लेखक-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक एवं आचार्य आशीष जी की उपस्थिति में-
‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन के ग्रीष्मोत्सव के दूसरे
दिन युवा सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न’
वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून के ग्रीष्मोत्सव के दूसरे दिन 11 मई, 2017 को प्रातः 10.30 बजे से युवा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें तपोवन विद्या निकेतन, देहरादून, साहिल मेमोरियल स्कूल, लक्ष्मणचैक, राजकीय इण्टर कालेज, नालापानी रोड, देहरादून के विद्यार्थी सम्मिलित हुए। आश्रम में ग्रीष्मोत्सव में सम्मिलित होने आये सभी धर्म प्रेमी श्रद्धालु भी इस आयोजन में सम्मिलित हुए। आयोजन का संचालन आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी ने बहुत योग्यतापूर्वक किया। युवा सम्मेलन का विषय था ‘देश की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में युवाओं का योगदान’। आयोजन के आरम्भ में आर्यजगत के सुप्रसिद्ध गीतकार और गायक पण्डित सत्यपाल पथिक जी का एक भजन हुआ। सम्मेलन में इसके संचालक आचार्य आशीष जी ने युवाओं एवं श्रोताओं के सम्मुख विषय को अनेक उदाहरण देकर सुस्पष्ट किया। पहली प्रस्तुति तपोवन आश्रम द्वारा संचालित विद्यालय ‘तपोवन विद्या निकेतन’ के बच्चो द्वारा समवेत स्वरो से गाये गए एक गीत से हुई जिसके बोल थे ‘जग को जगाने वाला आर्यसमाज है, आर्यसमाज है जी आर्यसमाज है।’ आचार्य जी ने आरम्भ में बच्चों से आर्यसमाज के विषय में कुछ प्रश्न किये। पहला प्रश्न था कि आर्यसमाज की स्थापना किसने और कहां पर की थी? इसका बच्चों से सही उत्तर मिला कि आर्यसमाज की स्थापना ऋषि दयानन्द ने मुम्बई के काकड़वाली स्थान पर की थी। सभी सही उत्तर देने वाले बच्चों को पुस्तक आदि साहित्य देकर स्वामी विवेकानन्द जी के कर कमलों से सम्मानित व पुरस्कृत किया गया। लोगों ने कुछ बच्चों को पुरस्कारस्वरूप नगद घनराशि देकर भी सम्मानित किया। दूसरा प्रश्न किया गया कि वेद कितने हैं और उनके नाम? इसका भी सही उत्तर दिया गया कि वेद चार हैं जिनके नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं। तीसरे प्रश्न कि वेदों का ज्ञान परमात्मा ने कब दिया, इसका उत्तर भी सही दिया गया कि वेदों का ज्ञान परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में दिया। इन प्रश्नोत्तर के बाद तपोवन विद्या निकेतन के कक्षा 7 के एक बालक वैभव ने सम्मेलन के विषय पर अपने वक्तव्य के रूप में विचार प्रस्तुत किये। उनके वक्तव्य की कुछ बातें थी कि भारत एक प्रजातान्त्रिक देश है। देश की जनसंख्या में युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है। युवाओं में सीखने व काम करने की ज्यादा शक्ति होती है। आज का युवा देश, परिवार व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भूलता जा रहा है, भारत के युवा यहां अपनी पढ़ाई कर विदेशों में जाकर बस जाते हैं। देश की राजनीति का माहौल बिगड़ रहा है। हमें आजादी के बाद अच्छे लोग नहीं मिले। युवा कम समय में ऊंचाईयों को छूना चाहते हैं, आदि आदि। वैभव जी का वक्तव्य बहुत सराहनीय वक्तव्य रहा।
लक्ष्मण चौक के स्कूल की कक्षा 7 की छात्रा क्षिप्रा ने अपने सम्बोधन में कहा कि मोदी जी किसी युवा से कम नहीं हैं। वह 18 घंटे व इससे अधिक कार्य करने वाले शायद् पहले प्रधानमंत्री हैं। इस बालिका ने मोदी जी की अनेक योजनाओं, नीतियों एवं कार्यों का विस्तार से उल्लेख किया। उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री श्री आदित्य नाथ योगी जी के कामों की भी प्रशंसा की। योगी जी के अति महत्वपूर्ण कार्य बूजड़खानों पर प्रतिबन्ध और उसे तत्परता से लागू करने को रेंखांकित कर उसकी भी प्रशंसा की गई। बालिका की भाषण शैली व प्रयास प्रशंसनीय बताया गया। लक्ष्मण चैक के ही स्कूल के एक बालक दीपक ने कहा कि राजनीति में युवा राजनेताओं की आवश्यकता है। उनका प्रयास भी सराहा गया। इसके बाद राजकीय इण्टर कालोज की छात्रा शीतल रावत ने सम्बोधन दिया और तीन तलाक विषय पर अपने तत्कालिक विचार प्रस्तुत किये। इसके पश्चात तपोवन विद्या निकेतन की बालिकाओं ने एक गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘हम देश के मालिक हैं हम देश को सजा देंगे। फूलों के नये पौघे भारत में लगा देंगे।।’
