायता मांगते हैं वह प्रार्थना होती है। उन्होंने कहा कि स्तुति प्रथम स्थान पर है और उपासना उसके बाद होती है। आचार्य जी ने कहा कि प्रार्थना स्तुति व उपासना के बाद होती है। गायत्री मन्त्र को आपने स्तुति, उपासना और प्रार्थना का सबसे अच्छा मंत्र बताया और इसका अर्थपूर्वक जप करने की प्रेरणा की। अपने प्रवचन को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि गायत्री मन्त्र के जप व चिन्तन से हमारा आध्यात्मिक विकास हो जाता है। शान्ति पाठ के बाद रात्रिकालीन सत्संग समाप्त हुआ।
इन सभी कार्यक्रमों में आश्रम के श्री प्रधान जी, श्री मंत्री जी एवं स्थानीय व्यक्तियों सहित बाहर से पधारे ऋषिभक्त बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
-‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन के ग्रीष्मोत्सव के चौथे दिन संपन्न कुछ कार्यक्रम-
‘भजन व प्रवचनों के आयोजन सहित प्रसिद्ध नेत्र
चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा सम्मानित’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन के चौथे दिन सम्पन्न कुछ कार्यक्रमों का विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। वैदिक साधन आश्रम तपोवन दो स्थानों पर स्थित है। दोनो में परस्पर 3 से 3.5 किमी. की दूरी है। आश्रम देहरादून में नगर से 6.50 किमी दूरी पर नालापानी रोड क्षेत्र में मुख्य सड़क के किनारे स्थिति है जहां से लोकल बस रेलवे स्टेशन व अन्य स्थानों के लिए उपलब्ध है। आश्रम के एक ओर पहाड़ियां और वन हैं, उन्हीं के चरणों में यह आश्रम स्थित है। नीचे मुख्य आश्रम है जहां साधको के लिए अनेक कुटियाएं बनी हुई हैं। यज्ञशाला, बड़ा भव्य नवीन आधुनिक सभागार, अतिथियों के लिए निवास व कार्यालय आदि हैं। यहां दन्त चिकित्सक आदि भी उपलब्ध होते हैं। आरोग्य धाम नाम से एक भव्य व विशाल भवन का निर्माण पूर्णता की ओर चल रहा है। दानी महानुभावों से इस कार्य को पूर्ण करने के लिए सहयोग की आवश्यकता है। आशा है कि यह कार्य शीघ्र ही पूरा हो जायेगा। आरोग्य धम के जो भाग पूर्ण हो गये हैं उसमें चिकित्सीय सेवायें शीघ्र आरम्भ होने की संभावना है। आश्रम का दूसरा भाग इस मुख्य आश्रम से 3.5 किमी. दूरी पर पहाड़ियों व वन के बीच ऊंची चढ़ाई पर स्थित है। इस आश्रम के चारों ओर वन है। मुख्य द्वार के सामने खलंगा रोड जा रही है। खंलगा में अंग्रेजों के साथ नेपालियों का युद्ध हुआ था। उसके अवशेष आज भी वहां है। इस ऐतिहासिक स्थान को देखने भी दूर दूर से लोग आते हैं। आश्रम का स्थान पूरी तरह से शान्त है। शुद्ध वातावरण है। ध्यानी लोग यहां आकर ध्यान व योग साधना करते हैं और इसे उत्तम स्थान बताते हैं। पूर्व में स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, महात्मा आनन्द स्वामी, महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज, महात्मा दयानन्द वानप्रस्थी, स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी, महात्मा बलदेव जी, बिजनौर व अनेक प्रसिद्ध विद्वान साधना कर चुके हैं। हम भी विगत 45 वर्षों से इस स्थान पर यदा कदा जाते रहते हैं। यहां जो भी आयोजन होते हैं उनमें सम्मिलित होने का हमारा प्रयास रहता है। समय समय पर हमने यहां पर आयोजित चतुर्वेद पारायण यज्ञ व अन्य कार्यक्रमों की विस्तृत सूचनायें व समाचार भी फेसबुक व इमेल से अपने मित्रों से चित्रों सहित साझा किये हैं। आश्रम एक गोशाला एवं तपोवन विद्या निकेतन नाम सेएक जूनियर हाईस्कूल का संचालन भी करता है जहां अधिकांश निर्धन परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। बच्चों को आर्य संस्कार दिये जाते हैं। सप्ताह में चार दिन सभी बच्चे यज्ञ भी करते हैं। आर्यसमाज की विचारधारा की धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी के प्रयत्नों से प्रभावशाली रूप से चल रही है। बच्चे आर्य विचारधारा से प्रायः परिचित हैं।
