अब मेरी भी सुनों

कवियित्री - अंकिता कुलश्रेष्ठ

कविता: हाँ नारी हूँ

" मैं चपला सी तेज युक्त
नभ तक धाक जमाऊँ
आ सूरज, तेरी किरणों से
अपना भाल सजाऊँ
कभी धरा- गांभीर्य ओढकर
मौन का काव्य सुनाऊँ
तितली से लेकर चंचलता 
फूलों से रंग चुराऊँ
सरिता सी कल-कल बहती
बाधा से रुक ना पाऊँ
मैं स्वयं भोर की उजली
दुःख तम से क्या घबराऊँ
हाँ नारी हूँ , मैं कोमल मन
पर अबला नहीं कहाऊँ...."
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कोरा पुरुषत्व

" पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर.,
रख दी सारी प्रकृति मसलकर..
माँ की कोख सिसकियाँ लेती..
जन्म दिया कैसा दानव नर..
दर्प चूर ताकत में होकर..
इंसानियत का शीश झुकाते..
असहायों का करते शोषण..
ऐसे पुरुष नपुंसक होते..
नारी तन को वस्तु समझते..
कुत्सित मन के वश में होकर..
पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर..
रख दी सारी प्रकृति मसलकर..
घर में,बाहर और विद्यालय..
कहाँ सुरक्षित नन्हीं बेटी..
स्वप्न हजार,वक्त की बंदिश..
बधे पंख सिसकती रहती..
पुरुष- प्रकृति तत्व नैसर्गिक..
दोनों के अधिकार बराबर..
पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर..
रख दी सारी प्रकृति मसलकर.."
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मुक्तक....


यूं बही प्रेम की निर्झरणी~ मन पन्नों पर साकार हुआ
...
कुछ सुस्ताए से शब्दों में~ फिर प्राणों का संचार हुआ
...
जब हूक उठी तब चली कलम~निर्बाध सरित सी बह निकली
...
मैं रीझ गई हूँ भावों पर~ मुझको कविता से प्यार हुआ।।
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पवन ना छेङ छूकर तू ~~~विरह के गान गा लूं मैं..
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सुमन मुरझा गए हैं प्रेम के ~~~उनको खिला लूं मैं ..
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गए वो रूठकर जबसे ~~~~~न जीते हैं न मरते हैं..
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अगर मिल जाए' प्रियतम तो~~ उसे उर से लगा लूं मैं...॥॥
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मदन के प्रेम से सज्जित ...... सरसती ये मही होगी ।
पवन रस रंजना लेकर ........कहीं जग में बही होगी ।
लगे होंगे उमङने भाव मन में .......देखकर प्रिय को ।
प्रथम जब प्रेम की पाती किसी प्रिय ने कही होगी ।।।
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रजवाड़ों का वैभव लिख दो मुगलों का उल्लास लिखो..
कनक समान धरा पावन पर ~~ब्रिटिश अट्टाहास लिखो..
आयास लिखो वीरों का तुम~~ प्राणों के बलिदानों का..
कोरे कागज़ पर कविवर तुम ,भारत का इतिहास लिखो!
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छंद मुक्त कविता

"मन की उड़ान "

निर्विकार निराकार एक स्वप्न 
साकार होता हुआ , 
तोड़ कर भ्रान्तियाँ , 
कर रहा क्रान्तियाँ , 
किन्तु है निशब्द , 
मन मेँ है भय व्यप्त , 
स्वप्न ही तो मगर , 
जो आज क्रान्तिकारी हुआ , 
मन के जो कनक पट , 
जो बन गये थे बंद गुहा , 
खुलते ही जा रहे हैँ , 
टूटते ही जा रहे हैँ , 
स्वप्न के आगाज़ से , 
स्वप्न के दबाव से, 
परिवर्तन ने फैलाये पर, 
ह्रदय के कपाट पर , 
प्रतीक्षा है अब तो बस , 
काश ये हो जाये सच,, 
कल्पना के ढेर से , 
स्वप्न वो बाहर तो आये, 
मंजिलोँ को ढ़ूँढ पाये ॥" 
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लघुकथा
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संस्कार