आर्य विद्वान डा. विनोद शर्मा को विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आयोजन के संचालक आचार्य आशीष आर्य जी ने आमत्रित किया। उन्होंने कहा कि युवा को राष्ट्र को योगदान देने से पूर्व अपने जीवन पर ध्यान देना होगा। मोबाइल की हानियों एवं दुरुपयोग के लाभ बताकर उन्होंने मोबाइल का प्रयोग न करने की सलाह दी। उन्हें कहा कि फेसबुक, व्हटसाप का प्रयोग भी बच्चों के विकास में बाधा पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि पढ़ाई करते समय अपने ध्यान को विषय पर केन्द्रित रखना चाहिये, इधर उधर जाने नहीं देना चाहिये। पढ़ाई करते हुए इधर उधर जाना भी उचित नहीं होता। विद्यार्थी अपनी दिनचर्या का निर्वाह ठीक से करें। डा. शर्मा ने कहा कि हमें अच्छी बातों का उल्लेख ही नहीं अपितु उनका पालन व आचरण भी करना है।
इसके बाद आचार्य आशीष जी ने बच्चों से और प्रश्न किये। एक प्रश्न था कि आर्यसमाज की स्थापना ऋषि दयानन्द ने किस सन् में की थी? दूसरा प्रश्न था कि महर्षि दयानन्द का जन्म किस सन् में कहां पर हुआ? इस संसार में कितने पदार्थ नित्य व अविनाशी हैं? इन सब प्रश्नों के छात्र-छात्राओं की ओर से सही उत्तर प्राप्त हुए। राजकीय इण्टर कालेज की एक छात्रा नेहा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा युवा का मतलब नया खून, नया जोश और एक नई समझ वाला मनुष्य होता है। देश की आबादी में 75 प्रतिशत युवा हैं। आज कल देश के युवा अपने ही हितों के बारे में सोचते हैं, देश के बारे में नहीं। इस सीमित सोच से देश को नुकसान हो रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्य नाथ योगी की चर्चा कर छात्रा ने कहा कि वह भी एक युवा हैं। उनकी सोच देश व समाज की दृष्टि से बहुत अच्छी है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा बूचड़खाने बन्द कराने की प्रशंसा की। प्राणियों की हत्या व उनके मांस के सेवन को छात्रा ने निन्दनीय कार्य बताया। नशीले पदार्थ और नशे का भी नेहा ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि नशे से मुक्त युवा ही देश, परिवार और समाज के बारे में सोचेगा। मुस्लिम समाज में तीन तलाक का उन्होंने विरोध किया। इसे देश की नारियों के लिए असम्मानजनक बताया। उन्होंने कहा कि नशे करने वालों का दिमाग कमजोर होता है, इसके साथ ही वह अधिक रोगी होते हैं और उनकी आयु भी घटती है। बालिका नेहा ने स्वच्छ भारत अभियान की प्रशंसा की। हमें सोचना चाहिये कि यदि हम स्वयं करेंगे तभी देश स्चच्छता को अपनायेगा। आयोजन की यह भी एक प्रमुख प्रस्तुति थी।
आज के युवा सम्मेलन कार्यक्रम की मुख्य अतिथि केन्द्रीय विद्यालय, वन अनुसंधान संस्थान की प्राचार्या डा. श्रीमती चारू शर्मा जी थीं। इस विद्यालय को भारत सरकार ने देश के 4.50 लाख विद्यालयों में स्वच्छता के लिए प्रथम स्थान पर चुना है। डा. श्रीमती चारू शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे विद्यालय को पूरे भारत में सबसे स्चच्छ होने का गौरव मिला। विद्यालय में 1450 बच्चे हैं। हमने बच्चों मे विचारों की स्वच्छता पर भी जोर दिया है। 5 साल में इस स्वच्छता अभियान ने हमारे विद्यालय में यह स्थिति उत्पन्न की है। हमारे विद्यालय के बच्चे यह अनुभव करते हैं कि वह यदि कहीं कागज का कोई टूकड़ा फेकेंगे तो उसे उसके साथी को ही उठाना पड़ेगा। इसलिए वह ऐसा नहीं करते। भगवान ने हमें यह तोह्फा दिया कि हमारे विद्यालय की देश के साढ़े चार लाख विद्यालयों में जगह बनी है। हम बच्चों के माध्यम से यह बदलाव लायें हैं। हमारे स्कूल को प्रशासन ने बन्द करने का निर्णय लिया था। हमारे स्कूल के बच्चों ने प्रधानमंत्री तक यह बात पहुंचाई कि हमारा विद्यालय रहना चाहिये या नहीं? क्या इसका विचार बुजुर्ग प्रशासक ही कर सकते है, क्या हम बच्चों की सोच का कोई अर्थ नहीं है? बच्चों के प्रयासों से आज हमारा विद्यालय पूर्व स्थिति में आ गया है अर्थात् बंद करने का निर्णय वापिस ले लिया गया है। प्राचार्या जी ने कहा कि केवल अध्ययन के