जीवनसंगनी को समर्पित


लेखक - डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित 'प्रखर

जीवनसंगनी को समर्पित........

तुम नेह को बंधन प्रीति घनी बसि नैनन जीवन डोर बनी।
तुम सूझ अबूझ पहेली प्रिय  वत्सल रसभोर अंजोर सनी।।
नि:शब्द गिरा नहिं वाक् नयन किम प्रखर प्रलेख कथैं रसमय
तुम सप्तपदी जीवनसंगिन तिय तुमसैं जा  वंदनवार तनी।।
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वैराग्य वही जो मोक्ष दिला दे।
पंथ वही जो लक्ष्य मिला दे ।।
यूँ तो प्रवचन बात बहुत ,पर-
गुरु वही जो ह्रदय खिला दे।।
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छमछम पैंजनि खनखन कंगन छलछल छलके सिर गागर।
पलपल खटका रहरह झटका ढलढल ढलके दृग काजर।।
गिन गिन कटती छन छन उठती रीती  पलकें मन बेजार,
अब तो आओ प्रखर पीर हिय लेत हिलोरें मन का तार।।
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अम्माँ तब तक राह देखती जब तक लाल लौट न आए।
रखती एक निगाह लाल पर कही  यकायक चोट न खाए।।
लेकिन कुछ ऐसी संतति जो दंश दे  गहरे अंर्त,
प्रखर जो भारत माँ  को लूटें काश कभी वो वोट न पाऐं।।
मित्रों, आज सोपान के लिये प्रसन्नता व गर्व की बात है कि हमारे परिवार के आदरणीय सदस्य श्री रघुनंदन दीक्षित ' प्रखर' जी का काव्य-संग्रह " मन के द्वार ' प्रकाशित हो चुका है और शीघ्र ही विक्रय हेतु बाज़ार में उपस्थित हो जायेगा ।
यह ऐसा काव्य संग्रह है जो कि नवगीत समकालीन है। जीवन की अनुभूति दृष्टव्य है।
आ. रघुनंदन जी का संक्षिप्त परिचय
जीवन परिचय
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नाम= डॉ रघुनंदन प्रसाद दीक्षित 'प्रखर"
माता= श्रीमती शांति देवी
पिता= श्री दाताराम दीक्षित
जन्म= 05 जून 1962 जनपद--फर्रूखाबाद(उ0प्र0)
विधा= कविता,कहानी, लघुकथा, गीत नवगीत तथा समसामायिक आलेख।
प्रसारण= आकाशवाणी एवं जैन टीवी चैनल से काव्य पाठ, भेंटवार्ता तथा सामायिकी का प्रसारण।
प्रकाशन = स्तरीय राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।
कृतीत्व= निर्झणी(क्षणिका),एवं मन के द्वार (नवगीत)
एवं सीमा से आंगन तक(सैन्य गीत),राहें, अंतिम आग (अप्रकाश्य)
सम्मान= विद्यावाचस्पति एवं विद्यासागर(विक्रमशिला हिंदी  विद्यापीठ भागलपुर (बिहार)सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
व्यवसाय= 30 वर्षों तक सैन्य सेवा में सूबे.मेजर पद से सेवा उपरांत स्वतंत्र साहित्य सृजन।
सम्पर्क= 27, शांतिदाता सदन, नेकपुर चौरासी, फतेहगढ , जनपद- फर्रूखाबाद(उ0प्र0)209601
Email : Prakhard68@gmail.com
Mob= 09044393981

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