वैदिक साधन आश्रम में वर्ष में दो बार ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव नाम से विस्तृत पांच दिवसीय आयोजन होते हैं। समापन दिवस से एक दिन पूर्व का प्रातः से दोपहर तक का आयोजन इसी पर्वतीय तपोस्थली स्थान पर किया जाता है। लोग अपने वाहनों से वहां पहुंच जाते हैं। कुछ शोभायात्रा के माध्यम से पहुंचते हैं और बहुतों को लाने ले जाने के लिए कई बसों की व्यवस्था की जाती है। इस वर्ष आश्रम पधारे सभी श्रद्धालुओं को प्रातः 6.00 बजे ही इस स्थान पर पहुंचाया गया। प्रातः 6.30 बजे से यज्ञ हुआ। यज्ञ के समापन के बाद सभी यज्ञप्रेमियों व श्रद्धालुओं ने प्रातराश लिया। इसके बाद भजन व प्रवचनों का कार्यक्रम हुआ। यह भी बता दें कि इस स्थान पर एक अत्यन्त भव्य व विशाल यज्ञशाला का निर्माण किया गया है जिसमें पांच यज्ञ कुण्ड स्थाई रूप से बनाये गये है। कल पहली बार यहां पहुंचे प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक जी और आगरा के आर्य विद्वान तथा वर्तमान में किये जा रहे ऋग्वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी इसे देखकर आश्चर्यान्वित हुए और इसकी अनेक प्रकार से मंच से प्रशंसा करते हुए देखे गये। प्रातःराश के बाद प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री आजाद सिंह आर्य, पं. सत्यापाल पथिक, श्री कल्याण सिंह वेदी जी तथा श्री उम्मेद सिंह जी के उत्तम व मनोहर भजन हुए। आश्रम पधारे कुछ भाई व बहनों के भी भजन व गीत भी श्रोताओं को इस अवसर पर सुनने को मिले। प्राकृतिक चिकित्सक डा. विनोद शर्मा जी ने भी श्रोताओं को सम्बोधित किया और स्वास्थ्य रक्षा संबंधी अनेक उत्तम बातों पर प्रकाश डाला। मुख्य प्रवचन यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य उमेश चन्द्र स्नातक जी का हुआ। उन्होंने मृत्यु और शरीर के अन्त्येष्टि संस्कार पर वेद आदि शास्त्र वर्णित विचारों को प्रस्तुत कर इसकी उत्तम व्याख्या की। अन्त में स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी ने सभी श्रोताओं को आशीवर्चन कहे। आयोजन की समाप्ति पर सभी लोग अपने वाहनों व आश्रम द्वारा उपलब्ध कराई गई बसों के द्वारा मुख्य आश्रम में आ गये और वहां भोजन किया।
अपरान्ह 3.30 बजे से वेद पारायण यज्ञ मुख्य यज्ञशाला सहित 5 अतिरिक्त वृहत यज्ञ कुण्डों में हुआ। यज्ञ की समाप्ती पर पं. सत्यपाल पथिक जी व श्री कल्याण सिंह वेदी के मनोहर भजन हुए। वेदी जी ने यज्ञ विषयक बहुत मार्मिक घटनायें सुनाईं और यज्ञ विषयक एक अपना स्वरचित भजन सुनाया जो बहुत ही प्रभावशाली था। भजन के शब्द, भाव व सुनाने की शैली अद्भुत थी। हमने इसका कुछ भाग रिकार्ड भी कर लिया। भजन के आरम्भिक शब्द थे ‘जिस घर में होता यज्ञ नहीं, श्मशान जैसे डेरे में क्या जीवन तेरा।’ इसके बाद श्री कुलश्रेष्ठ जी का यज्ञ के तीन स्तम्भ व अंगों देवपूजा, संगतिकरण व दान पर प्रवचन हुआ। इस प्रवचन में संगतिकरण के महत्व की बहुत व्यवहारिक एवं सर्वग्राह्य व्याख्या आर्य विद्वान ने प्रस्तुत कर सबका दिल जीत लिया। लोग वाह् वाह् कर रहे थे।