विषयों में अधिक नम्बर लाने वाली सोच एक संकीर्ण मानसिकता है। बच्चों में नैतिकता व ईमानदारी के संस्कार होने चाहिये। हम बच्चों को संयम व अनुशासन सिखा रहे हैं। हमने महसूस किया है कि केवल किताबी शिक्षा व अध्ययन से जीवन सफल नहीं हो सकता। एक मनुष्य के रूप में बच्चों को अच्छे संस्कार व ज्ञान देने सहित हम बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए योगदान करें। प्राचार्या महोदया ने कहा कि हमारे भारत में पैंतीस प्रतिशत युवा हैं। उन्होंने पूछा कि आप युवा का क्या अभिप्राय समझते हैं? यूथ उसे कहते हैं जिसमें कुछ करने की इच्छा हो। चालीस वर्ष से कम उम्र के लोग युवा कहलाते हैं। देश की 65 प्रतिशत जनता युवा है। हमारे देश में राजनीतिज्ञों की औसत आयु 70 वर्ष है। युवाओं के अनुपात और राजनीतिज्ञों की औसत आयु में सामंजस्य नहीं हो पा रहा है। हम 65 प्रतिशत युवाओं का उपयोग देश को आगे बढ़ाने में नहीं कर पा रहा है। हम केवल डाक्टर व इंजीनियर आदि बनकर ही योगदान करने की इच्छा व विचार रखते हैं। हम व हमारे युवा सोचते हैं कि पालिटिक्स का काम दूसरे लोगों का है। हमें अपने अन्दर इच्छा शक्ति को जागृत करना होगा। युवा बच्चों को यह अनुभव होना चाहिये कि वह भी देश और समाज का हिस्सा हैं। ‘सत्य बोलना’ यह छोटी सी बात है। इस सिद्धान्त को अपने जीवन में प्रमुख स्थान देने की आवश्यकता है। आप विचार करें कि वेद, उपनिषद और गीता की बात आज विश्व में क्यों होती है। उन्होंने कहा कि बड़ों का अनुभव व युवाओं की शक्ति का समन्वय किया जाना चाहिये। हमारा देश विश्व में बहुतों से आगे हैं। विचारों की स्वतन्त्रता के हम समर्थक है। सच्चाई को हम यूनिवर्सल वैल्यू मानते हैं। यही सबसे बड़ा धर्म ग्रन्थ है। डा. श्रीमती चारू शर्मा ने मंच पर उपस्थित स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, आचार्य आशीष, स्वामी दिव्यानन्द और आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ आदि को अपना आचार्य बताया। उन्होंने कहा कि वह बच्चों के साथ मिलकर आगे बढ़ने का प्रयास करा रही हैं। सभी को धन्यवाद देकर उन्होंने अपने वक्तव्य को समाप्त दिया।
इसके बाद एक विद्यार्थी श्री राजेश ने विषय पर अपने विचार रखे। एक बालिका बेबी चैहान ने गीत प्रस्तुत किया। आर्य विद्वान आचार्य उर्मेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने भी युवासम्मेलन के विषयानुकूल अपने प्रशंसनीय विचार प्रस्तुत किये। इसके बाद युवा सम्मेलन में देहरादून के विद्वान पुराहित श्री विद्यापति शास्त्री का एक सुमधुर भजन हुआ जिसके बोल थे ‘नौजवानों उठो देख लो देश में आज क्या हो रहा है।’ इसके बाद दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात के प्रमुख स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक ने बच्चों को अपनी प्रभावशाली वाणी में सम्बोधित किया और प्रश्नोत्तर शैली से उनसे संवाद किया। स्वामी जी के संवाद व कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातों को हम पृथक से प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे। यह बता दें कि स्वामी जी ने बच्चों को मोक्ष विषय पर प्रश्नोत्तर शैली में संवाद कर इसका समर्थन प्राप्त किया। अन्त में आचार्य आशीष जी ने कार्यक्रम का समापन शान्तिपाठ से किया।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
-तपोवन आश्रम में आयोजित युवा सम्मेलन का वृतान्त-
‘मोक्ष में सभी दुःखों से मुक्ति, ईश्वर का आनन्द और ब्रह्माण्ड की सैर
का अवसर मिलता है: स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून में 11 मई 2017 को प्रातः 10.00 बजे से युवा सम्मेलन आयोजित किया गया। विषय था ‘देश की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में युवाओं का योगदान’। आयोजन में स्कूली बच्चों सहित मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय विद्यालय, वन अनुसंधान विभाग की प्राचार्या डा. श्रीमती चारू शर्मा का सम्बोधन हुआ। आचार्य आशीष जी ने संचालन किया। आर्य विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी सहित डा. विनोद शर्मा ने भी बच्चों व सभागार में उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित