लेखक -राजपाल सिंह
विधाता संघर्षों की एक किताब लिख दे
कुछ पन्ने अधूरे रह जायें, तो मेरा भी एक हिसाब लिख दे
क्यों हर रोज हँसाता है, और फिर रूलाता है
क्यों वेवज़़ह की मोहब्बत में हमको तड़पाता है
अब सारे कष्टों का एक साथ सैलाब लिख दे
विधाता संघर्षों की एक किताब लिख दे
डरता नहीं मैं हार से, ना जीत से मुस्कुराता हूँ
कर्तव्य कितना भी कठिन हो नज़रें नहीं चुराता हूँ
सारे कर्तव्यों को अब तू एक जवाब लिख दे
विधाता संघर्षों की एक किताब लिख दे.......
आशा, उजाला, सहारा, क्यों दिखलाते हो, जब लड़ना है खुद ही
रिश्ते नाते यार दोस्त क्यों मिलबाते हो जब चलना है खुद ही
मेरे तम को अब तू आफताब लिख दे
विधाता संघर्षों की एक किताब लिख दे.
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