लेखिका - शालिनीपंकज दुबे
~छोटी सोच~
दोपहर के समय ड्यूटी से जैसे ही घर पहुँची बेहद थक चुकी थी ।अक्षयनवमी पुजा करने तक उपवास रहती हूँ जिसकी वजह से सिरदर्द भी बहुत हो रहा था माइग्रेन की समस्या थी वो अलग कॉफी के लिए रसोई में गयी तो सासु माँ ने कहा भोजन तैयार है इस समय कॉफ़ी मत लो मन तो बहुत था पर.....तभी माँ बोली बेटा तुम्हारी तबियत ठीक नही है तूम खाना खा लोऔर आराम करो मैं पुजा करके आती हूँ।
माँ पुजा की थाली और हलवा पूड़ी कितने सारे व्यजन बना रखी थी सब ले गयी।हर साल पूजा करने मैं जाती हूँ अगर उस दिन छुट्टी रही या संडे रहा तो।सभी कॉलोनी की महिलाये दोपहर के समय वंहा मेरी चाची सास के यँहा खूब अच्छे से आवला पेड़ के नीचे पुरे विधि विधान से पूजा करती है और फिर उसके नीचे बेठकर प्रसाद रुपी भोजन लेती है बहुत अच्छा लगता है।पहली बार ऐसा हुआ की माँ को पूजा में जाने का अवसर मिला।मुझे भी ख़ुशी हुई ।पिता जी के जाने के बाद माँ पहले जैसे रहे हमारी यही इच्छा थी।
मैं सिरदर्द से इतना परेशान थी की दवाई ली और झपकी लग गयी ।तभी माँ के रोने की आवाज आई उनके कमरे में गयी दरवाजा बन्द बहुत आवाज लगाई दरवाजा खुलते ही "माँ आप तो पूजा ....तुम ख़ाना खा लो मुझे भूख नही तभी टेबल पर नजर पड़ी पूजा का सामान के साथ जो थाल सजा के ले गयी वो वैसे ही वापस ले आई बहुत पूछने पर भी कुछ ना बोली पर उनकी लाल आँसुओ से भीगी आँखे रुन्धता गला सब बयां कर रहा था।
मैं पूजा का थाल लेकर आँगन में गयी चटाई बिछाई तब तक ये भी आ गए बेटी भी स्कूल से आ गयी और हम माँ को लेकर बाहर आ गए हमने पूजा की और आंवला पेड़ के नीचे ही पिकनिक मनाये।सब के अंदर जाने के बाद चाची सास का संदेशा आया उनकी बहु बुलाने आई पूजा के लिए मैंने कहा माँ को नही छोड़ सकती हमने यंही पूजा कर ली।आप कह दीजियेगा चाची जी से।
उसके जाते ही सहसा वो पल याद आ गए जब पहली बार ससुराल में कदम रखी बहु आने की रस्मे की तैयारी चल रही थी सभी थे पर भीड़ से अलग कोई दरवाजे की ओट से झांक रही थी जैसे ही रस्म शुरू हुआ डोला परक्षन की शुरुआत उनसे हुई जो इन रस्मो से खुद को दूर रखी थी माँ ने उनसे ही रस्मो की शुरुआत की कोई कुछ नही बोलेगा बरात में कितने विधुर थे तब किसी ने विरोध नही किया मैं ये सब नही मानती चलिए मेरे बेटे बहू को पहले आप आशीर्वाद दीजिये माँ के शब्द कितने प्रेरणादायी और सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात कर रहे थे।वो कोई और नही चाची जी की माँ थी और आज मेरे ससुर जी के ना रहने पर उन्होंने अपनी छोटी सोच दिखा दी सच में कभी कभी लगता है की कुछ लोगो को उनकी सोच को नही बदला जा सकता।
माँ पुजा की थाली और हलवा पूड़ी कितने सारे व्यजन बना रखी थी सब ले गयी।हर साल पूजा करने मैं जाती हूँ अगर उस दिन छुट्टी रही या संडे रहा तो।सभी कॉलोनी की महिलाये दोपहर के समय वंहा मेरी चाची सास के यँहा खूब अच्छे से आवला पेड़ के नीचे पुरे विधि विधान से पूजा करती है और फिर उसके नीचे बेठकर प्रसाद रुपी भोजन लेती है बहुत अच्छा लगता है।पहली बार ऐसा हुआ की माँ को पूजा में जाने का अवसर मिला।मुझे भी ख़ुशी हुई ।पिता जी के जाने के बाद माँ पहले जैसे रहे हमारी यही इच्छा थी।
मैं सिरदर्द से इतना परेशान थी की दवाई ली और झपकी लग गयी ।तभी माँ के रोने की आवाज आई उनके कमरे में गयी दरवाजा बन्द बहुत आवाज लगाई दरवाजा खुलते ही "माँ आप तो पूजा ....तुम ख़ाना खा लो मुझे भूख नही तभी टेबल पर नजर पड़ी पूजा का सामान के साथ जो थाल सजा के ले गयी वो वैसे ही वापस ले आई बहुत पूछने पर भी कुछ ना बोली पर उनकी लाल आँसुओ से भीगी आँखे रुन्धता गला सब बयां कर रहा था।
मैं पूजा का थाल लेकर आँगन में गयी चटाई बिछाई तब तक ये भी आ गए बेटी भी स्कूल से आ गयी और हम माँ को लेकर बाहर आ गए हमने पूजा की और आंवला पेड़ के नीचे ही पिकनिक मनाये।सब के अंदर जाने के बाद चाची सास का संदेशा आया उनकी बहु बुलाने आई पूजा के लिए मैंने कहा माँ को नही छोड़ सकती हमने यंही पूजा कर ली।आप कह दीजियेगा चाची जी से।
उसके जाते ही सहसा वो पल याद आ गए जब पहली बार ससुराल में कदम रखी बहु आने की रस्मे की तैयारी चल रही थी सभी थे पर भीड़ से अलग कोई दरवाजे की ओट से झांक रही थी जैसे ही रस्म शुरू हुआ डोला परक्षन की शुरुआत उनसे हुई जो इन रस्मो से खुद को दूर रखी थी माँ ने उनसे ही रस्मो की शुरुआत की कोई कुछ नही बोलेगा बरात में कितने विधुर थे तब किसी ने विरोध नही किया मैं ये सब नही मानती चलिए मेरे बेटे बहू को पहले आप आशीर्वाद दीजिये माँ के शब्द कितने प्रेरणादायी और सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात कर रहे थे।वो कोई और नही चाची जी की माँ थी और आज मेरे ससुर जी के ना रहने पर उन्होंने अपनी छोटी सोच दिखा दी सच में कभी कभी लगता है की कुछ लोगो को उनकी सोच को नही बदला जा सकता।
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नाम -शालिनीपंकज दुबे
शिक्षा-,MSc प्राणिशास्त्र, MAसम्माजशास्त्र, डीएड
व्यवसाय- शिक्षिका
साहित्यिक सफर-स्कूल के समय में कई लेख फोटो सहित प्रकाशित हुए और एक लम्बे अंतराल के बाद अब विभिन्न पत्र पत्रिकाओ में लेख, लघुकथा ,कविताये प्रकाशित हो रहे है। साथ दो बार फेसबुक के समूह द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान ,युग सुरभि सम्मान ,साहित्य रत्न सम्मान दिया गया और प्रतिलिपि में पाठको की पसंद में टॉप 10 में 6वाँ स्थान मेरी लघुकथा को मिला।
विद्या-छंदमुक्त कविता करूण रस वीर रस ,लघुकथा, लेख
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