ग़ज़ल- कामनी गुप्ता


रचनाकार - 
कामनी गुप्ता


ग़ज़ल 
उन्हें हमसे शिकायत इस कदर है।
प्यार भरे दिल में चाहत इस कदर है।

अहम में कह जाते हैं वो बहुत कुछ ;
उनकी आँखों में शरारत इस कदर है।

चेहरे पे लाते नहीं दिल के भाव कभी ;
उनको हमसे मोहब्बत इस कदर है।

ख्वाबों में भी रुठे रुठे से नज़र आते हैं;
हम न बोलें कुछ इजाज्त इस कदर है।

वक्त ही बदला है पर वो कुछ नहीं ;
उन्हें फिर हमारी हसरत इस कदर है।

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हम दिल से उन्हें हर बार सलाम करते हैं।
वो यूंही बेवफाई हमसे सरेआम करते हैं।

सीख लिया पत्तों ने पतझड़ में यूं संभलना;
खाक होने का फिर वो  इंतज़ाम करते हैं।

न होना मायूस यूं हार कर तुम कभी भी ;
हार कर कुछ मुकद्दर को बदनाम करते हैं।

आती नहीं होशियारी कि खुद को सही कहें;
गल्तियों से सीख कर हासिल मुकाम करते हैं।

देश को कुछ लोगों ने अपनी जागीर समझा है;
शब्दों के वाणों से फिर वो कत्लेआम करते हैं।

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