किया। आर्यजगत के सुप्रसिद्ध तपोनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले ज्येष्ठ विद्वान स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी ने भी स्कूली बच्चों से प्रश्नोत्तर शैली में वैदिक विचारधारा पर चर्चा कर अनेक विषयों पर बच्चों की सहमति कराई। इस सम्मेलन का पहला भाग हम पूर्व प्रस्तुत कर चुके हैं। यह दूसरा व अन्तिम भाग प्रस्तुत है। राजकीय इण्टर कालेज के युवक राजेश ने बताया कि वह 350 बच्चों को कराटे सिखा चुका है। मांसाहारी था तथा तपोवन की शिक्षण संस्था व आचार्य आशीष जी के शिक्षण में मांसाहार छोड़ चुका है। वह आशीष आर्य जी को अपना आदर्श मानते हैं। हमें बड़ा बनने के लिए बड़ों जैसा कार्य करना होगा, यह बात वह अनुभव करते हैं। इस युवक ने अपने देश को बलवान व प्रभावशाली बनाने की भावना प्रदर्शित की। इस युवक के बाद तपोवन विद्या निकेतन विद्यालय की पुत्री बेबी चैहान ने एक कविता वा गीत प्रस्तुत किया जिसकी पहली पंक्ति थी ‘माना की जिन्दगी अन्धेरे में घिरी है, बोझ सर पर इतना है कि जैसे हिमगिरी है।’ इसके बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का प्रवचन हुआ।
आचार्य जी ने कहा कि यहां युवकों की प्रस्तुतियां देखकर उन्हें प्रसन्नता है और उनके विचारों में परिवर्तन आया है। वह यह अनुभव कर रहे है कि युवाओं का विकास हो सकता है। सम्मेलन में जो प्रस्तुतियां हुई हैं वह विचारों का क्रियात्मक रूप प्रदर्शित करती हैं। मनुष्य की 25 वर्ष तक की आयु में दो कार्य विशेष रूप से करने होते हैं। शरीर को मजबूत बनाना होता है तथा बुरी आदतों को छोड़ना, अच्छी आदतों में ढलना, अच्छा भेजन, आहार करना, व्यायाम करना और प्राणाायाम आदि करना पहला काम है। दूसरा मुख्य काम विद्या प्राप्त करना है जिससे 100 वर्ष तक का हमारा जीवन कट जाए। आचार्य जी ने कहा कि बिना विद्या के बुद्धि पवित्र नहीं होती। अपने स्कूली पाठ्यक्रम के साथ बच्चों को ऋषियों की प्राचीन विद्या इस प्रकार के शिविरों वा कार्यक्रमों में आकर समझनी है। आज का जीवन धन की दौड़ में लगा हुआ है। आप लोग धन की दौड़ में मत जाना। प्रधान मंत्री मोदी जी के पास धन नहीं था। वह बचपन में चाय बेचते थे। अध्ययन और पुरुषार्थ ने उन्हें ऊंचा उठा दिया। धन का न होना मनुष्य की उन्नति में बाधक नहीं है। विद्वान वक्ता ने एक ऐसे बालक की सत्य कथा सुनाई जिसके पास न अच्छे कपड़े थे, न पैर में चप्पल ही। घर में लाइट भी नहीं थी। वह अपनी गली के बिजली के खम्भे के नीचे बैठकर पढ़ाई करता था। वह बच्चा कक्षा 10, 12, 14 में प्रथम आया। आज वह इंजीनियर है। हमारी पहली आवश्यकता अपने जीवन में सद्गुणों को धारण करने की है। आचार्य जी ने बच्चों को कहा कि माता पिता व आचार्य का कभी अनादर मत करना। पुरुषार्थ करना। आचार्य जी ने हिन्दी साहित्यकार डा. नगेन्द्र के जीवन की घटनायें भी प्रस्तुत कीं। इनकी माता ने 6 वर्ष की आयु होने पर इनके जन्म दिवस पर साबुन की टिक्की भेंट कर कहा था कि आज के बाद अपने कपड़े तुम स्वयं धोना। आचार्य जी ने कहा कि सभी बच्चों को अपने माता-पिता के कार्यों में सहयोग करना चाहिये। आचार्य जी ने युवा सम्मेलन व उसकी प्रस्तुतियों की सराहना कर कहा कि उन्हें यह सम्मेलन विचारों को जागृत करने वाला लगा। इसके बाद देहरादून के आर्य पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी ने एक भजन “नौजवानों उठो देख लो देश में आज क्या हो रहा है। जो अमानत शहीदों की है, उस वतन से दगा हो रहा है। जुल्म क्या चीज है इस जहां में, जिस पे गुजरे वही जानता है। जुल्म की इम्तिहां हो गई है, हर कोई दुःखी हो रहा है।”
