लेखक - तारकेश कुमार ओझा
तांडव...!!
अरे , शैलेश...। पंचनामा जरा सोच - समझ कर बनाना। ध्यान रहे, लाशें चाहे जितनी हों, उनका केस नंबर एक ही रहेगा...। हां पंचनामा अलग - अलग तैयार होगा।
थानेदार मातहतों को सहेज कर जीप में सवार हो चुके थे।
शेष जवान लाशों का मुआयना करते हुए लिखा - पढ़ी में व्यस्त हो गए।
दरअसल अस्पताल के मुर्दाघर के सामने मौत मानो सचमुच तांडव कर रही थी। देखते ही देखते 17 हंसती - खेलती जिंदगी लाशों की शक्ल में यहां पहुंच चुकी थी। कई और घायलों की हालत लगातार नाजुक बताई जा रही थी। परिजनों में कोहराम मचा हुआ था। उनका रुदन बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था, जिनके अपने हादसे में चल बसे थे। कुछ मन ही मन शुक्र मना रहे थे ,जिनके परिजन इस भवायह हादसे से बाल - बाल बच गए थे। गंभीर रूप से बीमार मरीजों के रिश्तेदारों में अलग कोहराम मचा था।
दरअसल एक गांव के लोग सामूहिक तीर्थयात्रा पर निकले थे।
रास्ते में बस का पहिया पंक्चर हो गया। चालक व क्लीनर पहिया बदलने में जुट गए। भीषण गर्मी के चलते बस के भीतर बैठना मुश्किल हो रहा था। बाहर ठंडी हवा बह रही थी। लिहाजा ज्यादातर यात्री बाहर निकल बस के आगे - पीछे बैठ कर गप्पें मारने लगे। इस बीच बेकाबू हुए एक ट्रक ने बस के साथ ही यात्रियों को भी अपनी चपेट में ले लिया था। 17 लोग मौके पर ही दम तोड़ चुके थे। करीब 25 गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। हादसे की वजह से अस्पताल में चहल - पहल कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। मुर्दाघर के सामने भी खासा जमावड़ा लगा हुआ था।
हर कोई जीवन की इस क्षणभंगुरता को हैरत भरी नजरों से देख रहा था।
लोग बुदबुदा रहे थे... सचमुच जीवन का कोई भरोसा नहीं, पता नहीं कब क्या हो जाए...।
समय की मांग को देखते हुए मौके पर पहुंचे राजनेता मृतकों के परिजनों को ढांढस बंधा रहे थे।
इस अप्रत्याशित भीड़ - भाड़ से बेखबर कुत्तों की टोली अपने काम में जुटी थी। उनके कई पिल्ले भी इधर - उधर उत्सुकता से घूम रहे थे। हालांकि उनमें से एक पिल्ला कुछ ज्यादा ही जिज्ञासु औऱ तेज नजर आ रहा था।
इस बीच अचानक भीड़भाड़ से बचता हुआ एक कुत्ता वहां आ धमका, और उसी जिज्ञासु पिल्ले को मुंह में दबा कर चलने लगा।
पिल्ला कें- कें कर रहा था।
इतनी भीड़ के बावजूद किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि साधारणतः कुतिया अपने बच्चों को मुंह में इसी तरह दबा कर इधर - उधर सुरक्षित स्थानों को ले जाया करती है।
हालांकि पिल्ले की कें- कें कुछ ज्यादा ही तेज हो गई थी।
अचानक मुर्दाघर के कर्मचारी चीखने लगे...। अरे , दौड़ो , यह वही पागल कुत्ता है, मार डालेगा यह उसे... अब तक कई पिल्लों को मार चुका है यह...।
कई लोग मुंह में पिल्ले को दबाए दौड़ रहे उस कुत्ते के पीछे भागे।
लेकिन कुछ सेकेंड में ही पिल्ले की कें... कें ... खामोश हो चुकी थी। कुत्ते ने गला घोंट कर उसे मार डाला था।
मौत के तांडव के बीच एक और अकाल मृत्यु से वहां मौजूद लोग स्तब्ध थे।
लेकिन स्मार्ट फोन लेकर पिल्ले के पीछे दौड़ने वालों में शामिल वह युवक बेहद निराश था।
क्योंकि उसे वह एक्सक्लूसिव फोटो नहीं मिल पाया था। इससे पहले ही पिल्ले का काम तमाम हो चुका था। वह कुत्ते के पिल्ले को मौत के घाट उतारने वाला जीवंत फोटो अपने मोबाइल पर लोड करना चाहता था।
बेहद निराशा में युवक बड़बड़ाया... ओह एक्सक्लूसिव फोटो जरा के लिए मिस हो गया। सोचा था, इसे आज फेसबुक पर डाउन लोड करुंगा, लेकिन ...।
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लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934 ,09635221463
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लेखक का परिचय ः तारकेश कुमार ओझा------------------------------
अस्सी के दशक में पत्रकारिता की पगडंडियों पर कदम रखने वाले तारकेश कुमार ओझा इन दिनों पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हुए दैनिक जागरण में वरिष्ठ उपसंपादक पद पर कार्यरत हैं। इससे पूर्व वे कोलकाता व जमशेदपुर से प्रकाशित अनेक दैनिक समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। सम - सामयिक विषयों पर निरंतर ब्लॉग लेखन के साथ ही ओझा कहानी व व्यंग्य भी खूब लिख रहे हैं। ब्लॉग लेखन व पत्रकारिता औऱ साहित्य में योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। उनसे संपर्क इस पते पर किया जा सकता है।
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