कवि - योगेन्द्र जीनगर "यश"
अपनों का दर्द
एक शख्स को बचपन से ही दु:ख दर्द में देखा है,
जीवन गम में बीता उसकी क्या हाथों की रेखा है,
एक बीमारी के चलते यूँ हर अपनों को खोया है,
सपने सारे टूट गए फिर भी कभी न रोया है,
सबसे पहले पत्नी के सांसों की डोरी टूट गई,
तब लगा कि ये जिंदगी उस शख्स से रूठ गई,
पर इतना ही दर्द नहीं था उस शख्स की किश्मत में,
उसकी बेटी हुई बीमार पर कमी न आई हिम्मत में,
लेकर गोद में बेटी को वो अस्पताल दौड़ा आया,
देख मरने की हालत में डाॅक्टर ने उसको समझाया,
हर हाल में पांच लाख की फीस तुम्हें भरनी होगी,
आंतें हुई खराब इसकी चीर फाड़ करनी होगी,
फटे पुराने कपड़े थे और बदन भी उसका मैला था,
क्या कमाता उसके बस एक लहसुन प्याज का ठेला था,
समझ गरीबी डाॅक्टर ने बेटी का मोल न समझा था,
और बेचारा वो पिता देख बस परिस्थिति उलझा था,
डाॅक्टर ने कुछ इस तरह हैवानित को दिखलाया,
कड़वी बात वो बोला ऐसी पल भर न घबराया,
नहीं बचेगी क्यों फिजूल में पैसे तू लगवाता है,
लगता है बेटा तुम्हारा पैसे बहुत कमाता है,
सुनकर बात वो डाॅक्टर की तब रोते-रोते बोल पड़ा,
और उसके शब्दों ने डाॅक्टर को थप्पड़ सा जड़ा,
सुनकर ऐसी बात दिल तब फूट-फूट कर रोया है,
जब कहा कि मैंने बेटा भी ऐसे ही खोया है|
जीवन गम में बीता उसकी क्या हाथों की रेखा है,
एक बीमारी के चलते यूँ हर अपनों को खोया है,
सपने सारे टूट गए फिर भी कभी न रोया है,
सबसे पहले पत्नी के सांसों की डोरी टूट गई,
तब लगा कि ये जिंदगी उस शख्स से रूठ गई,
पर इतना ही दर्द नहीं था उस शख्स की किश्मत में,
उसकी बेटी हुई बीमार पर कमी न आई हिम्मत में,
लेकर गोद में बेटी को वो अस्पताल दौड़ा आया,
देख मरने की हालत में डाॅक्टर ने उसको समझाया,
हर हाल में पांच लाख की फीस तुम्हें भरनी होगी,
आंतें हुई खराब इसकी चीर फाड़ करनी होगी,
फटे पुराने कपड़े थे और बदन भी उसका मैला था,
क्या कमाता उसके बस एक लहसुन प्याज का ठेला था,
समझ गरीबी डाॅक्टर ने बेटी का मोल न समझा था,
और बेचारा वो पिता देख बस परिस्थिति उलझा था,
डाॅक्टर ने कुछ इस तरह हैवानित को दिखलाया,
कड़वी बात वो बोला ऐसी पल भर न घबराया,
नहीं बचेगी क्यों फिजूल में पैसे तू लगवाता है,
लगता है बेटा तुम्हारा पैसे बहुत कमाता है,
सुनकर बात वो डाॅक्टर की तब रोते-रोते बोल पड़ा,
और उसके शब्दों ने डाॅक्टर को थप्पड़ सा जड़ा,
सुनकर ऐसी बात दिल तब फूट-फूट कर रोया है,
जब कहा कि मैंने बेटा भी ऐसे ही खोया है|
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मन....
पाप हो रहे पल पल में और देह बिक रहे होटल में,
कोई ड्रग्स ले बैठा है और कोई डूब रहा बोतल में,
दे हजारों फिर जिस्म का सौदा करते फिरते हैं,
कोई अपनी ही बेटी बेचे इस हद तक भी गिरते हैं,
रातों की क्या बात करें जी सुबह शाम और दोपहर में,
हाल बिगड़ा सा दिख रहा है आज अपने ही शहर में,
मिटे आबरू ये जिंदगी है बुरे अंजाम सी,
लोग ज़हर में अब तलाशे जिंदगी बदनाम सी,
आज हो गया लालच का एक बहुत बड़ा खुलासा है,
सिद्ध हो गया धन से ज्यादा मन हवस का प्यासा है|
कोई ड्रग्स ले बैठा है और कोई डूब रहा बोतल में,
दे हजारों फिर जिस्म का सौदा करते फिरते हैं,
कोई अपनी ही बेटी बेचे इस हद तक भी गिरते हैं,
रातों की क्या बात करें जी सुबह शाम और दोपहर में,
हाल बिगड़ा सा दिख रहा है आज अपने ही शहर में,
मिटे आबरू ये जिंदगी है बुरे अंजाम सी,
लोग ज़हर में अब तलाशे जिंदगी बदनाम सी,
आज हो गया लालच का एक बहुत बड़ा खुलासा है,
सिद्ध हो गया धन से ज्यादा मन हवस का प्यासा है|
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माँ का दर्द.....
