‘प्रसिद्ध गुरुकल पौंधा देहरादून में 4 दिवसीय ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका स्वाध्याय शिविर डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई के सान्निध्य में आरम्भ’
लेखक-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
महर्षि दयानन्द जी के सभी ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं परन्तु सभी ग्रन्थों में सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि का प्रमुख स्थान है। गुरुकुल में विगत वर्षों में सत्यार्थप्रकाश के स्वाध्याय शिविर सम्पन्न हुए हैं जिन्हें आर्यजगत के प्रख्यात विद्वान ऋषि भक्त डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई ने सम्पन्न कराया है। इस वर्ष दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के सहयोग से गुरुकुल के तीन दिवसीय 18वें स्थापना समारोह (2-4 जून, 2017) से चार तीन पूर्व 29 मई से 1 जून, 2017 तक ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका स्वाध्याय शिविर’ का आयोजन किया जा रहा है जिसके प्रथम दिवस का कार्यक्रम आज सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का स्वाध्याय व इस पर व्याख्यान डा. सोमदेव शास्त्री जी ने दिया। बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष इस आयोजन में सोत्साह सम्मिलित हुए जिनमें देश भर के अनेक दूरस्थ भागों से पधारे ऋषि भक्त आर्य नर-नारी सम्मिलित हैं। स्वाध्याय शिविर प्रातः 10 बजे से आरम्भ हुआ। गुरुकुल के प्राचार्य डा. धनंजय जी ने आयोजन की भूमिका पर प्रकाश डाला। आपने ऋषि के ग्रन्थों में ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के महत्व पर भी सारगर्भित शब्दों में प्रकाश डाला। शिविरार्थियों को उन्होंने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ग्रन्थ के स्वाध्याय से लाभ उठाने का परामर्श दिया। उन्होंने कहा कि आचार्य डा. सोमदेव जी ने सुदूरस्थान मुम्बई से आकर हमारे गुरुकुल और हम शिविरार्थियों पर महती कृपा की है। आपने दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के अधिकारी श्री सुखबीर सिंह जी को इस स्वाध्याय शिविर का आयोजन कराने में सहयोग देने के लिए गुरुकुल व अपनी ओर से धन्यवाद भी किया।
शिविराध्यक्ष एवं व्याख्यानदाता डा. सोमदेव शास्त्री जी ने कहा कि ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका स्वामी दयानन्द जी का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। आर्यों का जीवन श्रेष्ठ कैसे बने इसके लिए ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका सहित स्वामी दयानन्द जी ने संस्कार विधि और सत्यार्थप्रकाश आदि अनेक ग्रन्थों की रचना की है। आपने संस्कारों की चर्चा की और संस्कारों के जीवन में आधान में संस्कारविधि का प्रमुख स्थान बताया। आपने संस्कारों के महत्व के कुछ उदाहरण भी दिये। आपने कहा कि बड़े व कठोर पत्थर पर हथौड़े की बार बार चोट करने पर ही अन्त में वह टूटता है परन्तु प्रत्येक चोट के साथ वह कुछ कमजोर होता जाता है। इसी प्रकार जीवन को संस्कारित करने में अच्छे संस्कारों का बार बार आचरण व व्यवहार करना होता है। मनुष्य का जब जन्म होता है तो जीवात्मा के साथ अच्छे व बुरे संस्कार आते हैं। उन्होंने कहा कि हमें बुरी आदतों को छोड़ने का प्रयत्न करना चाहिये। महर्षि दयानन्द के शब्दों कि वह सन्तान धन्य है जिसके माता-पिता धार्मिक हों, की चर्चा भी आचार्य जी ने की और इसके महत्व पर प्रकाश डाला। आपने मनुष्यों में सुशीलता के गुण की भी चर्चा की और कहा कि हम सबको सुशीलता को धारण करना चाहिये। ऋषि दयानन्द जी के वेद भाष्य के कार्य सहित इस ग्रन्थ की विषय वस्तु व उसकी महत्ता पर भी विद्वान वक्ता महोदय ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सभी चार वेदों की एक ही भूमिका है। भूमिका ग्रन्थ की रचना का आरम्भ ऋषि दयानन्द ने अयोध्या में 20 अगस्त सन् 1876 को किया था और तीन महीने में ग्रन्थ लिखकर तैयार हो गया था।
