अमन चाँदपुरी के दोहे
बचपन की वो मस्तियाँ, बचपन के वो मित्र।
सबकुछ धूमिल यूँ हुआ, ज्यों कोई चलचित्र।।
सबकुछ धूमिल यूँ हुआ, ज्यों कोई चलचित्र।।
संगत सच्चे साधु की, अनुभव देत महान।
बिन पोथी बिन ग्रंथ के, मिले ज्ञान की खान।।
बिन पोथी बिन ग्रंथ के, मिले ज्ञान की खान।।
प्रेम-विनय से जो मिले, वो समझें जागीर।
हक से कभी न माँगते, कुछ भी संत फकीर॥
हक से कभी न माँगते, कुछ भी संत फकीर॥
ज्यों ही मैंने देख ली, बच्चों की मुस्कान।
पल भर में गायब हुई, तन में भरी थकान।।
पल भर में गायब हुई, तन में भरी थकान।।
मंदिर मस्जिद चर्च में, जाना तू भी सीख।
जाने कौन प्रसन्न हो, दे दे तुझको भीख।।
जाने कौन प्रसन्न हो, दे दे तुझको भीख।।
खालीहांडी देखकर, बालक हुआ उदास।
फिर भी माँ से कह रहा, भूख न मुझको प्यास।।
फिर भी माँ से कह रहा, भूख न मुझको प्यास।।
लख माटी की मूर्तियाँ, कह बैठे जगदीश।
मूर्तिकार के हाथ ने, किसे बनाया ईश।।
मूर्तिकार के हाथ ने, किसे बनाया ईश।।
कौन यहाँ जीवित बचा, राजा रंक फकीर।
अमर यहाँ जो भी हुए, वो ही सच्चे वीर।।
अमर यहाँ जो भी हुए, वो ही सच्चे वीर।।
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।।
डूब गई सारी फसल, उबरा नहीं किसान।
बोझ तले दबकर अमन , निकल रही है जान।।
बोझ तले दबकर अमन , निकल रही है जान।।
निद्रा लें फुटपाथ पर, जो आवास विहीन।
चिर निद्रा देने उन्हें, आते कृपा-प्रवीण।।
चिर निद्रा देने उन्हें, आते कृपा-प्रवीण।।
हिन्दी - उर्दू धन्य है, पाकर ऐसे वीर।
तुलसी - सूर - कबीर हों, या हों गालिब - मीर।।
तुलसी - सूर - कबीर हों, या हों गालिब - मीर।।
कपटी मानव का नहीं, निश्चित कोई भेष।
लगा मुखौटा घूमते, क्या घर क्या परदेश।।
लगा मुखौटा घूमते, क्या घर क्या परदेश।।
एक पुत्र ने माँ चुनी, एक पुत्र ने बाप।
माँ-बापू किसको चुनें, मुझे बताएँ आप।।
माँ-बापू किसको चुनें, मुझे बताएँ आप।।
आँसू हर्ष विषाद में, होते एक समान।
दोनों की होती मगर, अलग-अलग पहचान।।
दोनों की होती मगर, अलग-अलग पहचान।।
तेल और बाती जले, दोनों एक समान।
फिर भी दीपक ही बना, दोनों की पहचान।।
फिर भी दीपक ही बना, दोनों की पहचान।।
उसकी बोली में लगे, कोयल की आवाज़।
ज्यों कान्हाँ की बाँसुरी, तानसेन का साज़।।
ज्यों कान्हाँ की बाँसुरी, तानसेन का साज़।।
बैठे थे बेकार हम, देते थे उपदेश।
वृद्धाश्रम में डालकर, बेटे गए विदेश।।
वृद्धाश्रम में डालकर, बेटे गए विदेश।।
जब-जब वो देखे मुझे, करे करारे वार।
होती सबसे तेज है, नैनों की ही धार।।
होती सबसे तेज है, नैनों की ही धार।।
मस्जिद में रहता ख़ुदा, मंदिर में भगवान।
सबका मालिक एक है, बाँट न ऐ नादान।।
सबका मालिक एक है, बाँट न ऐ नादान।।
अपने मुख से कीजिए, मत अपनी तारीफ़।
हमें पता है, आप हैं, कितने बड़े शरीफ़।।
हमें पता है, आप हैं, कितने बड़े शरीफ़।।
माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला, ममता का यह मोल।।
कौन चुका पाया भला, ममता का यह मोल।।
जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर-द्वार।।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर-द्वार।।
नन्हें बच्चे देश के, बन बैठे मजदूर।
पापिन रोटी ने किया, उफ! कैसा मजबूर।।
पापिन रोटी ने किया, उफ! कैसा मजबूर।।
उमर बिता दी याद में, प्रियतम हैं परदेश।
धरकर आते स्वप्न में, कामदेव का वेश।।
धरकर आते स्वप्न में, कामदेव का वेश।।
हिंदू को होली रुचे, मुसलमान को ईद।
हम तो मजहब के बिना, सबके रहे मुरीद।।
हम तो मजहब के बिना, सबके रहे मुरीद।।
ईश्वर की इच्छा बिना, पत्ता हिले न एक।
जब होती उसकी कृपा, बनते काम अनेक।।
जब होती उसकी कृपा, बनते काम अनेक।।
कृपा-दृष्टि गुरु की मिले, खुलें ज्ञान के द्वार।
गुरु के आगे मौन सब, वहीं सृष्टि का सार।।
गुरु के आगे मौन सब, वहीं सृष्टि का सार।।
बदला उसका रूप है, बदली उसकी चाल।
मसल गई शायद हवा, फिर गोरी का गाल।।
मसल गई शायद हवा, फिर गोरी का गाल।।
गीत, ग़ज़ल, चौपाइयाँ, दोहा, मुक्तक पस्त।
फ़िल्मी धुन पर अब 'अमन', दुनिया होती मस्त।।
फ़िल्मी धुन पर अब 'अमन', दुनिया होती मस्त।।
जहाँ उजाला चाहिए, वहाँ अँधेरा घोर।
सब्ज़ी मंडी की तरह, संसद में है शोर।।
सब्ज़ी मंडी की तरह, संसद में है शोर।।
घर में रखने को अमन, वन-वन भटके राम।
हम मंदिर को लड़ रहे, लेकर उनका नाम।।
हम मंदिर को लड़ रहे, लेकर उनका नाम।।
गम, आँसू, पीड़ा, विरह, और हाथ में जाम।
लगा इश्क का रोग था, हुआ यही अंजाम।।
लगा इश्क का रोग था, हुआ यही अंजाम।।
मैंने देखा आज फिर, इक बालक मासूम।
जूठा पत्तल हाथ में, लिए रहा था चूम।।
जूठा पत्तल हाथ में, लिए रहा था चूम।।
घर के चूल्हे के लिए, छोड़ा हमने गाँव
शहरी डायन ने डसा, लौटे उल्टे पाँव
शहरी डायन ने डसा, लौटे उल्टे पाँव
बरछी, बम, बन्दूक़ भी, उसके आगे मूक।।
मार पड़े जब वक़्त की, नहीं निकलती हूक।।
मार पड़े जब वक़्त की, नहीं निकलती हूक।।
मेहनतकश मजदूरनी, गई वक्त से हार।
तब मुखिया के सामने, कपड़े दिए उतार।।
तब मुखिया के सामने, कपड़े दिए उतार।।
मिट्टी से हर तन बना, मिट्टी बहुत अमीर।
मिट्टी होना एक दिन, सबका यहाँ शरीर।।
मिट्टी होना एक दिन, सबका यहाँ शरीर।।
लड़के वाले चाहते, गहने रुपए कार।
निर्धन लड़की का बसे, कैसे घर संसार।।
निर्धन लड़की का बसे, कैसे घर संसार।।
मुझे अकेला मत समझ, पकड़ न मेरा हाथ।
मैं तन्हा चलता नहीं, दोहे चलते साथ।।
मैं तन्हा चलता नहीं, दोहे चलते साथ।।
नैन-नैन से मिल गए, ऊँची भरी उड़ान।
चाल-ढाल बदली 'अमन', गोरी हुई जवान।।
चाल-ढाल बदली 'अमन', गोरी हुई जवान।।
अंधा रोए आँख को, बहरा रोए कान।
इक प्रभु मूरत देखता, दूजा सुने अजान।।
इक प्रभु मूरत देखता, दूजा सुने अजान।।
प्रियतम तेरी याद में, दिल है बहुत उदास।
नैनों से सानव झरे, फिर भी मन में प्यास।।
नैनों से सानव झरे, फिर भी मन में प्यास।।
जब होती है संग तू, और हाथ में हाथ।
झूठ लगे सारा जहाँ, सच्चा तेरा साथ।।
झूठ लगे सारा जहाँ, सच्चा तेरा साथ।।
पाखंडों को तोड़कर, बिना तीर-शमशीर।
जीना हमें सिखा गया, सच्चा संत कबीर।।
