दोहे में व्यंग्य

 लेखक - अनन्त आलोक
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दोहे में व्यंग्य  


कलयुग  तेरे   गर्भ  से ,  प्रकट  सहस्रों  राम |
स्वयं  सिहांसन  जा  चढ़े ,  पाँव  पखारे आम ||
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तम्बाकू से घर भरे ,    नाना  रोग  हजार |
अब पछताय क्या व्यसनी , खड़ा मौत के द्वार ||
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पान  मसाला   चाब   कर ,   पीक थूकते लाल |
भीतर- भीतर खाय जां,    मुख  में बैठा काल ||
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वर्जित है पर कर रहा ,  हो कर मद में चूर |
अंतर छूमंतर  करे ,   बीड़ी जरदा   सूर ||
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तन गंगा में धो लिया , धुला न मन का पाप |
मन मंदिर को धो सखा , हो तन निर्मल आप ||
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ईश्वर तेरे नाम से , लगा रहे हैं भोग |
पेट बढ़ाये जा रहे , खाते पीते लोग ||
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पत्थर  की  शिवलिंग पर , चढ़ा  रहा है क्षीर |
अम्मा भूखी सो  गई , बिस्तर दरिया तीर  | |
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माता की कर वंदना , कर माँ का जयगान |
कोई माता तो जाने , आज कृष्ण भवगान  |  |
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मम्मी मम्मी सुन जरा , सुन ले मेरी बात |
वट्सएप पर रात दिन , किस से होती बात ||
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गीले बिस्तर पर पड़ी, मम्मी सारी रात  |
वरना सोने दे कहाँ , ये बच्चे की जात |  |
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बच्चा सोये चैन से , लगा दिया है पेड |
मम्मी को फुर्सत नहीं , सुला रही है मेड | |
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ममता की छाया नहीं , मिलती मीलों मील |
माँ बच्चे के बीच में , सूख रही ना गील  | |
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लेखक परिचय-
अनन्त आलोक
साहित्य लोक , बायरी ,डॉ  ददाहू जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश
173022    Email: anantalok1@gmail.com



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