“देश-देशान्तर में ईश्वर, जीव व प्रकृति तीन अनादि पदार्थों के सत्यस्वरूप का प्रचार करने वाले ऋषि दयानन्द पहले महापुरुष”

लेखक-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“देश-देशान्तर में ईश्वर, जीव व प्रकृति तीन अनादि पदार्थों के
सत्यस्वरूप का प्रचार करने वाले ऋषि दयानन्द पहले महापुरुष”

सृष्टि की आदि में ईश्वर ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों की अमैथुनी सृष्टि में रचना की थी। सभी मनुष्य व प्राणी युवावस्था में उत्पन्न किये गये थे। यदि ईश्वर सबको शैशवास्था में उत्पन्न करता तो इनका पालन करने के लिए माता-पिता की आवश्यकता पड़ती और वृद्धावस्था में करता तो यह सृष्टि आगे न चल पाती। अतः सत्यार्थप्रकाश में ऋषि दयानन्द द्वारा दिया गया यह सिद्धान्त अकाट्य एवं बुद्धिसंगत है कि ईश्वर ने आरम्भिक सृष्टि युवावस्था में की थी। मनुष्यादि प्राणियों की सृष्टि हो जाने पर उन मनुष्यों को ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ? इस विषय पर विचार, चिन्तन, तर्क आदि करने से यह सिद्ध होता है कि ज्ञान भी ईश्वर से ही प्राप्त हुआ था। ईश्वर के अतिरिक्त ज्ञान प्राप्ति का अन्य कोई विकल्प सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों के पास नहीं था। इसका एक कारण यह भी है कि ज्ञान की संवाहक हमारी बुद्धि होती है। बुद्धि की रचना ज्ञान प्राप्ति के लिए ही ईश्वर ने हमारे शरीरों में की है। उस बुद्धि को ज्ञान से प्रकाशित करने का कार्य भी ईश्वर से इतर कोई सत्ता नहीं कर सकती। ज्ञान के लिए पहली आवश्यकता होती है भाषा की। ज्ञान भाषा में ही निहित होता है। एक बच्चे को देखें तो जन्म काल के समय उसे कोई भाषा नहीं आती। यद्यपि उसके पास गर्भकाल व पूर्वजन्म के संस्कार होते हैं परन्तु वह कुछ भी बोल नहीं सकता। रोने के अलावा उसको कुछ भी नहीं आता। यदि उसकी माता उससे बातें न करें तो वह भाषा नहीं सीख सकता। संसार के सभी बच्चे अपनी माता व परिवार की भाषा को ही सबसे पहले सीखते हैं जिसमें उनके कान सहायक होते हैं। मां जो बोलती है वह बच्चा कानों से सुनता रहता है और बुद्धि तत्व होने के कारण धीरे धीरे उसे कुछ कुछ समझ में भी आने लगता है जो निरन्तर बढ़ता जाता है और एक-दो वर्ष में ही वह अपनी माता व परिवार के लोगों की न केवल बातों को समझता ही है अपितु बोलने भी लगता है। इस प्रक्रिया से माता-पिता व परिवार के लोगों ने भाषा का ज्ञान प्राप्त किया है। सृष्टि के आरम्भ में यह कार्य ईश्वर करता है। वही अपनी सन्तानों, मनुष्य आदि प्राणियों, को उनके कर्तव्यों का सम्पादन करने के लिए आत्मस्थ होने अर्थात् सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी व सर्वज्ञ होने से उनकी आत्माओं के भीतर ज्ञान देता है। सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को चार वेदों का ज्ञान संस्कृत भाषा के ज्ञान सहित दिया था। इस प्रकरण को यदि विस्तार से समझना हो तो इसके लिए सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन किया जा सकता है। इन ऋषियों को ज्ञान प्राप्त हुआ और इन्होंने फिर ब्रह्मा जी नामक पांचवें ऋषि को ज्ञान दिया। यहीं से बोलकर पढ़ाने व शिक्षित करने की परम्परा आरम्भ हुई जो अद्यावधि जारी है।

सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल तक सारे संसार में वेदों का ज्ञान उपलब्ध था। ज्ञान का केन्द्र आर्यावर्त होता था। संसार के लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत के ऋषियों व विद्वानों के पास ही आते हैं इसका प्राचीन आर्यग्रन्थों यथा मनुस्मृति आदि में प्रमाण मिलता है। महाभारत युद्ध के पश्चात अव्यवस्थाओं के कारण अध्ययन अध्यापन बाधित होने से देश व विश्व में अज्ञानान्धकार फैल गया। यहां तक हुआ कि संसार के अधिकांश लोग ईश्वर के सत्य स्वरूप को भी भूल गये और वेदों में ईश्वर के गुणों व कार्यों के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग होता था, उन्हें ही लोगों ने ईश्वर के स्थान पर अपना इष्ट देवी वा देवता बना लिया और उन्हीं की पूजा करने लगे। महाभारत युद्ध के समाप्त होने के दीर्धकाल बाद देश व देशान्तर में कुछ मत-मतान्तरों की उत्पत्ति हई। सबके अपने अपने धर्म ग्रन्थ हैं परन्तु किसी भी ग्रन्थ में ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति व सृष्टि विषयक सत्य ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इन विषयों से जुड़ा सत्य ज्ञान यद्यपि वेदों, उपनिषदों, दर्शनों व मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में उपलब्ध तो था परन्तु देश विदेश के विद्वानों का विवेक नष्ट हो गया था जिसका एक कारण उनका आलस्य-प्रमाद व स्वार्थ बुद्धि थी जिससे वह लोगों को गुमराह कर अपना प्रयोजन सिद्ध किया करते थे। महाभारत काल के बाद ऋषि दयानन्द के रूप में एक ऐसी आत्मा संसार में आई जिसने अपने जन्मकाल वा बाल्यावस्था से किसी भी बात को अपनी बुद्धि व आत्मा की साक्षी व सहमति के स्वीकार नहीं किया। यही कारण था कि जब उनको शिवरात्रि का व्रत रखने को कहा गया, जिसे उन्होंने किया, परन्तु शिव की पिण्डी पर चूहों को उछल-कूद करते देख उन्होंने विचार किया कि यह पाषाण निर्मित शिव की पिण्डी कही जाने वाली वस्तु व मूर्ति सच्चा शिव व उसकी किसी शक्ति से सम्पन्न न होकर पाषाण की भांति जड़ मात्र वस्तु है। भावी जीवन में भी जब उनकी बहिन व चाचा की मृत्यु होती है तो तब भी उन्होंने मृत्यु विषय पर गहन चिन्तन किया और उसके सत्यस्वरूप को जानने व उस पर विजय पाने के लिए उन्होंने अपना सारा जीवन सत्य व उसके यथार्थ अर्थ की खोज में लगाया। स्वामी दयानन्द जी ने 38 वर्ष की आयु तक देश के अनेक भागों में जाकर सच्चे ज्ञानियों, विद्वानों व योगियों की तलाश की और उनसे अपनी सभी शंकाओं का समाधान करने के प्रयास किये। इस क्रम में अनेक योगियों से योग सीखकर वह सच्चे व सिद्ध योगी बन गये और सन् 1860 से 1863 तक मथुरा के गुरु विरजानन्द जी से शिक्षा प्राप्त कर वेदेां व सभी शास्त्रों के सच्चे व पारदर्शी विद्वान बने। अपने गुरु स्वामी विरजानन्द जी और अपनी अन्तःप्रेरणा से उन्होंने संसार से अज्ञान व अविद्या को दूर करने का व्रत लिया जिसे प्रत्येक क्षण स्मरण रखकर उसे पूरा करते हुए ही 30 अक्तूबर, सन् 1883 को उन्होंने अजमेर में अपना जीवन बलिदान करते हुए अन्तिम श्वांस ली।