डा. सोमदेव शास्त्री ने बताया कि महाभारत काल के बाद वेदानुयायी विद्वानों को यह भ्रम हो गया था कि वेदों का उपयोग केवल यज्ञ के लिए ही होता है। उन्होंने कहा कि यह उनकी मिथ्या मान्यता थी। इस भ्रम व मिथक को ऋषि दयानन्द ने तोड़ा। उन्होंने कहा कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों में ज्ञान, विज्ञान सहित खेती, व्यापार, राज व्यवस्था, शिक्षा, उपासना, विमान, तार विद्या आदि आदि अनेकानेक विषय एवं सभी विद्यायें हैं। आपने बताया कि ऋषि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में 35 विषयों पर प्रमाणिक जानकारी दी है। आचार्य सोमदेव शास्त्री ने मुम्बई के शिवकर बापू तलपडे जी की चर्चा की और बताया कि वह ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के अनुयायी थे। उन्होंने सन् 1895 में वायुयान बनाया था। श्री तलपडे आर्यसमाज काकड़वाड़ी के सदस्य व पदाधिकारी थे। उन्होंने जो विमान बनाया था उसका नाम ‘‘मरुतसखा” रखा था। इस विमान को उन्होंने मुम्बई के चैपाटी इलाके में बड़ोदा नरेश श्री गायकवाड़, पूना के न्यायालय के न्यायाधीश श्री महादेव गोविन्द रानाडे सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों एवं लोगों के भारी समूह की उपस्थिति में उड़ाया था जो काफी ऊंचाई तक गया था और 17 मिनट तक वायु व आकाश में रहा था। उन दिनों देश के लोकप्रिय नेता बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र ‘‘केसरी” में तलपडे जी के विश्व में सर्व प्रथम विमान बनाने व उसे सफलतापूवक उड़ाने के कार्य की प्रशंसा की थी। श्री तलपडे जी को इस वैज्ञानिक खोज व विमान निर्माण के लिए ‘विद्या प्रदीप प्रकाश’ की उपाधि मिली थी और कोल्हापुर के शंकराचार्य जी ने उनका इस कार्य के लिए सम्मान भी किया था। श्री तलपडे जी ने इस सफलता के बाद विमान को नया, प्रभावशाली, उन्नत व विकसित रूप देने के लिए दस हजार रूपयों की एक अपील की थी। श्री तलपडे की सफलता से देश की अंग्रेजी सरकार उनकी विरोधी हो गई थी। उन्होंने तलपडे की किसी प्रकार की सहायता न करने के लिए बड़ौदा नरेश श्री गायकवाड जी को बुरे परिणामों की धमकी दी थी। महादेव गोविन्द रानाडे जी को भी नौकरी से निकालने की धमकी दी गई थी। श्री तलपड़े जी ने सहायता न मिलने पर एक पुस्तक प्रकाशित कर धन संग्रह करने की योजना बनाई थी परन्तु यथेष्ट धन प्राप्त नहीं हुआ। इससे वह मानसिक तनाव का शिकार हो गये। इन्हीं कारणों से उनकी विदुषी ज्ञानवती पत्नी का देहान्त हो गया। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में विमान से संबंधित अपनी सारी जानकारी व सामान को उनसे रैली ब्रदर्स, मुम्बई ने खरीद लिया। कुछ ही समय बाद श्री तलपडे जी की मृत्यु हो गई थी। अनुमान है कि यह जानकारी व सामान इंग्लैण्ड पहुंच गया और वहां उसका उपयोग किया गया। आचार्य सोमदेव जी ने आगे कहा कि सन् 1903 में राइट बन्धुओं ने पहला विमान बनाया। यह विमान कुछ सेकेण्ड्स तक ही उड़ा था।
डा. सोमदेव शास्त्री जी ने बताया कि वेदों में वर्णित अनेक विद्याओं का संक्षिप्त वर्णन ऋषि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में किया है। सत्यार्थप्रकाश की चर्चा कर विद्वान आचार्य ने बताया कि सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन सत्यासत्य का ठीक-ठीक निर्णय कराता है। स्वामी शंकराचार्य का उल्लेख कर उन्होंने बताया कि उनके तीन प्रमुख ग्रन्थों वेदान्तदर्शन, उपनिषद् एवं गीता पर उनका अद्वैतवादी भाष्य है। इन्हें प्रस्थानत्रयी नाम दिया गया है। इसी प्रकार से ऋषि दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका एवं संस्कारविधि को बृहत त्रयी कहते हैं। महाराज मनु के अनुसार भी वेद ज्ञान के भण्डार हैं। उन्होंने बताया कि मनु के अनुसार संसार में सब वस्तुओं के नाम वेद के शब्दों को लेकर ही प्रसिद्ध हुए हैं। आचार्य जी ने उपासना की चर्चा करते हुए आगे कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेद, योगदर्शन, उपनिषदों के आधार पर उपासना को प्रस्तुत किया है। आचार्य जी ने