आज ऐसा गलत तुम जतन मत करो,
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो,
मैंने आँसू की बूँदों से सींचा इसे,
इस गुलिस्तां को उजड़ा चमन मत करो|
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो,
मैंने आँसू की बूँदों से सींचा इसे,
इस गुलिस्तां को उजड़ा चमन मत करो|
हर नज़र से बचाकर हिफाज़त करी,
रात भर जागकर ठीक हालत करी,
मैंने उत्तम तुम्हारा चरित्र किया,
अपनी ममता के रस से पवित्र किया,
मैला अपना ये प्यारा बदन मत करो,
आज ऐसा गलत तुम जतन मत करो,
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो|
रात भर जागकर ठीक हालत करी,
मैंने उत्तम तुम्हारा चरित्र किया,
अपनी ममता के रस से पवित्र किया,
मैला अपना ये प्यारा बदन मत करो,
आज ऐसा गलत तुम जतन मत करो,
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो|
नासमझ थे जहां तक मैं माँ सी लगी,
जब समझ आई तो तुमको फाँसी लगी,
वक्त दौड़ा है अब मंद लम्हें बचे,
ज़िंदगी कट चली चंद लम्हें बचे,
कुछ बचे हैं दिनों का पतन मत करो,
आज ऐसा गलत तुम जतन मत करो,
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो|
जब समझ आई तो तुमको फाँसी लगी,
वक्त दौड़ा है अब मंद लम्हें बचे,
ज़िंदगी कट चली चंद लम्हें बचे,
कुछ बचे हैं दिनों का पतन मत करो,
आज ऐसा गलत तुम जतन मत करो,
अपनी यादों को घर में दफ़न मत करो|
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इंसानियत.....
एक इंसान हो मत भूलो तुम,
कर्म से सबका दिल छूलो तुम,
याद रखो है दिल सीने में,
मत लगो तुम खून पीने में,
खुश करने के जतन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
कर्म से सबका दिल छूलो तुम,
याद रखो है दिल सीने में,
मत लगो तुम खून पीने में,
खुश करने के जतन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
अपनों से अब मत बिखरो तुम,
निखरे हो तो और निखरो तुम,
अहंकार दुश्मन है साथी,
दोस्त अपनापन है साथी,
अच्छा चाल चलन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
निखरे हो तो और निखरो तुम,
अहंकार दुश्मन है साथी,
दोस्त अपनापन है साथी,
अच्छा चाल चलन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
भीड़ में आए भीड़ में गाए,
कौन भला अब किसको भाए,
खुद से खुद अनजान है बस,
चाहिए झूठी शान है बस,
खुद का मत अब पतन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
कौन भला अब किसको भाए,
खुद से खुद अनजान है बस,
चाहिए झूठी शान है बस,
खुद का मत अब पतन करो तुम,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
धन-दौलत को चूम गए हो,
बहुत नशे में झूम गए हो,
अब धरती पर ठहरो तुम,
भला किसी का कर लो तुम,
आज प्राप्त "यश" धन करो,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
बहुत नशे में झूम गए हो,
अब धरती पर ठहरो तुम,
भला किसी का कर लो तुम,
आज प्राप्त "यश" धन करो,
अच्छाई से मिलन करो तुम|
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परिचय-
नाम - योगेन्द्र जीनगर "यश" . मैं राजस्थान के राजसमंद जिले का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 21 वर्ष है। मेरी रूचि बचपन से ही कविताएं,गीत,ग़ज़ल,कहानी लिखने में रही है। कई विधाओं पर मैंने लिखने की कोशिश की। समय-समय पर मेरी कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती है साथ ही राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका "मधुमती" में भी कविता प्रकाशित हुई। मेरे काव्यपाठ का प्रसारण एफ.एम. चैनल "अलवर की आवाज" पर भी समय-समय पर होता रहता है। अध्यापक प्रशिक्षण के बाद वर्तमान में मैं एक विद्यार्थी हूँ।
नाम - योगेन्द्र जीनगर "यश" . मैं राजस्थान के राजसमंद जिले का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 21 वर्ष है। मेरी रूचि बचपन से ही कविताएं,गीत,ग़ज़ल,कहानी लिखने में रही है। कई विधाओं पर मैंने लिखने की कोशिश की। समय-समय पर मेरी कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती है साथ ही राजस्थान साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका "मधुमती" में भी कविता प्रकाशित हुई। मेरे काव्यपाठ का प्रसारण एफ.एम. चैनल "अलवर की आवाज" पर भी समय-समय पर होता रहता है। अध्यापक प्रशिक्षण के बाद वर्तमान में मैं एक विद्यार्थी हूँ।
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