स्वामी जी सन् 1863 में कार्य क्षेत्र में उतरे और धर्म प्रचार आरम्भ किया। उन्होंने वेदों को प्राप्त किया और उनका अध्ययन व मनन कर ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति व मनुष्यों के कर्तव्य-अकर्तव्यों आदि का ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें ईश्वर की सच्ची उपासना सहित मनुष्यों को ज्ञान की प्राप्ति व उसके अनुसार कर्तव्यों के निर्वहन का ज्ञान भी वेद व वेदानुकूल शास्त्रों से प्राप्त हुआ जिसका उल्लेख और वर्णन उनके सत्यार्थप्रकाश व इतर ग्रन्थों में होता है। मथुरा में गुरु विरजानन्द जी से विद्या की दीक्षा लेने के बाद आपने जो प्रमुख कार्य किये उनमें 16 नवम्बर, 1869 को काशी के तीस से अधिक शीर्ष पण्डितों से मूर्तिपूजा के शास्त्र सम्मत होने पर शास्त्रार्थ करना भी था जिसमें वह विजयी हुए थे। आज तक भी कोई विद्वान वेदों से मूर्तिपूजा सिद्ध नहीं कर सका है। महर्षि पतंजलि प्रणीत  योगदर्शन भी ईश्वर के निराकार व सर्वव्यापक स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए धारणा, ध्यान व समाधि द्वारा ही ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना सिखाता है। ऋषि दयानन्द के अन्य प्रमुख कार्यों में सन् 1874 में संसार के सर्व-प्रमुख व मानवमात्र के कल्याणकारी महानतम् धर्म-ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश की रचना और 10 अप्रैल सन् 1875 को मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना करना है। आर्यसमाज की स्थापना से पूर्व ऋषि दयानन्द देश देशान्तर में घूम कर वैदिक मान्यताओं, सिद्धान्तों व विचारधारा पर व्याख्यान व उपदेश देने के साथ शास्त्रार्थ, वार्तालाप व शंका समाधान द्वारा प्रचार ही करते थे। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ लिख कर उन्होंने वस्तुतः संसार की पहली सच्ची धार्मिक क्रान्ति को जन्म दिया। अपने इस ग्रन्थ में उन्होंने प्रायः संसार व अपने देश में प्रचलित सभी मिथ्या परम्पराओं, विश्वासों व व्यवस्थाओं का खण्डन कर उनके वैदिक सर्वग्राह्य व हितकारी विकल्प सामने रखे थे जिन्हें लोगों ने स्वीकार करना आरम्भ कर दिया था। उनके प्रयासों से ही अनेक मिथ्या परम्राओं यथा सती प्रथा, बाल विवाह, जन्मजाति व्यवस्था के प्रभाव में कमी, छुआ-छूत वा अस्पर्शयता आदि बुराईयां समाप्त हुई। गुण-कर्म-स्वभावानुसार अन्तर्जातीय विवाह होने आरम्भ हुए। स्त्री व शूद्रों को वेद व सभी शास्त्र पढ़ने का अधिकार व अवसर मिले। आर्यसमाज ने अपने गुरुकलों में शूद्रों व दलित भाई-बहिनों को वेदादि शास्त्र पढ़ाकर वेदों का विद्वान बनाया और वह आर्यसमाज के पुरोहित व विद्वान बने। लोगों ने शिक्षा के महत्व को समझा। देश में दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक विद्यालय व गुरुकुलों ने अज्ञानान्धकार को नष्ट किया। अल्प आयु की विधवाओं के विवाह होने भी ऋषि दयानन्द के विचारों से प्रभावित होकर प्रचलित हुए। आपने देश को आजाद कराने के लिए स्वराज्य व सुराज्य का मन्त्र भी दिया और आपके सभी अनुयायी देश को आजाद कराने व देश से अज्ञान व अविद्या को दूर करने में लग गये। ऐसे अनेक व अन्य बहुत से कार्य हैं जो आर्यसमाज ने किये जिससे देश व समाज की उन्नति व विकास हुआ।

