लेखक परिचय - अनुराग कुमार
'सफलता की परिभाषा लिख दे'
जीवन के कोरे कागज पर, कर्मों की गाथा लिख दे ;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
शिखर ये सफलता का, कर रहा तेरा आह्वाहन ;
विपत्तियों से लड़कर, बन कुशल-दिव्य-ज्योति-नूतन।
अब तोड़ अपनी निद्रा को, मन की अभिलाषा लिख दे ;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
तू कायर है तो हार गया, निर्भय है तो रण मार गया ;
इन तूफानों से टकराकर, हिम्मत वाला उस पार गया।
पथ में जो विपदाएं आएं, उनके लिए निराशा लिख दे ;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
प्रेम-विरत जो रह गए, उनको तू अनुराग दे;
जिनका जीवन तम में बीता, उनको तू चिराग दे।
दीन-दुःखी, निबलों-विकलों के प्रति आशा लिख दे;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
जिसने अपनीे ममता के आंचल का तुझको छांव दिया ;
जो तुझे प्यारा लगा, वह घर दिया, वह गांव दिया।
उस मातृभूमि के चरणों में, तन-मन-धन सारा लिख दे ;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
जीवन के कोरे कागज पर, कर्मों की गाथा लिख दे ;
विस्तृत नील गगन पर, सफलता की परिभाषा लिख दे।
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'परिन्दे की उड़ान'
ऐ परिन्दे! उड़, अभी तेरी उड़ान बाकी है;
नजर ऊपर तो उठा, अभी पूरा आसमान बाकी है।
निर्मल-नील-गगन में गुनगुनाता चल;
नित्य-नए सफलता के गीत गाता चल।
जाना है जहां तुझे, अभी वो मुकाम बाकी है;
नजर ऊपर तो उठा, अभी पूरा आसमान बाकी है।
ओस की चादर को चीर के आगे निकल;
वृष्टि और उष्ण-अनिल के सामने ना हो विफल।
बनानी है जो तुझे, अभी वो पहचान बाकी है;
नजर ऊपर तो उठा, अभी पूरा आसमान बाकी है।
ऐ 'अनुराग'! तू भी इस परिन्दे के साथ चल;
दुःखियों का सहारा बन, इनके उत्कर्ष के लिए मचल।
क्योंकि तेरा भी कुछ है, जो अभी अरमान बाकी है;
नजर ऊपर तो उठा, अभी पूरा आसमान बाकी है।
ऐ परिन्दे! उड़, अभी तेरी उड़ान बाकी है;
नजर ऊपर तो उठा, अभी पूरा आसमान बाकी है।
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'जल है जीवन'
सूख जाएगा इक दिन पानी,
करते रहे अगर तुम मनमानी।
इसको बचाओ, मान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
जल सबकी प्यास बुझाता है,
फसलों को भी चमकाता है।
इसकी महत्ता का ज्ञान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
जल पर आधारित हैं सभी उद्योग,
साफ-सफाई में है इसका प्रयोग।
कीमत इसका पहचान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
सब जीवों का जीवन है इससे,
सबके घर में आंगन है इससे।
इसको बचाने की ठान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
सूखी धरा पर जब आता है,
अमृत प्रेम सरस बरसाता है।
इसके महिमा का भान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
व्यर्थ करो ना जल को तुम,
पछताओगे कल को तुम।
जरूरत पर ही काम लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
उस दिन क्या हमारी अवस्था होगी,
जिस दिन न पानी की व्यवस्था होगी।
उस दिन का अनुमान लो भाई,
'जल है जीवन' जान लो भाई।
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"एक शाम-उनके नाम"
आओ आज हम एक नया काम करते हैं,
ये दिन भूखे-गरीबों के नाम करते हैं।
कुछ रोटियां और कुछ कपड़े जुटाते हैं,
चलो आज उनकी हसीं ये शाम करते हैं।
उद्योगों के सृजन का भूमिका निभाते हैं,
श्रमिक निज लगन से उसको सफल बनाते हैं।
आओ उनकी मेहनत को सलाम करते हैं,
चलो आज उनकी हसीं ये शाम करते हैं।
श्रमिक अपने मेहनत की कमाई खाते हैं,
फिर भी क्यों हेय दृष्टि से देखे जाते हैं?
आओ आज हम उनका सम्मान करते हैं,
चलो आज उनकी हसीं ये शाम करते हैं।
श्रमिक नव सर्जन व विकास का कर्णधार है,
मान-मर्यादा का उसको भी अधिकार है,
आओ हम अमर ऐसा पैगाम करते हैं,
चलो आज उनकी हसीं ये शाम करते हैं।
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लेखक परिचय - अनुराग कुमार
खुटहा बाजार, महराजगंज (उ०प्र०)
मो०- 8004292135
Email: anuragkumar321@gmail.com
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