इसके बाद आर्यजगत के प्रख्यात संन्यासी स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी ने बच्चों से संवाद किया। आपने यात्रा व उसमें भटकने की चर्चा की। आपने कहा कि यदि हमें यात्रा का लक्ष्य पता हो तभी यात्रा हो सकती है। यदि कोई कहे कि वह यात्रा तो कर रहा है परन्तु उसे लक्ष्य का ज्ञान नहीं है तो वह यात्रा नहीं कर रहा होता। स्वामी जी का संकेत जीवन पर था। मनुष्य को अपने जीवन का यदि लक्ष्य व उसकी प्राप्ति के साधनों का पता है तभी उसकी यात्रा सफल हो सकती है। लक्ष्य व उसकी प्राप्ति के साधनों को न जानने वाले यात्रा नही कर रहे हैं। स्वामी जी ने बच्चों से प्रश्न किया कि तुम अपने भावी जीवन में क्या बनोगे? किसी ने डाक्टर, किसी ने इंजीनियर, वैज्ञानिक व वकील बताया। ब्रह्मचारी व संन्यासी कौन बनेगा? कौन वेद पढ़ेगा? बहुत बच्चों ने इस प्रश्न के उत्तर में अपने हाथ खड़े किये। स्वामी जी ने बच्चों से पूछा कि क्या डाक्टर, इंजीनियर आदि बनने से हमारी सभी इच्छायें पूरी हो जायेंगी। इसकी विस्तृत विवेचना कर स्वामी जी ने कहा कि इसका परिणाम इस जीवन में व भावी जीवन में भयंकर हो सकता है। स्वामी जी ने बच्चों से पूछा कि मोक्ष में कौन कौन जाना चाहता है। तीन-चार बच्चों ने हाथ खड़े किये। स्वामी जी ने पूछा कि मोक्ष में क्या होता है? मोक्ष का अभिप्राय आप क्या समझते हैं। बच्चों की बाते सुनकर स्वामी जी ने उत्तर दिया कि मोक्ष में तीन बातें होती हैं, प्रथम सारे दुःखों से छूट जाते हैं। द्वितीय ईश्वर का उत्तम आनन्द जीवात्मा को प्राप्त होता है और तीसरा लाभ ब्रह्माण्ड की सर्वत्र सैर करने का अवसर मिलता है। स्वामी जी ने कहा कि क्या आप सभी सारे दुःखों से छूटना चाहते हैं? ईश्वर का आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं? क्या आप सभी ब्रह्माण्ड की सैर करना चाहते हैं? क्या आप सभी मोक्ष प्राप्त करना चाहेंगे? उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष ही है। स्वामी जी ने बच्चों से यह भी प्रश्न किया कि क्या वह मानते हैं कि मरने के बाद पुनर्जन्म होगा? जो मानते थे और जो नहीं मानते थे उन बच्चों ने हाथ उठाये। प्रायः सभी बच्चों ने पुनर्जन्म के संबंध में इसका होना स्वीकार किया। स्वामी जी ने बताया कि हमारा यह जन्म हमारे पूर्व कृत कर्मों के कारण हमें मिला है। स्वामी जी ने पूछा कि कर्म पहले या उसका फल पहले? सभी ने पहले कर्म व बाद में उसका फल मिलने की बात स्वीकार की। स्वामी जी ने कहा कर्म पहले फल बाद में से पुनर्जन्म सिद्ध है। हम इस जन्म में जो व जैसे कर्म करेंगे उसके फल के रूप में हमारा पुनर्जन्म होगा। स्वामी जी ने कहा कि हमें अपने जीवन का लक्ष्य समझना है। स्वामी जी ने बच्चों को कहा कि यदि आप देश व समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो पहले अपना निर्माण करना पड़ेगा। उसके बाद आप योगदान कर सकेंगे। स्वामी जी ने कहा कि पूरी ईमानदारी से वकालत, डाक्टरी, इजीनियरिंग आदि का काम करना भी देशभक्ति है। उन्होंने कहा कि रिश्वतखोर, चोर, भ्रष्ट, मिलावट करने वाले, चरित्रहीनता के काम करने वाले लोग देशभक्त नहीं हैं। देशभक्त बनने के लिए पहले ईमानदार बनना पड़ेगा।
स्वामी जी ने कहा कि दण्ड के बिना कोई मनुष्य सुधरता नहीं है। इसके लिए स्वामी जी ने बस का उदाहरण देकर सिद्ध किया कि दण्ड न देना पड़े इस लिए सभी यात्री टिकट लेते हैं। यदि बस में यह लिखा हो कि टिकट न लेने वालों को कोई दण्ड नहीं देना होगा, तो कोई भी टिकट नहीं लेगा। बस में यह लिखा होता है कि बिना टिकट यात्री को 10 गुणा टिकट का मूल्य दण्ड में देना होगा, इस डर से ही सब टिकट लेते हैं। स्वामी जी ने कहा कि मरने के बाद जन्म मिलेगा। यदि अच्छे काम करेंगे तो मनुष्य का जन्म मिलेगा नहीं करेंगे तो पशु, पक्षी आदि किसी अन्य योनि में जन्म मिलेगा जिसमें अधिक दुःख भोगना पड़ता है। स्वामी जी ने बच्चों से प्रश्न किया कि क्या उनकी बात समझ में आयी? अच्छे काम करेंगे? बुरे काम छोड़ेगे? सभी बच्चों ने एक अपने हाथ उठाकर एक स्वर से कहा कि वह अच्छे काम करेंगे? बुरे काम छोड़ेंगे। इसी के साथ स्वामी जी का बच्चों से संवाद समाप्त हुआ। इसके बाद सम्मेलन के संचालक आशीष जी ने बच्चों से पूछा कि ईश्वर ने चार वेदों का ज्ञान किनको दिया? एक बच्चे ने उत्तर दिया कि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ऋषि को दिया। यह उत्तर बहुत से बच्चों को आता था। सबने प्रश्न सुनकर उत्तर दिया कि संसार में परमात्मा एक ही है। विष्णु अलग ईश्वर नहीं अपितु परमात्मा का ही एक गुणवाचक नाम है। इसी के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सबने मिलकर शान्तिपाठ किया।