ऋषि दयानन्द पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने इस संसार के यथार्थ रहस्य व इसकी उत्पत्ति के रहस्य को विगत पांच हजार वर्षों में पहली बार समझा था। इसका उन्होंने जन-जन की भाषा आर्यभाषा हिन्दी में प्रचार किया जिसे आज आर्यसमाजी परिवारों व आर्यस्कूलों का बच्चा-बच्चा जानता है। उनके अनुसार संसार में तीन अनादि पदार्थ ईश्वर, जीव व प्रकृति सदा-सदा से हैं और हमेशा रहेंगे। इनकी न कभी उत्पत्ति होती है और न कभी विनाश होता है। इन तीनों पदार्थों के सत्य स्वरूप को भी ऋषि दयानन्द ने अपने ग्रन्थों सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय सहित वेदभाष्य और प्रायः सभी अन्य ग्रन्थों में भी सप्रमाण, तर्कों व युक्तियों सहित प्रस्तुत किया है। ईश्वर के सत्य स्वरूप का उल्लेख अनेक स्थानों सहित आर्यसमाज के दूसरे नियम व उनके लघु ग्रन्थ ‘स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश’ में भी हुआ है। इससे पूर्व ईश्वर के ऐसे सत्यस्वरूप का किसी महापुरुष व विद्वान ने जनसामान्य में उनकी ही भाषा में प्रचार किया हो व उसका प्रभाव हुआ हो, इसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। इससे सभी मत-मतान्तरों की नींव भी स्वामी दयानन्द जी ने हिलाकर रख दी है क्योंकि किसी भी मत में ईश्वर व जीव आदि की ऐसी सत्य व यथार्थ व्याख्या नहीं मिलती जो कि ऋषि दयानन्द जी ने प्रस्तुत की है। स्वामी दयानन्द लिखते हैं कि ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। ईश्वर ही सभी मनुष्यों का एकमात्र उपासनीय देव वा महादेव है। स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश में ईश्वर का उल्लेख करते हुए वह लिखते हैं कि ईश्वर कि जिसके ब्रह्म परमात्मादि नाम है, जो सच्चिदानन्दादि लक्षणयुक्त है, जिस के गुण, कर्म, स्वभाव पवित्र हैं। जो सर्वज्ञ, निराकार, सर्वव्यापक, अजन्मा, अनन्त, सर्वशक्तिमान, दयालु, न्यायकारी, सब सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता, सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फलदाता आदि लक्षणयुक्त है, उसी को परमेश्वर मानता हूं। ईश्वर का ऐसा स्वरूप संसार के किसी मत-पंथ-सम्प्रदाय में वर्णित नहीं हुआ है। जो आस्तिक मत हैं उनके यहां ईश्वर को शरीरधारी व स्थान विशेष पर रहने वाला एकदेशी बताया गया है। सभी मतों में अविद्या व विज्ञानविरुद्ध अनेकानेक बातें हैं जिनसे अनुमान होता है कि उनके मताचार्य वेदेां व वैदिक शास्त्रों से सुदूर होने से अविद्या से ग्रस्त थे। स्वामी जी ने वेदों का अनुशीलन कर उसे ईश्वर की कृति अनुभव किया व अकाट्य तर्क एवं प्रमाणों से अपने मन्तव्य को सिद्ध भी किया है। उन्होंने अपने सभी ग्रन्थों में ईश्वर के अनेक गुणों यथा सृष्टि उत्पत्ति, उसका पालन व प्रलय सहित ईश्वर के अनेक कर्मो व कार्यों का उल्लेख भी किया है। ईश्वर के उनके द्वारा बताये गये स्वरूप की उपासना करने से ही मनुष्य का जीवन व उसका उद्देश्य सफल होता है। यदि जीवन में सत्यार्थप्रकाश व वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन नही किया तो मनुष्य जन्म व उसका जीवन असफल सिद्ध होता है। ऋषि दयानन्द जी को इस बात का भी श्रेय है कि वह ऐसे पहले मनुष्य वा महापुरुष हैं जिन्हें हम ईश्वर का सच्चा सुपुत्र व सन्देशवाहक भी कह सकते हैं। उन्होंने ईश्वर के सच्चे स्वरूप व उसके गुण, कर्म व स्वभाव को जाना व समझा व उसका जन-जन में सामान्य लोगों की भाषा सहित संस्कृत में भी प्रचार प्रसार किया जिससे ज्ञानी व अज्ञानी एवं हिन्दी व संस्कृत जानने वाले लाभान्वित हो सके। वह चाहते थे कि विश्व व देश के लोग हिन्दी व संस्कृत सीख कर उनके विचारों को जाने व समझें जिनसे इन भाषाओं का भी विश्व स्तर पर प्रचार हो सके। यह भी बता दें कि हम मनुष्य हैं और मनुष्य का शरीर जड़ एव नाशवान है। इसमें एक सत्य सनातन चेतन पदार्थ जीवात्मा है। जीवात्मा का स्वरूप ज्ञान प्राप्त कर उसके अनुसार कर्म करने वाला, अल्पज्ञ, एकदेशी, ससीम, अनादि, अनुत्पन्न, अविनाशी, अमर, कर्मानुसार परमात्मा की कृपा से नाना प्रकार के शरीरों को धारण करने वाला, मनुष्य जीवन में सत्यज्ञान की प्राप्ति कर व ईश्वरोपासना व श्रेष्ठ कर्मों को कर मोक्ष को प्राप्त होने वाला है। अनेक बार अज्ञान व अविद्या को प्राप्त होकर काम, क्रोध, लोभ व मोह में फंस कर पाप भी करता है। मोक्ष की प्राप्ति ही जाीवात्मा व मनुष्य के रूप में जन्म होने पर उसका लक्ष्य होता है। ईश्वर को जानकर हमारा कर्तव्य बनता है कि हम वेदों एवं सत्यार्थप्राकश आदि ऋषि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने के साथ ईश्वर की सच्ची स्तुति, प्रार्थना व उपासना कर अपने जीवन की उन्नति करें। प्रकृति के विषय में इतना जान लेना उचित होगा कि यह सत्, रज व तम गुणों वाली अत्यन्त सूक्ष्म व चेतन गुण से सर्वथा व पूर्णतया रहित जड़ स्वभाव वाली है। इसी को संगृहित कर ईश्वर ने अपनी सर्वज्ञता व सर्वशक्तिमतता से इस संसार को बनाया है। यहीं पर इस लेख को विराम देते हैं। आज का लेख कुछ अधिक विस्तृत हो गया है। इसे पढ़ने में पाठकों को कुछ असुविधा होगी। हम उनके आभारी हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून/फोनः09412985121
ओ३म्
‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अनिल आर्य व
उनकी टीम का आर्यसमाज का व्यापक रूप से प्रचार’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
आर्यसमाज वेद प्रचार आन्दोलन है। इसके प्रत्येक सदस्य व अधिकारी का कर्तव्य है कि वह देश के आबाल-वृद्ध लोगों में वैदिक मान्यताओं व परम्पराओं का यथाशक्ति प्रचार करे। आर्यसमाज व आर्य संस्थाओं के बहुत कम अधिकारी इस कर्तव्य का पालन कर पाते हैं। हम काफी समय से डा. अनिल आर्य, राष्ट्रीय अध्यक्ष, केन्द्रीय आर्य युवक परिषद, दिल्ली की गतिविधियों व कार्यों से परिचित हैं। हमने देखा है कि वह पूरे उत्साह एवं जोश से अपनी पूरी टीम के साथ दिल्ली सहित देश के अनेक स्थानों पर शिविर व बहुकुण्डीय यज्ञों सहित अनेक इस प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा आर्यसमाज का प्रभावशाली प्रचार करते हैं। उनके जैसे उत्साही, समर्पित व प्रचारक ऋषि भक्त बहुत कम  देखने को मिलते हैं। विगत कुछ समय में हमने उन्हें दिल्ली के कार्यक्रमों सहित हरिद्वार के कुम्भ मेले सहित देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन के उत्सवों में अपनी टीम के साथ आकर अनेक अवसरों पर आर्यसमाज के कार्यक्रमों वा सम्मेलनों का योग्यतापूर्वक संचालन करते हुए देखा है। उनका संचालन भी बहुत प्रभावशाली व मित्रों एवं श्रोताओं को प्रेरणा देने वाला होता है।