जीना हमें सिखा गया, सच्चा संत कबीर।।
बड़ी-बड़ी ये कुर्सियाँ, सत्ता का ये मंच।
राजनीति के नाम पर, होता रोज प्रपंच।।
राजनीति के नाम पर, होता रोज प्रपंच।।
रूखे-सूखे दिन रहे, मगर रसीली रात।
सोना, सपना, कल्पना, और प्रेम की बात।।
सोना, सपना, कल्पना, और प्रेम की बात।।
इंसानों ने कर दिया, सबका निश्चित धाम
कण-कण में अब हैं नहीं, अल्लाह हों या राम
कण-कण में अब हैं नहीं, अल्लाह हों या राम
बिल्कुल सच्ची बात है, तू भी कर स्वीकार।
ज्यों-ज्यों बढ़ती दूरियाँ, त्यों-त्यों बढ़ता प्यार।।
ज्यों-ज्यों बढ़ती दूरियाँ, त्यों-त्यों बढ़ता प्यार।।
जब-जब है माँ ने कहा, कलम पकड़ ली हाथ।
कलम चली तो चल पड़े, अक्षर खुद ही साथ।।
कलम चली तो चल पड़े, अक्षर खुद ही साथ।।
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लेखक परिचय –
मूल नाम- अमन सिंह
जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997
पिता – श्री सुनील कुमार सिंह
माता - श्रीमती चंद्रकला सिंह
शिक्षा – स्नातक
लेखन विधाएँ– दोहा, हाइकु, क्षणिका, मुक्तक, कुंडलिया, लघुकथा एवं छंदमुक्त कविताएँ आदि
प्रकाशित पुस्तकें – ‘कारवान-ए-ग़ज़ल ‘ 'दोहा कलश' एवं ‘स्वर धारा‘ (सभी साझा संकलन)
सम्पादन – ‘ दोहा दर्पण ‘
प्रकाशन – विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पर सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – प्रतिभा मंच फाउंडेशन द्वारा ‘काव्य रत्न सम्मान‘, समय साहित्य सम्मेलन, पुनसिया (बांका, बिहार) द्वारा 'कबीर कुल कलाधर' सम्मान, साहित्य शारदा मंच (उत्तराखंड) द्वारा ‘दोहा शिरोमणि' एवं कामायनी संस्था (भागलपुर, बिहार) द्वारा 'कुंडलिया शिरोमणि' की मानद उपाधि से सम्मानित
विशेष - फोटोग्राफी में रुचि। विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं तथा वेब पर फोटोग्राफस प्रकाशित
पता – ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर तहसील- टांडा,
जिला- अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)- 224230
संपर्क – 09721869421
ई-मेल – kaviamanchandpuri@gmail.com
मूल नाम- अमन सिंह
जन्मतिथि- 25 नवम्बर 1997
पिता – श्री सुनील कुमार सिंह
माता - श्रीमती चंद्रकला सिंह
शिक्षा – स्नातक
लेखन विधाएँ– दोहा, हाइकु, क्षणिका, मुक्तक, कुंडलिया, लघुकथा एवं छंदमुक्त कविताएँ आदि
प्रकाशित पुस्तकें – ‘कारवान-ए-ग़ज़ल ‘ 'दोहा कलश' एवं ‘स्वर धारा‘ (सभी साझा संकलन)
सम्पादन – ‘ दोहा दर्पण ‘
प्रकाशन – विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पर सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – प्रतिभा मंच फाउंडेशन द्वारा ‘काव्य रत्न सम्मान‘, समय साहित्य सम्मेलन, पुनसिया (बांका, बिहार) द्वारा 'कबीर कुल कलाधर' सम्मान, साहित्य शारदा मंच (उत्तराखंड) द्वारा ‘दोहा शिरोमणि' एवं कामायनी संस्था (भागलपुर, बिहार) द्वारा 'कुंडलिया शिरोमणि' की मानद उपाधि से सम्मानित
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