रात्रिकालीन सत्संग में श्री आजाद सिंह आर्य, भजन सम्राट श्री सत्यपाल पथिक जी और शास्त्रीय परम्परा पर आधारित भजन गाने वाले मधुवर्षी श्री कल्याणसिंह वेदी जी के भजन हुए। सभी प्रस्तुतियां बहुत उत्तम एवं प्रशंसनीय थी। इसके बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का वेद ईश्वरीय ज्ञान है विषय पर सारगर्भित एवं महत्वपूर्ण प्रवचन हुआ। इस प्रवचन के बाद आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी का ज्ञानवर्धक प्रवचन हुआ। अपने प्रवचन में आचार्य आशीष जी ने मनुष्य को अपने जीवन को अन्दर व बाहर से सुख, शान्त व आनन्द से युक्त बनाने के उपायों पर विस्तार से समीक्षा की। अत्यन्त लाभप्रद एवं सैद्धान्तिक विवेचन इस भाषण में हुआ। रात्रि का कार्यक्रम रात्रि 9.30 बजे शान्तिपाठ के साथ सम्पन्न हुआ।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
ओ३म्
‘प्रभावशाली वक्ता आर्य विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र
कुलश्रेष्ठ का परिचय एवं उपदेश’
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
आजकल देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव चल रहा है। आयोजन को सम्पन्न कराने के लिए प्रमुख वक्ता के रूप में आगरा के प्रभावशाली वक्ता आर्य विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी आये हुए हैं। आंशित ऋग्वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा भी आप ही हैं। यज्ञ के अनन्तर एवं पश्चात दोनों समय आपका व्याख्यान व धर्मोपदेश होता है। दिन में अनेक प्रकार के आयोजन किेये जाते हैं जो प्रातः 10.00 बजे आरम्भ होकर दिन के 1.00 बजे तक चलते हैं। एक आध कार्यक्रम को छोड़कर प्रायः सभी में आचार्य उमेश जी के व्याख्यान होते हैं। रात्रि को 7.30 बजे से 9.30 बजे तक भी भजन एवं प्रवचनों का कार्यक्रम होता है। एक दिन भजन संध्या को छोड़ सभी दिनों उनके व्याख्यान उसमें भी होते हैं, हुए हैं व होंगे। कुछ वर्ष पूर्व भी आप दो अवसरों पर यहां मुख्य वक्ता विद्वान के रूप में आ चुके हैं। हमारा सौभाग्य है कि आपके अधिकांश प्रवचनों को सुनने का हमें अवसर मिला है। हम उनके प्रायः सभी व्याख्यानों को यथा सम्भव नोट करते हैं और उन्हें फेसबुक व इमेल आदि से मित्रों व पत्र-पत्रिकाओं एवं अनेक नैट पर आधारित पत्र-पत्रिकाओं को भी भेजते हैं व पूर्व भेजा है। यूट्यूब पर भी अपका एक प्रवचन उपलब्ध है। इमेल से भेजन लेख अनेक स्थानों पर प्रकाशित हो जाते हैं। विगत दो दिनों से हम आपके प्रवचनों का लाभ उठा रहे हैं। आज हमने उनके विश्राम कक्ष में कुछ देर भेंट कर उनका परिचय जाना है जिसे हम अपने मित्रों से साझा कर रहे हैं।
आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मैनपुरी जिले के ग्राम ‘भदाना’ में 30 मार्च सन् 1938 को हुआ था। श्री भूदेव प्रसाद कुलश्रेष्ठ जी आपके पिता तथा श्रीमती सावित्री देवी जी आपकी माता जी थीं। आप 5 भाई व 1 बहिन हुए। 2 भाई दिवंगत हो चुके हैं। भाई बहिनों में आपका क्रम तीसरा है। आपकी प्राइमरी तक की शिक्षा ग्राम में ही हुई। कक्षा 10, 12, 14 तथा 16 की शिक्षा आपने आगरा में प्राप्त की। शिक्षा काल में आपका विषय अर्थशास्त्र रहा। आप एन.सी. वैदिक इण्टर कालेज, आगरा में लेक्चरार के पद पर नियुक्त हुए और अर्थशास्त्र ही आपका अध्यापन का विषय रहा। सन् 2009 में आपकी धर्मपत्नी माता श्रीमती कमल कुलश्रेष्ठ जी की मृत्यु हुई। आपकी 3 पुत्रियां एवं 1 पुत्र है। सभी सन्तानें विवाहित हैं। स्कूली दिनों में आप आर्यसमाज से परिचित अवश्य थे, आर्यसमाज जाया भी करते थे, परन्तु सेवानिवृति के बाद अवकाश का अधिक समय उपलब्ध होने पर सन् 2000 से आपने आर्यसमाजों में व्याख्यान देने का कार्य आरम्भ किया। आपने अपने प्रयत्नों से संस्कृत पढ़ी और आर्य साहित्य का गहन गम्भीर अध्ययन किया। इस अध्ययन व इससे पूर्व स्कूल में अध्यापन के अनुभव ने आपको एक प्रभावशाली उपदेशक व वक्ता बना दिया। आप अनेक बार देहरादून के तपोवन आश्रम सहित आर्य समाज लक्ष्मण चैक, देहरादून में व्याख्यान हेतु आये हैं। इसके अतिरिक्त आपको पठान कोट, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा आदि कई स्थानों, दिल्ली प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, उड़ीसा एवं उत्तर प्रदेश के अनेक नगरों व स्थानों में जाकर वेद प्रचार करने का अवसर भी मिला है। बंगलौर, राउरकेला आदि वह स्थान हैं जहां आप प्रवचनों के लिए जा चुके हैं।
आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी की व्याख्यान शैली बहुत ही सरल, सुबोध, प्रभावशाली, हृदय को ग्राह्य व श्रोताओं को आनन्द देने वाली है। यही कारण है कि हम इनके प्रवचनों में खींचे हुए चले जाते हैं। विषय को आप इतनी सरलता व सुसंगत उदाहरणों से समझाते हैं कि श्रोता मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं। हमें लगता है कि ऐसे प्रभावशाली विद्वान और प्रचारक आर्य समाज में बहुत कम है। हमने अपने अनुभव में यह भी पाया है कि आपके स्वभाव में परिग्रह, धनोपार्जन के प्रति कोई विशेष आकर्षण नहीं है। हमने तपोवन आश्रम द्वारा संचालित तपोवन विद्या निकेतन के निर्धन छात्रों की सहायता के लिए आपको पर्याप्त धनराशि दान देते हुए देखा है। इससे हमें लगा कि आप वाकशूर ही नहीं कर्मशूर भी हैं। सभी श्रोताओं से बड़े प्रेम व सौहार्द से मिलते हैं। बातें करते हैं। आपके स्वभाव में विनय व स्नेह जैसे गुण परिलक्षित होते हैं। आज जब हम आपके कक्ष में गये तो आप व साथ की शय्या पर आर्यजगत के भजन सम्राट पंडित सत्यपाल पथिक जी विश्राम कर रहे थे। पथिक जी का भी हम पर बहुत स्नेह व आशीर्वाद है। हमने दोनों से ही भेंट की। पथिक जी भी हमें टंकारा, गुरुकेुल पौंधा, परोपकारिणी सभा, अजमेर आदि स्थानों पर मिलते रहे हैं। आज आर्यसमाज की इन दो महान् हस्तियों से मिलकर हमें सन्तोष व प्रसन्नता हुई। लगा कि यह किन्हीं पूर्व शुभ कर्मों का परिणाम हो सकता है। हम अपने इन दोनों वृद्ध विद्वानों के प्रति अपने हृदय से शुभकामनायें व्यक्त करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना है कि दोनों स्वस्थ रहें, दीर्घ काल तक हमें इनके दर्शन होते रहें और आर्यसमाज इनकी सेवाओं से लाभान्वित होता रहे।
दिनांक 11 मई, 2017 को आचार्य उमेशचन्द्र जी ने तपोवन आश्रम में सांयकालीन यज्ञ के बाद अपने उद्बोधन में एक प्रश्न प्रस्तुत किया कि सभी धनों का स्वामी कौन है? उन्होंने कहा कि वेद में ईश्वर कहता है कि मैं निश्चित रूप से पृथिवी के सभी धनों का स्वामी हूं। परमात्मा से प्रत्येक पदार्थ आच्छादित है। परमात्मा ने सब पदार्थ बनाये हैं। पृथिवी के सभी पदार्थ, सभी रत्न आदि ईश्वर ने ही बनाये हैं। परमात्मा घोषणा करता है कि मैं सबका स्वामी हूं। सभी श्रेष्ठ धन लाता हूं और उन्हें जीवात्माओं को प्रदान करता हूं। यह काम मैं जीवात्माओं को सुख पहुंचाने के लिए करता हूं। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा ने सभी धन मनुष्यों के लिए बनाये हैं। यदि मनुष्य इस सत्य व रहस्य को समझ ले तो धन के पीछे भागना बन्द कर दे। आचार्य जी ने एक स्वामी जी की कथा सुनाई। उनके पास छोटी गिन्नियां थी। स्वामी जी को हलुवा पसन्द था। स्वामी जी अपनी मृत्यु के समय इन स्वर्ण गिन्नियों को परलोक में अपने साथ ले जाना चाहते थे। जब स्वामी जी मरणासन्न हुए तो उन्होंने अपनी किसी शिष्या से हलुवा बनवाया। हलुवे के साथ वह सभी गिन्नियां निगल गये। रात्रि में स्वामी जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्यों को जानकारी थी कि स्वामी जी के पास कुछ गिन्नियां थी। वह उसे ढूंढने लगे परन्तु उन्हें वह नहीं मिली। उनका दाह संस्कार कर दिया गया। स्वामी जी की अस्थियां चयन करते हुए उन्हें वहां एक ढेला मिला जिसे ध्यान से देखा गया तो सभी गिन्नियां उसमें विद्यमान थी। आचार्य जी ने यह कथा सुनाकर कहा कि लोगों का यह अज्ञान है कि धन उनके साथ परलोक में जा सकता है। मनुष्य यह भूल जाता है कि परमात्मा ने यह धन बनाया है और वह अपने धन की रक्षा करना भी जानता है। आचार्य जी ने कहा कि ऋग्वेद घोषणा करता है कि सब धनों का स्वामी परमात्मा ही है। धन हमारे जीवन के कल्याण के लिए है। धन मनुष्यों के उपभोग के लिए है। हमें धन का उपभोग त्याग भाव से करना है। आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा मीठे मीठे फल देता है परन्तु वह फलों को खाता नहीं है। आचार्य जी ने श्रोताओं को कहा कि आप भी परमात्मा की तरह रहिये।