इस समय हमारे हाथों में ‘‘केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् का आह्वान” शीर्षक से प्रसारित एक पत्रक है जिसमें परिषद् के द्वारा अप्रैल, 2017 से जून, 2017 तक होने वाले 20 युवक चरित्र निर्माण, आर्य कन्या शिविर, योग-आयुर्वेद-प्राकृतिक चिकित्सा शिविर सहित शिक्षक अभ्यास शिविर के आयोजनों का विस्तृत विवरण एवं आमंत्रण है। चार आयोजन अप्रैल, 2017 में देश के विभिन्न भागों में सम्पन्न हो चुके हैं। आगामी आयोजन का विवरण निम्न है।

  एक आयोजन 31 मई से 4 जून, 2017 तक मध्य प्रदेश प्रान्तीय युवक निर्माण शिविर के नाम से नूतन हायर सेकेण्डरी स्कूल, सिद्दोर, मध्य प्रदेश में किया जा रहा है। 23 मई से 30 मई 2017 तक एक आयोजन हापुड़ में हो रहा है। यह आयोजन हापुड़ में आर्य कन्या शिविर नाम से हो रहा है। स्थान आर्य कन्या इण्टर कालेज, स्वर्गाश्रम रोड, हापुड़ है। दिल्ली आर्य कन्या शिविर का आयोजन रविवार 21 मई से 28 मई, 2017 तक आर्यसमाज, संदेश विहार, पीतमपुरा, दिल्ली में हो रहा है। देहरादून आर्य कन्या शिविर रविवार 28 मई से शनिवार 3 जून 2017 तक आर्यसमाज, सुभाष नगर, देहरादून में सम्पन्न होगा। एक आयोजन मई माह में ही झारखण्ड योग साधना शिविर के नाम से रविवार 21 मई से रविार 28 मई 2017 के मध्य सम्पन्न होगा। इसका स्थान आर्ष कन्या गुरुकल, आर्यसमाज हजारीबाग, झारखण्ड है। करनाल में भी एक युवक निर्माण शिविर आयोजित किया जा रहा है जो बुधवार 21 मई से आरम्भ होकर रविवार 4 जून 2017 तक चलेगा।