रात्रि 7.30 बजे से 10.00 बजे तक ‘भजन सन्ध्या’ का आयोजन किया गया जिसमें श्री आजाद सिंह आर्य, पं. सत्यपाल पथिक जी, बहिन श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी और श्री कल्याण सिंह वेदी जी के चुने हुए प्रभावशाली भजन हुए। इसी बीच आश्रम द्वारा आमंत्रित देहरादून के प्रसिद्ध नेत्र शल्य चिकित्सक डा. दिनेश शर्मा जी का अभिनन्दन व सम्मान भी किया गया। डा. दिनेश शर्मा जी आर्य पिता श्री द्वारका दत्त शर्मा, अमृतसर के यशस्वी पुत्र हंै। आपका विगत 30 वर्षों से देहरादून में नेत्र रोगों की चिकित्सा प्रदान करने वाला ‘अमृतसर नेत्र चिकित्सालय’ सेवारत है। लाखों लोग इससे लाभ उठा चुके हैं। लगभग 50 हजार लोगों ने अनुमानतः आपरेशन भी कराये हैं। इस चिकित्सालय में विश्वस्तरीय सभी सुविधायें हंै। बड़ा स्टाफ एवं अन्य योग्य चिकित्सक हैं। निर्धन लोगों का निःशुल्क उपचार व आंखों के आपरेशन किये जाते हैं। हमारे अनेक मित्र इस सुविधा से लाभान्वित हुए हैं। डा. दिनेश शर्मा अपने बाल्यकाल में अमृतसर के लारेंसो रोड आर्यसमाज से जुड़े रहे। पिताजी के साथ आर्यसमाज जाते थे। आपके घर में आज भी सभी धार्मिक कार्यक्रम वैदिक यज्ञ से सम्पादित किये जाते हैं। आर्य पुरोहित पं. वेदवसु शास्त्री जी समय समय पर आपके यहां यज्ञ आदि सम्पादित करते हैं। आपको तपोवन आश्रम की ओर से मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी, न्यासी श्री विजय गोयल सहित विद्वानों ने मोतियों की माला शाल ओढ़ाकर सम्मान किया। मनमोहन कुमार आर्य ने आपका परिचय व अभिनन्दन के शब्द कहे। रात्रि 10.00 बजे ग्रीष्मोत्सव के चतुर्थ दिवस का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
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“डा. धर्मवीर, प्रधान परोपकारिणी सभा, अजमेर पर
भजन सम्राट पं. सत्यपाल पथिक जी का श्रद्धांजलि गीत”
(तर्जः- है प्रीत जहां की रीत सदा)
प्रस्तुतकर्ताः मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
आजकल देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव चल रहा है। अनेक विद्वानों सहित आर्य भजन के भक्ति संगीत के शीर्षस्थ विद्वान और गीतकार पं. सत्यपाल पथिक जी भी पधारे हुए हैं। उनसे प्रतिदिन मिलना हो रहा है। कल अवकाश के क्षणों में हमारी उनसे वार्ता हुई। आपने कीर्तिशेष डा. धर्मवीर जी, पूर्व अध्यक्ष, परोपकारिणी सभा, अजमेर पर कुछ समय पूर्व एक गीत लिखा है। उनके उस गीत पर भी चर्चा हुई। पथिक जी ने हमें वह गीत सुनाया। हमें लगा कि इससे आर्यजगत के सभी बन्धुओं को अवगत कराना उचित होगा, अतः पथिक जी का गीत प्रस्तुत हैं:
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
सब सज्जन पुरुष खुले दिल से इक बात हमेशा कहते हैं।
शुभ कर्मशील इंसान सदा दुनियां के दिलों में रहते हैं।
सूरज की तरह दिखने वाले आलोक फैलाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
उपकार भावना से सब को सन्मार्ग दिखाते देखा है।
उलझे मतवाले लोगों की उलझन सुलाझाते देखा है।
बदसूरत चेहरे वालों को दर्पण दिखलाकर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
गम्भीर सरल उपदेशों से हर दिल को लुभाया करते थे।
नस नस में उतर जाने वाले सन्देश सुनाया करते थे।