बताया कि वेदोत्पत्ति के बाद ऋषियों ने वेद के विषयों को सरल व सुबोध बनाने के लिए उपवेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, वेदांग एवं उपांग, आरण्यक, उपनिषद आदि ग्रन्थों की रचना की। आचार्य जी ने बताया कि जिस ग्रन्थ में परमात्मा वा ब्रह्म की व्याख्या हो उसे ब्राह्मण कहते हैं। उपासना में स्वाध्याय का महत्व बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि स्वाध्याय ब्रह्मयज्ञ कहलाता है। जो मनुष्य व विद्वान ब्रह्म वेद की व्याख्या करता है, वह ब्राह्मण कहलाता है। ऋग्वेद का ऐतरेय, यजुर्वेद का शतपथ, सामवेद का साम वा ताण्ड्य तथा अथर्ववेद का ब्राह्मण गोपथ ब्राह्मण नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य जी ने वेदों के अर्थों को स्पष्ट करने में कथानकों के महत्व का भी उल्लेख किया। 6 वेदांग शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष और कल्प की चर्चा सहित वेदार्थ की यौगिक, योगारूढ़ और रुढ़ि प्रक्रियाओं की भी आपने चर्चा की। संस्कृत शब्दों में धातुओं के स्वरूप व उनके प्रयोग पर भी आपने उदाहरणों सहित प्रकाश डाला। वेदों के मन्त्रों के अर्थों की आध्यात्मिक, आधिदैविक व आधिभौतिक प्रक्रियाओं की चर्चा व उसके महत्व पर भी प्रकाश डाला। मन्त्रों के विनियोग के स्वरूप व महत्व को भी आपने रेखांकित किया। आचार्य जी ने कहा कि स्वामी दयानन्द जी की सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने मंत्रों का विनियोग उनके अर्थ के अनुसार सन्ध्या, यज्ञ आदि कार्यों व संस्कारों में किया और वेद मन्त्र में निहित विचार व अर्थ के अनुसार ही क्रिया करने का विधान किया। स्वर्ग, नरक, देवता आदि के यथार्थ स्वरूप सहित अनेक भ्रान्तियों का निवारण भी विद्वान वक्ता ने शिविर के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द के समय में यह भ्रान्ति प्रचलित थी कि वेदों का अशुद्ध उच्चारण होने पर मन्त्र का उच्चारण करने वाली की मृत्यु हो जाती है। इस कारण लोगों ने मन्त्रों का उच्चारण करना ही छोड़ दिया था। ऋषि दयानन्द ने बताया कि मन्त्रोच्चार से अशुद्ध उच्चारण करने वालों की मृत्यु नही होती अपितु मन्त्र के अशुद्ध उच्चारण से उसका अभिप्राय मर जाता है। इसे उदाहरणों से भी शिविरार्थियों को समझाया गया।
अपरान्ह 3 से 5 बजे के दूसरे सत्र में उपासना प्रकरण पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। आरम्भ के सभी वेद मन्त्रों व उनके हिन्दी अर्थों का पाठ एवं अर्थ समझाया गया। शिविरार्थियों से भी मन्त्रों के अर्थों को पढ़वाया गया। हमारे एक मित्र कर्नल रामकुमार आर्य भी शिविर में उपस्थित थे। उनका कहना था कि यद्यपि उन्होंने पहले भी भूमिका ग्रन्थ के उपासना प्रकरण को पढ़ा है परन्तु आचार्य जी से आज उसे सुनकर जो लाभ हुआ वह पहले नहीं हुआ था। शान्ति पाठ के साथ शिविर का सत्रावसान हुआ। यह भी बता दें कि शिविरार्थियों को प्रातः 4 बजे जागरण कर ईश वन्दना करनी होती है। 4 बजे से 5.30 बजे तक व्यक्तिगत दिनचर्या का समय है। योग कक्षा प्रातः 5.30 से 6.30 तक होती है। अल्प विराम एवं शुचिता के लिए 6.30 से 7.00 बजे तक का समय निर्धारित है। यज्ञोपासना का समय 7 बजे से 8.30 बजे तक है। उसके बाद अल्पाहार, विश्राम एवं कक्ष निरीक्षण का समय निर्धारित किया गया है। स्वाध्याय कक्षा का समय 10 बजे से 12 बजे तक है। इसके बाद मध्याह्न भोजन, विश्रान एवं जलपान का समय है। स्वाध्याय कक्षा अपरान्ह 3 बजे से 5 बजे तक होती है। इसके बाद योग कक्षा सायं 5.15 से 6.15 चलती है। सायं 7 बजे से 8 बजे तक यज्ञ का समय है। इसके बाद भोजन, मनोविनोद एवं शयन का समय है। प्रथम दिन का कार्यक्रम निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इस समय गुरुकुल में प्रसिद्ध विद्वानों में श्री ओम्प्रकाश वर्मा, यमुनानगर, श्री इन्द्रजित् देव, डा. विनोद कुमार शर्मा जी आदि पधारे हुए हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121
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