जून 2017 में भी अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। 10 जून, 2017 से एक नौ दिवसीय राष्ट्रीय युवक चरित्र निर्माण शिविर ऐमिटी इण्टरनेशलन स्कूल, सैक्टर 44, नोएडा में आयोजित किया जा रहा है। हरियाणा प्रान्तीय युवक निर्माण शिविर के नाम से 4 जून से 11 जून 2017 तक का आयोजन श्रद्धा मन्दिर स्कूल, सैक्टर-87, फरीदाबाद में सम्पन्न होगा। जून के महीने में 26 जून 2017 से एक 7 दिवसीय युवक निर्माण शिविर जन्मू-काश्मीर में सम्पन्न हागा। स्थान आर्य समाज, जानीपुर जम्मू है। जयपुर युवक निर्माण शिविर सोमवार 19 जून से 25 जून 2017 तक संस्कार भवन, जी.एस. सैनी नर्सिंग कालेज, रामपुरा रोड, जयपुर में सम्पन्न होगा। एक आयोजन कुमाऊं युवक निर्माण शिविर 13 जून से 16 जून 2017 तक दिव्य ज्योति पब्लिक स्कूल, पुरड़ा करुड़, बागेश्वर में सम्पन्न होगा। जून के महीने में ही एक आयोजन जीन्द युवक निर्माण शिविर नाम से 1 जून से 8 जून, 2017 तक भटनागर कालोनी में सम्पन्न किया जायेगा। इसके बाद राजस्थान प्रान्तीय युवक निर्माण शिविर अलवर में 4 जून से 11 जून 2017 तक, पलवल युवक निर्माण शिविर पलवल हरियाणा में 12 जून से 18 जून, 2017 तक तथा हरिद्वार युवक निर्माण शिविर रूड़की में 4 जून से 11 जून, 2017 के मध्य सम्पन्न किया जायेगा।

इन सब आयोजनों के विवरण को देखकर हमें सन्तोष है कि डा. अनिल आर्य जी व उनकी टीम के सहयोगी श्री महेन्द्र भाई, श्री रामकुमार सिंह, श्री गवेन्द्र शास्त्री तथा श्री धर्मपाल आर्य जी इन सब कार्यक्रमों को सम्पन्न कराने में उन्हें सहयोग दे रहे हैं। जहां जहां यह शिविर सम्पन्न होंगे वहां के स्थानीय ऋषिभक्तों का भी सहयोग इन्हें सम्पन्न कराने में प्राप्त किया ही जायेगा। इन सब गतिविधियों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि आर्यसमाज में ऋषि दयानन्द जी के कार्यों को तेजी से करने का उत्साह आर्यों में विद्यमान है। हम आशा करते हैं कि इन सभी शिविरों व भावी कार्यक्रमों में भाग लेने वाले युवक युवतियों को आर्यसमाज से जुड़ने की प्रेरणा प्राप्त होगी व इनमें से कुछ आर्यसमाज के सदस्य बनकर आर्यसमाज के भावी वेद प्रचार कार्यों का दायित्व निर्वहन करेंगे।

इस जानकारी के साथ हम इस लेख को विराम देते हैं और डा. अनिल आर्य जी सहित उनकी पूरी टीम को, जो दिल्ली व अन्य स्थानों के शिविरों के आयोजनों को, सम्पन्न कराने में सहयोग करेगी, अपनी शुभकमानायें एवं बधाई देते हैं। इस समाचार से हमें प्रसन्नता मिली है। हम आशा करते हैं कि हमारे सभी पाठक मित्रों को भी इस जानकारी से सन्तोष व प्रसन्नता होगी। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121

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