आचार्य जी ने गांधी जी के चम्पारण के एक गांव में जाने की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि चम्पारण में बहुत गरीबी थी। गांधी जी जब एक झोपड़ी के आगे पहुंचे तो वहां बाहर एक बालिका बैठी थी। गांधी जी अन्दर जाकर उनकी आर्थिक स्थिति का अन्दाज लगाना चाहते थे परन्तु बालिका ने गांधी जी को अन्दर नहीं जाने दिया। पूछने पर उस बालिका ने बताया कि उसकी मां बाजार गई है। मेरी बहन घर में है। हमारे पास पर्याप्त वस्त्र नहीं है। माता धोती पहन कर गई है, बहन घर में निर्वस्त्र है। इस घटना ने गांधी जी पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने इससे प्रभावित होकर शेष जीवन में शरीर के ऊपरी भाग में वस्त्र न पहनने का निर्णय लिया। वह केवल धोती पहनते थे। कुर्ता आदि नहीं पहनते थें। आचार्य जी ने यजुर्वेद के मन्त्रांश ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ का उल्लेख कर कहा कि हमारी स्थिति यह है कि हम नया कुर्ता बना लेते हैं परन्तु अपना पुराना कुर्ता किसी गरीब को नहीं देतें। सोचते हैं कि यह सफाई में काम आ सकता है। आचार्य जी ने अनेक समृद्ध स्त्रियों के पास सौ से अधिक साड़िया होने पर भी नये डिजाइन की साड़िया खरीद कर रखना और पुरानी गरीबों को दान न करने को प्रवृत्ति को भी बुरा बताया। आचार्य जी ने कहा कि ईश्वर ही धन और भोजन की व्यवस्था करता है। हमारे लिए ईश्वर ने जितना निर्धारित किया है वह तो हमें मिलेगा ही। हमारे प्रारब्ध के अनुसार हमारे भोग ईश्वर अवश्य ही हमें प्रदान करेगा। हमें त्याग पूर्वक सुखों व सुख की सामग्री का भोग करना है। हमें शुभ कर्म करने हैं। त्याग पूर्वक जीना शुभ कर्म करना ही है। यही तप भी है।
आचार्य जी ने ऋषि पाणिनी जी की कथा सुनाई। उन्होने कहा कि ऋषि पाणिनी कश्मीर में एक स्थान पर झोपड़ी बना कर अपनी पत्नी सहित रहते थे। एक बार वहां के राजा उनके पास से निकले। ऋषि की निर्धनता देख कर उन्हें दया आई। उन्होंने ऋषि से प्रस्ताव किया कि वह उन्हें एक अच्छा मकान देना चाहते हैं। राजा के चले जाने पर ऋषि ने अपनी पत्नी को कहा, अपना समान उठाओं हमें यहां से अभी जाना होगा। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि पाणिनी ने धन व उसके प्रलोभन को ठोकर मार दी। आचार्य जी ने कहा कि आज स्थिति विपरीत है। लोगों के पास रोटी की व्यवस्था है। आज के लोग सब कुछ होने पर भी सुन्दर से सुन्दर मकान बनाने में लगे हैं। अपने पूर्व के भवन में सौ दो सौ साल रह सकते थे। पुरुषार्थ का कमाया धन उसे तोड़ने और नये डिजाइन का घर बनाने में लगाते हैं। उसे आचार्य जी ने धन का अपव्यय बताया। उन्होंने कहा कि इस धन से किसी गरीब का छप्पर बनवा सकते थे। आचार्य जी ने एक वेद मन्त्र बोला और कहा कि परमात्मा कहता है कि वह ही दानियों के लिए धन की व्यवस्था करते हैं। वेद में ईश्वर कहता है कि जो दानशील हैं उन पर वह धन की वर्षा करता है। परमात्मा दानियों के धन को बढ़ाता रहता है। आचार्य जी ने यज्ञ करने की प्रेरणा करते हुए कहा कि यज्ञ में चम्मच में गोघृत भर भर कर डाला करो। यह दान दिये पदार्थ यज्ञकर्ता से अलग नहीं होते। यह बातें स्वामी वेदानन्द तीर्थ जी ने अपने ग्रन्थ ‘स्वाध्याय सन्दोह’ में लिखी हैं। आचार्य जी ने कहा कि वेदों का ज्ञान सर्वोपरि है। वेद ईश्वरीय ज्ञान है। वेद हमारा धर्म ग्रन्थ है। वेद स्वतः प्रमाण है। वेद सूर्य की तरह स्वतः प्रमाण हैं। वेद ज्ञान निभ्र्रान्त ज्ञान है। वेद ईश्वर कृत हैं। ईश्वर पवित्र, सर्वविद्यावान्, न्यायकारी व दयालु है। ऐसा ही ज्ञान जिस पुस्तक में हो वह ईश्वरीय पुस्तक होती है। ऐसे ही हमारे चार वेद हैं। चार वेद एक दूसरे वेद की बात को नही काटते। सभी चार वेदों की बातें परस्पर पूरक व निर्विरोध ज्ञान वाली हैं। इसी के साथ आचार्य जी का उपदेश सम्पन्न हो गया। उपदेश की समाप्ति पर आश्रम के यशस्वी प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी ने आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी, सभी विद्वानों व भजनोपदेशकों सहित आश्रम पधारे सभी ऋषि भक्तों का धन्यवाद किया।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें