रचनाकार- नवीन कुमार जैन
नारी
स्नेह की धारा है वह, है वात्सल्य की मूर्ति
वीरुध वही,वन वही, कालिका की वो पूर्ति
राष्ट्र , समाज और परिवार को वो समर्पित
स्व - पर, हित को करती प्राण भी अर्पित
वाणी वही, गिरिजा वही, है दामिनी भी वह
कल्पना वो, प्रतिभा वही है कामिनी भी वह
किरन है वह, है सुभद्रा , है महादेवी भी वह
सृजक है वो समाज की समाजसेवी भी वह
है मदर टेरेसा, ऐनी बेसेन्ट, यशोदा भी वह
है अनैतिक समर में संघर्षरत,योद्धा भी वह
बोझ नहीं है , अबला नहीं, न द्वितीय है वह
वह धरा पर देवी रूप ,नारी, अद्वितीय वह
जननी वही , गृहणी वही , नंदिनी भी है वह
भगिनी वही , सती वही , संगिनी भी है वह
बरछी वही , कलम वही, तलवार भी है वह
कंचन वही, चाँदी वही , अलंकार भी है वह
शस्त्र भी वह, शास्त्र भी वह,शक्ति भी है वह
अस्त्र है वह,आस्था भी वह,भक्ति भी है वह
चंद शब्द
चंद शब्दों में कोई समाहित कर देता संसार
चंद शब्दों से कोई प्रभावित कर देता अपार साहित्य शिल्पी चंद शब्दों से मन हर लेता
प्रबल वक्ता चंद शब्दों से बन जाता है नेता
चंद शब्द, व्यक्ति का व्यक्तित्व बता देते हैं
चंद शब्द ही, अनगिनतों को, लड़ा देते, हैं
चंद शब्द तारीफ के किसी को फुला देते हैं
चंद शब्द ही भाई मेरे किसी को रुला देते हैं
चंद शब्द ही पा जाते श्रोताओं की तालियाँ
चंद शब्द ही कहने से सुननी पड़तीं गालियाँ
बोलो सोच समझ के भईय्या चंद शब्द तुम
नाम बड़ा करते हैं या,कर देते खुशियाँ गुम
इसलिए भई चंद शब्द सोच समझ के बोलो
जहाँ दिमाग न काम करे, वहाँ न मुँह खोलो
************
धरा पर स्वर्ग
चहकते पंक्षी, सुनहरा मौसम
उगता सूरज, मिटता हुआ तम
शीतल हवा की सुरीली आवाज
हरे-भरे पेड़ों का अल्हड़ अंदाज
मुझे दिखाई देता, ये स्वर्ग जहाँ
आओ तुमको भी लेता चलूँ वहाँ
तो छोड़ दो प्रकृति से, छेड़छाड़
खोलो, अंतर्मन के तुम, किवाड़
विकास के लिए वृक्ष, मत काटो
नदियाँ न रोको, पर्वत न छांटो
मोटर गाड़ियों से चलना छोड़ दो
धरा को नया स्वर नया मोड़ दो
फिर वही हरा चोला पहना दो उसे
सुनहरी मृतिका का गहना दो उसे
करो प्रकृति की, गोद में, विश्राम
जो है स्वर्ग से सुंदर, है अभिराम
********
प्रकृति
थका मन पाता आश्रय, प्रकृति की गोद में
शिथिल तन होता फुर्तीला,उसके विनोद में पंक्षी सुनाते लोरी , वायु माथा सहलाती
सुन झरने की ध्वनि आत्मा तृप्त हो जाती
सूख गिरे, पत्ते खड़-खड़ करते उड़ते आते
स्वर्णमयी मृतिका की, मुझे चादर उड़ाते
ममतामयी , की गोद में, मैं करता विश्राम
प्रकृति का कण-कण, कोमल, देता आराम
शांत, चिंता रहित, ऊर्जावान, मैं हो जाता
फिर क्या? फिर दौड़- भाग में लग जाता
**********
प्यारी प्रकृति
तन झंकृत हुआ स्पर्श कर हरित पर्ण
मन महका देख प्रकृति के विविध वर्ण
वो पर्ण, हिममय, ओस से भींगे, हुए
ऊर्जावान हैं जो प्रकृति से, मैंने थे छुए
उस स्पर्श से मिली थी तन को ताजगी
चित्त शांत हुआ मिटी चिंता नाराजगी
जब प्रकृति का अकिंचित अतिन्यून अंग
भर देता मन में उमंग, तन में तरंग
सोचो जब प्रकृति को ही स्पर्श करूँ ?
प्रकृति में गोद में , मैं अपना सिर धरूँ
जो आत्मा का प्रकृति से हो जाए संग
तो अनेकों जीवन में, भी भर जाएँगे रंग
फिर न जन्म - मरण रहे, न, आत्मा
जाऊँ उसकी शरण में जो स्वयं परमात्मा
***********
जीवन परिचय
नाम - नवीन कुमार जैन
पिता का नाम - श्री मान् नरेन्द्र कुमार जैन
माता का नाम - श्री मती ममता जैन
स्थायी पता - ओम नगर काॅलोनी, वार्ड नं.-10,बड़ामलहरा, जिला- छतरपुर, म.प्र. पिन कोड - 471311
फोन नं - 8959534663
वाट्सऐप नं.- 9009867151
ई मेल - naveenjainnj2701@gmail.com
शिक्षा- कक्षा 11वीं (अध्ययनरत)
जन्म तिथि- 27/01/2002
प्रकाशन विवरण - स्वरचित पुस्तक- मेरे विचार
सम्मान का विवरण-
द्रोण प्रांतीय नव युवक संघ द्रोणगिरि प्रतिभा सम्मान
चेतना सम्मान
मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार
श्रमणोदय जैन अवार्ड 2016
जैन युवा प्रतिभा सम्मान, यंग जैना अवार्ड 2016
प्रतिभा सम्मान और धार्मिक शैक्षणिक शिविर सम्मान एवं अन्य सम्मान प्राप्त हैं
संस्थाओं से सम्बद्धता -
सदस्य साहित्य संगम संस्थान
व अन्य स्थानीय, इंटरनेट की ई साहित्य संस्थाओं से संपर्क ।
काव्य मंच , मंच पर काव्य पाठ - लगभग 12 वर्ष की उम्र से ही फिल्मी गानों की तर्ज पर भजन रचे जिनकी विभिन्न धार्मिक मंचों पर प्रस्तुति दी । विभिन्न धार्मिक व सामाजिक और विद्यालयीन मंचों पर काव्य पाठ किया है ।
अन्य विवरण - स्थानीय पत्र - पत्रिकाओं में, ई - पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है । लगभग 3 वर्ष का साहित्यिक अनुभव है वर्तमान में पढ़ाई के साथ - साथ साहित्य सेवा में संलग्न हूँ ।
नारी
स्नेह की धारा है वह, है वात्सल्य की मूर्ति
वीरुध वही,वन वही, कालिका की वो पूर्ति
राष्ट्र , समाज और परिवार को वो समर्पित
स्व - पर, हित को करती प्राण भी अर्पित
वाणी वही, गिरिजा वही, है दामिनी भी वह
कल्पना वो, प्रतिभा वही है कामिनी भी वह
किरन है वह, है सुभद्रा , है महादेवी भी वह
सृजक है वो समाज की समाजसेवी भी वह
है मदर टेरेसा, ऐनी बेसेन्ट, यशोदा भी वह
है अनैतिक समर में संघर्षरत,योद्धा भी वह
बोझ नहीं है , अबला नहीं, न द्वितीय है वह
वह धरा पर देवी रूप ,नारी, अद्वितीय वह
जननी वही , गृहणी वही , नंदिनी भी है वह
भगिनी वही , सती वही , संगिनी भी है वह
बरछी वही , कलम वही, तलवार भी है वह
कंचन वही, चाँदी वही , अलंकार भी है वह
शस्त्र भी वह, शास्त्र भी वह,शक्ति भी है वह
अस्त्र है वह,आस्था भी वह,भक्ति भी है वह
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चंद शब्दों में कोई समाहित कर देता संसार
चंद शब्दों से कोई प्रभावित कर देता अपार साहित्य शिल्पी चंद शब्दों से मन हर लेता
प्रबल वक्ता चंद शब्दों से बन जाता है नेता
चंद शब्द, व्यक्ति का व्यक्तित्व बता देते हैं
चंद शब्द ही, अनगिनतों को, लड़ा देते, हैं
चंद शब्द तारीफ के किसी को फुला देते हैं
चंद शब्द ही भाई मेरे किसी को रुला देते हैं
चंद शब्द ही पा जाते श्रोताओं की तालियाँ
चंद शब्द ही कहने से सुननी पड़तीं गालियाँ
बोलो सोच समझ के भईय्या चंद शब्द तुम
नाम बड़ा करते हैं या,कर देते खुशियाँ गुम
इसलिए भई चंद शब्द सोच समझ के बोलो
जहाँ दिमाग न काम करे, वहाँ न मुँह खोलो
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धरा पर स्वर्ग
चहकते पंक्षी, सुनहरा मौसम
उगता सूरज, मिटता हुआ तम
शीतल हवा की सुरीली आवाज
हरे-भरे पेड़ों का अल्हड़ अंदाज
मुझे दिखाई देता, ये स्वर्ग जहाँ
आओ तुमको भी लेता चलूँ वहाँ
तो छोड़ दो प्रकृति से, छेड़छाड़
खोलो, अंतर्मन के तुम, किवाड़
विकास के लिए वृक्ष, मत काटो
नदियाँ न रोको, पर्वत न छांटो
मोटर गाड़ियों से चलना छोड़ दो
धरा को नया स्वर नया मोड़ दो
फिर वही हरा चोला पहना दो उसे
सुनहरी मृतिका का गहना दो उसे
करो प्रकृति की, गोद में, विश्राम
जो है स्वर्ग से सुंदर, है अभिराम
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प्रकृति
थका मन पाता आश्रय, प्रकृति की गोद में
शिथिल तन होता फुर्तीला,उसके विनोद में पंक्षी सुनाते लोरी , वायु माथा सहलाती
सुन झरने की ध्वनि आत्मा तृप्त हो जाती
सूख गिरे, पत्ते खड़-खड़ करते उड़ते आते
स्वर्णमयी मृतिका की, मुझे चादर उड़ाते
ममतामयी , की गोद में, मैं करता विश्राम
प्रकृति का कण-कण, कोमल, देता आराम
शांत, चिंता रहित, ऊर्जावान, मैं हो जाता
फिर क्या? फिर दौड़- भाग में लग जाता
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प्यारी प्रकृति
तन झंकृत हुआ स्पर्श कर हरित पर्ण
मन महका देख प्रकृति के विविध वर्ण
वो पर्ण, हिममय, ओस से भींगे, हुए
ऊर्जावान हैं जो प्रकृति से, मैंने थे छुए
उस स्पर्श से मिली थी तन को ताजगी
चित्त शांत हुआ मिटी चिंता नाराजगी
जब प्रकृति का अकिंचित अतिन्यून अंग
भर देता मन में उमंग, तन में तरंग
सोचो जब प्रकृति को ही स्पर्श करूँ ?
प्रकृति में गोद में , मैं अपना सिर धरूँ
जो आत्मा का प्रकृति से हो जाए संग
तो अनेकों जीवन में, भी भर जाएँगे रंग
फिर न जन्म - मरण रहे, न, आत्मा
जाऊँ उसकी शरण में जो स्वयं परमात्मा
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जीवन परिचय
नाम - नवीन कुमार जैन
पिता का नाम - श्री मान् नरेन्द्र कुमार जैन
माता का नाम - श्री मती ममता जैन
स्थायी पता - ओम नगर काॅलोनी, वार्ड नं.-10,बड़ामलहरा, जिला- छतरपुर, म.प्र. पिन कोड - 471311
फोन नं - 8959534663
वाट्सऐप नं.- 9009867151
ई मेल - naveenjainnj2701@gmail.com
शिक्षा- कक्षा 11वीं (अध्ययनरत)
जन्म तिथि- 27/01/2002
प्रकाशन विवरण - स्वरचित पुस्तक- मेरे विचार
सम्मान का विवरण-
द्रोण प्रांतीय नव युवक संघ द्रोणगिरि प्रतिभा सम्मान
चेतना सम्मान
मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार
श्रमणोदय जैन अवार्ड 2016
जैन युवा प्रतिभा सम्मान, यंग जैना अवार्ड 2016
प्रतिभा सम्मान और धार्मिक शैक्षणिक शिविर सम्मान एवं अन्य सम्मान प्राप्त हैं
संस्थाओं से सम्बद्धता -
सदस्य साहित्य संगम संस्थान
व अन्य स्थानीय, इंटरनेट की ई साहित्य संस्थाओं से संपर्क ।
काव्य मंच , मंच पर काव्य पाठ - लगभग 12 वर्ष की उम्र से ही फिल्मी गानों की तर्ज पर भजन रचे जिनकी विभिन्न धार्मिक मंचों पर प्रस्तुति दी । विभिन्न धार्मिक व सामाजिक और विद्यालयीन मंचों पर काव्य पाठ किया है ।
अन्य विवरण - स्थानीय पत्र - पत्रिकाओं में, ई - पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है । लगभग 3 वर्ष का साहित्यिक अनुभव है वर्तमान में पढ़ाई के साथ - साथ साहित्य सेवा में संलग्न हूँ ।
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