वह वैदिक जीवन शैली को घर घर पहुंचा कर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर घर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
कब कौन सा पत्ता पीपल को पतझड़ की नमस्ते कह जाये।
संसार-वृक्ष चुपचाप खड़ा हाथों को मसलता रह जाये।
क्या कहें ‘‘पथिक” सबके दिल में निज प्यार बसा कर चले गये।
सब के प्रिय डाक्टर धर्मवीर इतिहास रचा कर चले गये।
ऋषिराज दयानन्द के सपने साकार बनाकर चले गये।
(गीत समाप्त)
इसी अवसर पर स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी पर भी चर्चा चली। इस प्रसंग में पथिक जी ने पंजाब के एक ऋषि भक्त पं. गंगाराम जी की चर्चा की। स्वामी जी ने इनका संक्षिप्त परिचय अपनी पुस्तक ‘इतिहास दर्पण’ में लिखा है। पं. गंगा राम जी सत्याचरण की साक्षात् मूर्ति थे। आप पंजाब के एक रेलवे स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे। एक बार, संबंधित कर्मचारी के कार्य पर न आने के कारण, आपसे गलती से ट्रेन का गलत कांटा लग गया। तेज गति से एक्सप्रेस रेल आ रही थी जिसको बिना रूके आगे जाना था। इस रेल का चालक होशियार था। उसे सिग्नल देखकर आशंका हुई तो वह सावधान हो गया और उसने स्टेशन पर खड़ी रेल से कुछ ही दूर पहले गाड़ी को ब्रेक लगाकर रोक दिया जिससे बहुत बड़ी दुर्घटना होने से बच गई। उच्च. अधिकरियों द्वारा आपका स्पष्टीकरण मांगा गया। आपने जो सत्य बात थी उसे लिखा और घटना का उत्तरदायित्व लिया। आपके स्टेशन मास्टर ने आपके स्पष्टीकरण को पढ़ा तो आपको सावधान करते हुए नौकरी बचाने की दृष्टि से कोई मनघड़न्त कहानी लिखने को कहा। आपने उनका आदर किया और कागज घर ले आये। दो-तीन दिन बाद आपने अपना वही पूर्व का स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया। आपकी आत्मा सत्य को बदलने को तैयार नहीं हुई। अंग्रेज अधिकारियों ने उस स्पष्टीकरण को देखा तो वह दंग रह गये। आपके पूरे कार्यकाल की चरित्र पंजिका देखी गई तो पाया कि यह व्यक्ति कभी देर से ड्यूटी पर नहीं आया और न कभी अवकाश लिया। यह जानकर उन्हें लगा कि इस अधिकारी को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाये। ऐसा ही हुआ परन्तु इसका विभाग के अन्य कर्मचारियों ने विरोध किया। इससे पूर्व जिन्हें कर्तव्यहीनता के कारण निकाला गया था, वह व उनके समर्थक इन्हें नौकरी से निकालने की मांग कर रहे थे। अधिकारियों ने समीक्षा की और उन्हें बताया कि इस व्यक्ति ने पूरे सेवा काल में कभी कर्तव्यहीनता नहीं की। पहली बार गलती की, उसे भी इसने स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है। इसे नौकरी जाने की चिन्ता नहीं है। यह तो स्वयं कह रहा है कि मुझे उचित सजा दी जाये। यदि ऐसे व्यक्ति को नौकरी से निकाल देंगे तो फिर ऐसा सच्चा कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति कहां मिलेगा। कौन मनुष्य है जिससे कभी गलती नहीं होती? यह गलती इन्होंने जानबूझकर नहीं की अपितु वह इनसे अजजाने में हुई। यह पं. गंगा राम के सत्याचार का बल था कि उन्होंने सत्य के लिए अपनी नौकरी की भी परवाह नहीं की। पं. गंगा राम जी के जीवन की ऐसी एक दो और घटनायें भी पथिक जी ने प्रेम व स्नेह वश हमें सुनाई। हम अवकाश मिलने पर इन्हें पाठकों के लिए प्रस्तुत करेंगे जिससे उन्हें सत्याचरण में प्रवृत्त होने का बल व शक्ति प्राप्त हो। अभी इतना ही। ओ३म् शम्।
प्रस्तुतकर्ताः मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
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