हेतराम अपने पिताजी के जमाने की जर्जर साइकिल पर दम भरता हुआ चला जा रहा था।सात बजने को थे और हल्का धुंधलका छाया हुआ था। मिठाई की दुकान देखते ही उसकी साइकिल थम गई ।दो दिन पहले ही तो उसकी घरवाली ने याद दिलाया था कि दिवाली है चार दिन बाद तो कुछ मीठा ले आना। 
आज के काम के पूरे साढ़े तीन सौ रूपए मिले थे उसे साथ में मालकिन ने एक चाकलेट भी पकड़ा दी थी बच्चों के लिए।
"सेठ ढाई सौ ग्राम पेढे तोल देना " हेतराम साइकिल से उतरते हुए बोला और रूपये पूछकर हलवाई की ओर बढ़ा दिये।हाथ में मीठे का पैकेट आते ही ऐसा लगा कि मुनिया और राजू की लाखों वाली खुशी खरीद ली हो।मन ही मन मुस्कुराते हुए हेतराम पैडल मारने लगा ,घर जाने की जल्दी जो थी आज।
फिर सहसा ही उसे याद आया जिस घर में वो पेन्ट का काम करके लौटा है वहाँ मालिक के बच्चे कितने मंहगे कपड़े पहने हुए थे और हां मोबाइल भी था दोनों बच्चों पर अलग-अलग।अंग्रेजी में मोम डैड बोल रहे थे ।क्या किस्मत है उनकी।
हेतराम का दिल फिर उदासी की गर्त में जा बैठा।मुनिया हर त्यौहार पर अपनी इकलौती 'अच्छी' पोशाक पहन लेती है फिर बक्से में रख देती है अगली बार के लिए। हां राजू कभी कभी जिद कर जाता है नए कपङो की, छोटा है न अभी।
उसने मन ही मन पक्का किया कि कैसे भी जोङ तोङ और मेहनत से रूपए बचाकर बच्चों को नए कपड़े तो दिला ही देने हैं। 
आखिर उन्हें दे क्या पाता हूँ।मीठा खरीदने की खुशी दूर उङ चुकी थी।
सोचते - सोचते घर आ पहुँचा , साइकिल दीवार से टिकाई ।
आवाज सुनकर हेता की घरवाली बाहर आई , एक आत्मीय मुस्कान के साथ उसका स्वागत किया ।हेता ने पूछा ही था मुनिया और राजू के बारे में कि भीतर से दोनो बाबा -बाबा पुकारते हुए सामने आ खङे हुए।
मुनिया पानी लाई थी प्लेट में सजा और राजू तो लिपट ही गया अपने बाबा से।
हेतराम के अंतस में से आज दोपहर का दृश्य तैर गया ,जब उस घर की मालकिन ने अपनी बेटी को एक कप कॉफी बनाने को कहा था क्योंकि सिर दर्द कर रहा था उनका और उनकी बेटी भिनभिनाती , पैर पटकती सोफे पे पसर गई थी टीवी के सामने,ये कहके कि उसका पसंदीदा प्रौग्राम आ रहा है ।
अचानक हेतराम के मन से सारी कुंठा हवा हो गई ।उसने मीठे के पैकेट मुनिया को थमाया और राजू को चाकलेट ।दोनों बच्चे खुशी से चहकने लगे। हेतराम और उसकी पत्नी मुस्कराते हुए अपने मासूम बच्चों को देख रहे थे
अब कुंठा की जगह संतुष्टि ने ले ली थी।क्योंकि वो समझ गया था कि
" संस्कार ही असली धन है "जो उसने अपने बच्चों को बखूबी दिए हैं।।
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गीतिका : सैनिक भाई
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बहन तेरी बहुत राखी , मुझे अब याद आती है ।
मगर घर आ नही सकता , वतन की लाज जाती है ।
...
कभी सूनी कलाई पर नजर जब मेरी' जाती है.
... निगाहों में वो' रेशम की कड़ी तब घूम जाती है
.
.मधुर मुस्कान वो तेरी .. मेरे जीवन का संबल है .. 
सदा तेरी हमेशा ही मुझे वापस बुलाती है
..
...बहन भाई सरीखा इस जहाँ में ना कहीं बंधन
... यही तो डोर है सच्ची नजर ना सबको आती है
.....
पड़े मरना भी' भाई को बहन की लाज की खातिर .
.. बहन भी भाई' के हित को कभी ना हिचकिचाती है
.....
कसम तुझको न रोना तू अगर मैं घर नहीं आऊँ ..
. वतन की ओर ना सोचूँ तो' अपनी शान जाती है
...
मुझे महसूस जब होता बहन मेरी परेशाँ हैं ...
यहां मेरी निगाहों में नमी सी तैर जाती है.....

.....
सभी पाती पढ़ूँ मैं रोज जो भेजी मुझे तुमने ...
. मुझे पाती की' स्याही में नजर तू रोज आती है
....
नमन मैया से' कह देना पिता जी को चरण छूना .
... जरा भाभी को' तुम देखो मुझे रोकर बुलाती है
..
नहीं रोती बहन जिसके गये हैं भाई' सरहद पर
.... रहे अपना वतन रक्षित यही मन चाह होती है
....
अगर हो ' वीर ' सा भाई कमी फिर कुछ नहीं होगी 
... समय मिलते चलूँगा मैं अभी सीमा बुलाती है ..
...
.बड़े भाई सभी होते पिता के तुल्य ये जाना ...
लुटा छुटकी तुझी पर दूँ सभी खुशियों की' थाती है

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कवियित्री परिचय:

नाम:अंकिता कुलश्रेष्ठ 
पिता जी : श्री कामता प्रसाद कुलश्रेष्ठ
माता जी: श्रीमती नीरेश कुलश्रेष्ठ
शिक्षा : परास्नातक ( जैव प्रौद्योगिकी ) बी टी सी
निवास स्थान : आगरा 
पता: ग्राम व पोस्ट सैयां
तहसील खेरागढ़
जिला आगरा
उत्तरप्रदेश
283124
फोन:
ईमेल: ankitak930@gmail.com
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प्रकाशित रचनाएं: साझा संकलन 'कलरव' 'साझा नभ का कोना' ' कस्तूरी कंचन' 'युवा उत्कर्ष काव्य संकलन ' अधूरा मुक्क समूह संकलन , गीतिकालोक संकलन , जय विजय , हस्ताक्षर वेब पत्रिका , शिखर विजय , दृष्टि पत्रिका , गुफ़्तगू पत्रिका  एवं विभिन्न अन्य पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित 

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